सफर पे निकला राही
सफर पे निकला राही


कुछ दिन ठहरा तेरे गाँव में,
अब आगे भी जाना है।
जरा यादें बाँध दो सामान में,
अब मेरा कहीं और ठिकाना है।।
मैं गुजरा गाँव की गलियों से,
मुझे कई दिलदार मिले।
उड़ती आंधी से ख़्वाब मिले,
कुछ दफन नगीने नायाब मिले।।
कुछ गुलों से भरे वो बाग मिले,
कहीं लाचारी के दाग मिले।
कुछ प्यार के मारे यार मिले,
और जिद्दी तो बेशुमार मिले।।
कुछ मुझ जैसे बड़बोले थे,
कुछ थोड़े से भोले थे।
कुछ जीना सिखा रहे थे,
कुछ मुश्किल से जी पा रहे थे।।
मैं तो सफर पे निकला राही हूँ,
बस मिलना है, चले जाना है।
यादें बाँध ली हैं सामान में,
अब मेरा कहीं और ठिकाना है।।