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Prateek choraria

Classics

4.9  

Prateek choraria

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बचपन

बचपन

1 min
540


आसमां की चादर छोड़ जमीं पे गिरी पानी की बूंद

निकल पड़ा कुनबा बचपन का, अपनी कोमल पलकें मूंद

खुशी से मुस्कान बिखरी जैसे चेहरे पे दूज का चांद 

सुकून मिला दिलों में जैसे मिल गई सागर में सांझ


धुएं का गुरूर तोड़ मिट्टी की ख़ुशबू बिखर पड़ी

मैदानों में सरसों की पीली सी चादर उमड़ पड़ी

खेत-खलिहानों में जहां कली भी ना खिल पाई है

आज इन्द्र देव ने खुद आकर वहां पुष्पांजलि बिछाई है


अंगड़ाई लेकर रंगो से रंगा इन्द्रधनुष भी छा रहा

पर्वतों की दूरियां मिटाता जैसे एक चांद शरमा रहा

पंछी, नर, नारी, बच्चे सब अमृत में झूम रहे

मेरा गांव, ये घर और छत इस अमृत को चूम रहे


कागज़ की कुछ कश्तियां अब इठला के बह चली

दिलों की शरारती मस्तियां अब इतरा के कह चली

की... आसमां की चादर छोड़ जमीं पे गिरी पानी की बूंद

निकल पड़ा कुनबा बचपन का, अपनी कोमल पलकें मूंद।


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