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Shakuntla Agarwal

Drama

5.0  

Shakuntla Agarwal

Drama

खामियाँ

खामियाँ

1 min
828


अपनों ने आईना दिखलाया,

तो जान पाया ,

मुझमें कितनी खामियाँ है !


खूबियों को भी,

खामियों में तब्दील पाया !

तो जान पाया,

मुझमें कितनी खामियाँ है !


आँगन में घने बरगद की छाया,

सभी के मन को भाती है !

जर्रा-जर्रा ठूठ होते,

बरगद की छाया सभी को सालती है !


ठूठ बन खुद को

नितान्त अकेला पाया,

तो जान पाया,

मुझमें कितनी खामियाँ है !


दोहरे व्यक्तित्व का

दंश जीते हैं हम,

कभी अमृत तो कभी विष का

घूंट पीते हैं हम !


विष को भी अमृत समझ

पी पाया तो जान पाया,

कि मुझमें कितनी खामियाँ है !


हँसी ठठा था तभी तक,

जब तक जीवन साथी साथ था !

खाँसना बोलना भी जब बच्चों को,

रास नहीं आया तब जान पाया,

कि मुझमें कितनी खामियाँ है !


पैसे की खनक जब तक साथ थी मेरे,

मुझमें कितनी खूबियाँ थी !

हाथ जब फैलाया तो जान पाया,

कि मुझमें कितनी खामियाँ है !


बूढ़या गया खामियों का

बोझ ढोते-ढोते,

जनाज़े के बाद सराहा,

तो जान पाया,

कि मुझमें कितनी खूबियाँ हैं !


जीते जी डंडम डंडा की

ज़िन्दगी जीता रहा,

मरने के बाद खीर मंडा पाया

तो जान पाया,

"शकुन" मुझमें कितनी खूबियाँ है !


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