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कभी बस यूँ ही !

कभी बस यूँ ही !

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कभी बस यूँ ही

तुम्हें मेरा ख्याल आता है क्या ?


यूँ ही कभी सुबह आँखें मलते,

धुंधली सी कुछ मेरी तस्वीर,

या अलमारी से,

कभी कपड़े निकालते ही,

मेरी पसंद का कुछ पहनने का,

जी करता है क्या ?

कभी बस यूं ही.......


तुमने टाई की,

नॉट बांधनी तो सीख ली होगी ?


मगर टिफ़िन देने दरवाज़े तक,

तुम्हें अब कोई आता है क्या ?


मुझे पता है तुम अपना फ़ोन,

अब भी टेबल पर रख कर ही,

गाड़ी तक पहुंच जाते होंगे,


वापस मुड़कर अब कोई तुम्हें,

फोन हाथ मे लिए नज़र आता है क्या ?

कभी बस यूँ ही

तुम्हें मेरा ख्याल आता है क्या ?


तुम्हारे डेस्क पर मेरी तस्वीर वाला फ्रेम,

क्या वो अभी भी वही है ?


पर वो चेहरा तुम्हें,

हर घण्टे फ़ोन तक ले जाता है क्या ?


मिलाते हो फ़ोन भी तो कोई फ़ोन,

एक घण्टी में उठाता है क्या ?

कभी बस यूँ ही,

तुम्हें मेरा ख्याल आता है क्या ?


तुम हार थक कर जब घर जाते हो,

तुम्हारी गाड़ी तक,

तुम्हारे कांधे से बैग उतारने,

अब कोई आता है क्या ?


डाइनिंग टेबल पर,

तुम्हारे लिए खाने की थाली कोई लगाता है क्या ?

कभी बस यूँ ही,

तुम्हें मेरा ख्याल आता है क्या ?


थक हार कर,

जाते हो बिस्तर पर जब तुम,

किसी की आँखों में खुद को,

तलाशते हो क्या अब भी ?


जुल्फों को किसी की सँवारते हो क्या ?

कभी बस यूँ ही,

तुम मेरे बारे में भी सोचते हो क्या ?


अच्छा मुझसे जुड़ा कोई सवाल,

घर आता है क्या ?

कभी बस यूँ ही,

तुम्हें मेरा ख्याल आता है क्या ?



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