कितने ख़ास हो तुम
कितने ख़ास हो तुम
बेख़बर हो तुम इस बात से की, मेरे लिये कितने ख़ास हो तुम।।
मेरी ख़ुशी में हो तुम, गम में हो तुम, गम से भरी उस शाम में हो तुम।।
मेरे सुकून में हो तुम, नींद में हो तुम, नींदों के उस ख्वाब में हो तुम।।
हाँ उस ख्वाब में हो तुम, याद में हो तुम, यादों की वजूहात में हो तुम।।
इस पल में हो तुम, और उस पल नहीं तुम, तो दिल में उठे खालीपन में हो तुम।।
बेख़बर हो तुम इस बात से की, मेरे लिये कितने ख़ास हो तुम।। १ ।।
मेरा गीत हो तुम, नज़्म हो तुम, नज़्म का हर लफ्ज हो तुम।।
राग हो तुम, साज़ हो तुम, साज़ की आवाज हो तुम।।
हाँ आवाज हो तुम, रुहसाज हो तुम, जिसे पहन लूँ वो लिबाज़ हो तुम।।
आज हो तुम, अगर कल नहीं तुम, तो मेरे अतीत का छुपा राज़ हो तुम।।
बेख़बर हो तुम इस बात से की, मेरे लिये कितने ख़ास हो तुम।। २ ।।
ये बारिश की छम छम, भीनी हवा है मद्धम, ठंडी हवा की फुहार हो तुम।।
ये नदियों की कल कल, बहती हुयी हर पल, लहराती हुयी कोई धार हो तुम।।
पैरों पे ठंडी लहर, शाम का वो पहर, समंदर का उठता सैलाब हो तुम।।
डूब जाऊँ या तर जाऊँ तुझमे, क्या फर्क पड़ता है, अगर साथ हो तुम।।
लेकिन बेख़बर हो तुम इस बात से की, मेरे लिये कितने ख़ास हो तुम।। ३ ।।