कुछ नज्में लिख दो जाना
कुछ नज्में लिख दो जाना
खामोश ना रहो, इन लबों को जरा थिरकने दो जाना।
बहता हुआ जाम है, इस जाम को ज़रा झलकने दो जाना।।
हसरत थी जो छूने की, कब से इनको।
अब तो वह हसरत, जरा जीने दो जाना।।
होंठ है यह गुलाब सा, इनसे पंखुड़ियों को जरा बिखरने दो जाना।
इन मखमली पंखुड़ियों पर, मदहोशी की बूंदें जरा ठहरने दो जाना।।
हमने तो लिख दी ये नज्म, सुर्ख लाल टपकती स्याही से।
अपने होंठों से, तुम भी तो कुछ नज्में लिख दो जाना।।