पुराने पीपल की कहानी
पुराने पीपल की कहानी
पुराने पीपल की उस डाली पर
सावन में झूले पड़ते थे
नील गगन में आज़ादी से
ढेरों पंछी उड़ते थे ।
बात हो चली बहुत पुरानी
उस पीपल को सब भूले हैं
उस डाली को ही काट रहे
बचपन में जिस पर झूले हैं ।
उस पीपल की छांव तले
सब दर्द बांटने आते थे
गर्मी वाली रातों में
सब रात काटने आते थे ।
एक लम्बी अवधि बीत गयी
पीपल की तन्हायी को
मानो सदियां बीत गयी
बिन पड़े किसी परछायी को ।
वो भी कितने अच्छे दिन थे
जब चौपाले सजती थीं
ढोलक सावन गीत की
और फगुनाई की बजती थी ।
समय चक्र कुछ यूं बदला
वह एकदम से असहाय हुआ
सूनेपन का था दर्द उसे
इस दर्द से वह निरुपाय हुआ ।
किन्तु उसे थी इक उम्मीद
मन में इक विश्वास भी
उन सारी पुरानी बातों के
फिर से होने की आस भी ।
आज अचानक हरियाली
पत्तों में उसके आयी है
सावन की सी एक घटा
गर्मी में,अद्भुत छायी है ।
पत्तों पर पंछी बैठे हैं
गीतों का गुंजन छाया है
टूट चुके उस पीपल में
फिर से नवजीवन आया है ।