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Rajesh Raghuwanshi

Tragedy Others

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Rajesh Raghuwanshi

Tragedy Others

घर

घर

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कितना अजीब होता है न कि 

कभी कोई घर खाली नहीं रहता।

आ ही जाते हैं उसमें रहने परिंदे उड़कर 

और बना लेते हैं अपना बसेरा।।


बन जाते हैं स्वामी उसके,

जताते हैं मालिकाना हक उसपर,

और फिर

पूरी जिंदगी झोंक देते हैं उसे बनाए रखने में।

इस जद्दोजहद में वे ये भूल जाते हैं कि

यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं होता।

यहाँ तक उनके द्वारा जीया जाने वाला जीवन ही।


जानते-समझते हुए भी वे 

गाहे-बगाहे

स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ घोषित करते रहते हैं।


भूल जाते हैं वे कर्म के प्रवाह और

गीता के सामान्य ज्ञान को

कि

सुख-दुःख हमारे कर्मों से जुड़ा होता है।


दुःखी वह भी होता है,

जो महलों में रहता है

और

सुखी वह भी होता है,

जो झोंपड़ी में सोता है।


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