आख़िर
आख़िर
अब मेरा जनाज़ा उठने दो
मेरा चिरागे माज़ी जलने दो
मेरी अब भी तलाश अर्श है
अब मेरा जनाज़ा उठने दो।
वो वहम कब का उतर गया
मेरा सनम मुझसे मुकर गया
मुझे थोड़ा सा मचलने दो
अब मेरा जनाज़ा उठने दो।
मैं रोते रोते थक गया
दो गज़ ज़मीं मे सो गया
अब सितारों से संवरने दो
मेरा जनाज़ा उठने दो।
वो बज़म से पिघल गया
मै ग़ज़ल से निकल गया
मेरी आरज़ू को सब्र दो
अब मेरा जनाज़ा उठने दो।
वो सुबह को शाम कर गया
जो क़तले आम कर गया
मुझे उस पे सलाम पढ़ने दो
अब मेरा जनाज़ा उठने दो।
मैं पलकों से उतर गया
मैं ख़ाक मे सिमट गया
मुझे बेनियाज़ होने दो
अब मेरा जनाज़ा उठने दो।
वो मैक़दे की शौख़ियां
ये हुस़्ने जहां की झलकियां
क्या ले सकूं क्या छोड़ दूं
अब मेरा जनाज़ा उठने दो।