मोह गली (Moh Gali)
मोह गली (Moh Gali)


औरों ने कितना चाहा पर,
मोह की इस संकरी गली को आज तक,
कोई और छू ना पाया है –
कितने आए, और कितने गए,
पर कोई भी वैसा प्रेम का तोहफ़ा –
अपने संग ना ला पाया है,
बादल गरजा, अंबर बरसे –
पर वह मुरझाया फूल,
तो अभी-भी ना खिल पाया है।
दिन-महीने बीत गए परन्तु,
उसकी आंखों से मिले स्नेह के संदेश को –
मेरा दिल भूला ना पाया है,
हर लिया है –
उसने मेरा चैन,
उसके अलावा –
कोई भी इस तंग प्रेम गली में,
अब-तक दाखिल न हो पाया।
औरों ने कितना चाहा पर,
मोह की इस संकरी गली को आज तक,
कोई और छू ना पाया है।