वृहद त्राण...
वृहद त्राण...
अंतस की पीड़ा से...
व्यथित आकाश !
विस्तार है वरदान...
या है अभिशाप !
दिग्भ्रमित सा बैठ...
सोच रहा !
अंतहीन होने में..
सुख कहाँ !
जिस यात्रा का कोई..
मंतव्य नहीं !
वृहद त्राण उससे बड़ा....
कोई नहीं.....!
अंतस की पीड़ा से...
व्यथित आकाश !
विस्तार है वरदान...
या है अभिशाप !
दिग्भ्रमित सा बैठ...
सोच रहा !
अंतहीन होने में..
सुख कहाँ !
जिस यात्रा का कोई..
मंतव्य नहीं !
वृहद त्राण उससे बड़ा....
कोई नहीं.....!