हमारी प्रकृति
हमारी प्रकृति
गजब की है प्रकृति हमारी
है इसका रूप निराला
बनाती रहती है धरती को
अनुकुल हमारा
ऐसी है प्रकृति हमारी।
कभी ऋणात्मक तो कभी
धनात्मक प्रभाव दिखाती हैं।
कभी आग का गोला बरसाती है,
तो कभी पानी का दरिया बहती हैं
ऐसी है प्रकृति हमारी।
प्रातः सुबह ओ नित्य नया
रूप अपना दर्शाती है।
करती है ओ हंसी ठिठोली
मुस्कान अपना दिखाती हैं।
रवि आभा से दूभो पर
ओस की बूंदें ओ बिखेराती है
ऐसी है प्रकृति हमारी।
उसकी प्रातः काल
की छवि की छटा,
प्राणों में स्फूर्ति जगाती हैं।
उसकी नित्य दिनों का दर्शन
चित को निर्मल बनाती है
ऐसी है प्रकृति हमारी।
देख प्रकृति की रूप निराला ,
करती रहती हूं अभिनन्दन सारा।
पूरा संसार है रचना तुम्हारा
ऐसी है प्रकृति हमारी।