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Sabita Kumari

Tragedy Others

3.4  

Sabita Kumari

Tragedy Others

भारत दशा

भारत दशा

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चौबारे भी मौन हुई है आज तेरी इन गलियों में 

संसद भी शर्मिंदा होगी नेताओं की रंगरलियों में ।


कहीं हत्या, कहीं बलात्कार हो रोज भरे बाजारों में।

कहीं न कहीं हर रोज निर्भया दफ़न होती शमशानों में।


देश द्रोही के नारे बाजी गूंज उठी मिनारों में 

भारत मां भी लज्जित होंगी देश द्रोही के दरबारों में ।


हिमालय की चोटी छलनी छलनी होती घाटों में

भारतवासी शर्मिंदा है कायरों की चालों से ।


आज़ादी का जश्न भी फीका लगता है शहनाई में 

इन्कलाब का नारा भी गा लेती हूं तन्हाई में।


मौन मुख का वाणी  रुदन हो जाती हैं जमघट में

लोकतन्त्र का अर्थी उठती जाती है पूरे संसद में ।


अनुशासन भी छीन भिन्न हुए शासन प्रणाली में।

जनता जाग उठी है पूरे भारत की रखवाली में।।


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