खामियाँ
खामियाँ
अपनों ने आईना दिखलाया,
तो जान पाया ,
मुझमें कितनी खामियाँ है !
खूबियों को भी,
खामियों में तब्दील पाया !
तो जान पाया,
मुझमें कितनी खामियाँ है !
आँगन में घने बरगद की छाया,
सभी के मन को भाती है !
जर्रा-जर्रा ठूठ होते,
बरगद की छाया सभी को सालती है !
ठूठ बन खुद को
नितान्त अकेला पाया,
तो जान पाया,
मुझमें कितनी खामियाँ है !
दोहरे व्यक्तित्व का
दंश जीते हैं हम,
कभी अमृत तो कभी विष का
घूंट पीते हैं हम !
विष को भी अमृत समझ
पी पाया तो जान पाया,
कि मुझमें कितनी खामियाँ है !
हँसी ठठा था तभी तक,
जब तक जीवन साथी साथ था !
खाँसना बोलना भी जब बच्चों को,
रास नहीं आया तब जान पाया,
कि मुझमें कितनी खामियाँ है !
पैसे की खनक जब तक साथ थी मेरे,
मुझमें कितनी खूबियाँ थी !
हाथ जब फैलाया तो जान पाया,
कि मुझमें कितनी खामियाँ है !
बूढ़या गया खामियों का
बोझ ढोते-ढोते,
जनाज़े के बाद सराहा,
तो जान पाया,
कि मुझमें कितनी खूबियाँ हैं !
जीते जी डंडम डंडा की
ज़िन्दगी जीता रहा,
मरने के बाद खीर मंडा पाया
तो जान पाया,
"शकुन" मुझमें कितनी खूबियाँ है !