कुछ सवाल खुद से
कुछ सवाल खुद से
सवाल यह नहीं की अचानक से आप किसी ओर के हो गए कही !
सवाल यह था की सूखे समंदर को हमने देखा क्यों नहीं।
यूं तो मेरी आंखें हमेशा देखा करती थी तुम्हें,
सवाल यह था आज मेरी आंखें बन्द हुई कैसे ?
नदिया किनारे बैठ कर कई बातें किया करते थे तुम,
सवाल यह था कि चुप क्यों बैठे रहे आज ?
न तो बारिश का मौसम था न ही शर्दी का,
सवाल यह था कि कैसे भीगी चुनरी मेरी ?
कुछ सपने देखे थे जो साथ में मैने वह टूटे भी कैसे,
सवाल यह उठता सजाएं थे क्या सिर्फ तूने ही उसे ?
