मोह गली (Moh Gali)
मोह गली (Moh Gali)
कितने आए, और कितने गए,
पर कोई भी वैसा प्रेम का तोहफा –
अपने संग ना ला पाया है,
बादल गरजा, अंबर बरसे –
पर फूल तो अभी-भी ना खिल पाया है,
बरस-बरस बीत गए परन्तु,
कोई भी इस संकरी प्रेम गली में
दाखिल हो पाया है।
कितना चाहा पर,
मोह की इस गली को आज तक
कोई और छू भी ना पाया है।

