हमने क्यों ऐसा सोचा
हमने क्यों ऐसा सोचा
वाह भाई वाह
क्या है चाह?
हमने कहा
और आपने सुना।
आप ही गुरु
बस हो गए शुरु
ओर आप ही चेला
बस अपना इल्म आगे ठेला।
दुनिया धुत लोगों से भरी पड़ी है
आगे बढ़ने की होड़ शुरू हुई है
"एक का दुगुना" बोलो ओर कई हजार लोग मिलेंगे
अपना सब कुछ बेचकर जुआ जरूर खेलेंगे।
कोई कमी नहीं ध्रुव तारों की
दिन में दिखाएंगे चमक सितारों की
बोलेंगे लगाओ बोली "चाँद पाने के लिए"
यहाँ कई ऐसे भी मिलेंगे जो " हाँ " कह देंगे जाने के लिए।
कोई कमी नहीं है चोट खाने वालों की
परवान चढ़ने के लिए परवानों की
बाद में रोएंगे और पछताएंगे
अपनी मूर्खता पर आंसू बहाएंगे।
पर ये मत समझ न "सब मूर्ख हैं"
उन्हें अपने आप में "गर्व है"
कोई माई का हमें बेवकूफ नहीं सकता
हम वो चीज़ है जो तारों को तोड़कर भी ला सकता।
लो कर लो बात
गधे ने मारी लात
फिर भी टांग ऊँची की ऊँची
कहेंगे "यह तो चाल थी हमारी समझी ओर सोची।
"जनाजा निकलने वाला है"
फिर भी कहेंगे दिलवाला हूँ मैं
अभी तो दूसरी शादी रचाने जा रहा हूँ
"इतना तो दम है मुझ में" पर शरीर से मरे जा रहा हूँ।
उन्हें मिर्ची तो जरूर लगी
पर बोले "बात तो सच्ची होगी"
हमारी मति को ग्रहण लग गया होगा
वरना इस उम्र में हमने क्यों ऐसा सोचा होगा।