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प्रिया को...!!

प्रिया को...!!

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पायी पाती, पढ़ रहा मैं

छंद जस प्रति वाक्यांश सब

भोर सी सौरभ समीरण

बांचता मैं प्रति शब्द नेही,


थे अलंकृत शब्द भावुक

रस सने अति प्रेममय

अनुभूति तुम शाश्वत हिए में

आऊँगा छूने...तुम्हें मैं,


बस प्रतीक्षा कुछ दिनों की

यँह अवकाश में व्यवधान बहु

तुम ह्रदय में, श्वांस में तुम

मैं कहाँ हूँ दूर ...प्रेयसी,


कर्तव्य की पाबन्दियों में

बस लिखूँगा हद तलक मैं

कर्विमन में हा ! उदासी

स्पंदन ह्रदय का तुम सुनो,


क्या पता यँह जिन्दगी

क्या लिखे वक्री इबादत

मृत्यु की अठखेलियाँ

ज़िंदगी के खेल संग,


सप्तपद की शपथ मुझको

मैं मीत नहिं मनमीत हूँ

मैंने पढ़ा रग - रग तुम्हें

व्यर्थ हिय का यह कथानक,


मैंने गढ़ा समझा गहन

मधुनिशा की गोद में

मोल क्या इन बिंदुदृग का

जानता मनभाव संदल,


शब्द जब बौने हुए, तो-

मौन मुखरित हो गया

पीर की आलोढना को

भंगिमा में सब कह गया,


छू गया हर शब्द तनमन

री ! "वह" वर्जनाएं भीत थी'

चंचला रमणा प्रिया अब

धैर्य का भूषण सजे,


स्मृति पटल की रेणु वामे !

सतीत्व का मंगल तिलक

प्रणय का अभिषेक चंदन

सत रक्तिमा अहिबात की,


वेद की तुम ऋचा सी

मैं छंद पावन बन सकूँ

विपति में रणचंडिका तुम

मैं शौर्य आतप बन सकूँ,


अय्धांगिनी गिरजा स्वरूपा

तुम हमसफर हमराह भी

अल्हाद की सत व्यञ्जना औ'-

उर वेदना की आह भी,


द्वंद से जाकर परे तुम

रंग भर दो अल्हाद के

अनुभूतियाँ ही रिक्तता को

पूर्ण करने में सबल,


दुर्गेश्वरी का ताप तुममें

लावण्य लक्ष्मी से मिला

स्मित अधर संजीवनी मय

हे देवि प्रणयन तरु खिला।।


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