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Dheeraj Sarda

Others

4.8  

Dheeraj Sarda

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सफर पे निकला राही

सफर पे निकला राही

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कुछ दिन ठहरा तेरे गांव में, अब आगे भी जाना है।

जरा यादें बाँध दो सामान में,अब मेरा कंही और ठिकाना है।।


मैं गुजरा गांव की गलियों से, मुझे कई दिलदार मिले।

उड़ती आंधी से ख़्वाब मिले, कुछ दफन नगीने नायाब मिले।।

कुछ गूलों से भरे वो बाग मिले, कंही लाचारी के दाग मिले।

कुछ प्यार के मारे यार मिले, और जिद्दी तो बेशूमार मिले।।

कुछ मुझ जैसे बड़बोले थे, कुछ थोड़े से भोले थे।

कूछ जीना सिखा रहे थे, कुछ मुश्किल से जी पा रहे थे।।


मैं तो सफर पे निकला राही हुँ, बस मिलना है, चले जाना है।

यादें बांध ली है सामान में, अब मेरा कंही और ठिकाना है।।


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