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आज की शिक्षा

आज की शिक्षा

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पूछता हूं खुद से मैं आज ये सवाल,

क्यों हो रहे हैं अब शिक्षा के बुरे हाल?


बस्ता भारी बोझ से, किताबों की एक फोज से,

क्यों ढूंढ़ नहीं पाता बच्चा खुद को खुद की खोज से?


भीड़ खड़ी है, लोग धक्का लगाते,

पायदान हैं कम सब पहुंच ना पाते।


पहुंचने को वहां जहां ख्वाब बनें हैं

खुद से ही क्यों वो अब हार हैं जाते? 


क्यों इतना दबाव कि सहमा है बचपन,

उम्र है नाबालिग पर लगता जैसे वो पचपन।


स्कूल, कॉलेजों में क्यों कफ़न पड़े हैं,

बच्चों की कलाइयों में अब ज़ख्म बड़े हैं।


कमर झुकी है अब इस बोझ के तले,

मां बाप की सोच में कॉम्पटीशन ही पले।


बढ़ती हुई महंगाई ने हर कंधा जला डाला,

क्यों शिक्षा को लोगों ने एक धंधा बना डाला।

 

अब शिक्षित नहीं आरक्षित हर इंसान,

हो रही जब जातियों से योग्यता की पहचान।


कपड़े के फंदों में लटकता अब एक बच्चा,

क्या हुआ अगर रह गया वो थोड़ा सा कच्चा।


हारा है वो ज़िन्दगी के बस एक इम्तिहान में,

क्यों भाता नहीं लड़ना उसे अपनी हर एक हार में।


मेहनत थी सच्ची बस किस्मत खा गई गच्चा,

रखो सर हाथ क्योंकि तुम्हारा ही है वो बच्चा।


बताओ उसे क्या होगा गर वो हुआ सफल

पर ये भी तो बतलाओ की कैसे होना है खड़ा,

कैसे लड़ना कमियों से गर वो हुआ विफल।


दूध के ग्लास खाली अब उनमें भरना है जाम,

सबकी नज़रें मैली, दिमाग में भरा काम।


खोखली है शिक्षा और विचारों पर ताला,

ट्यूशन जरूरी हुई पर बंद पड़ी है शाला। 


क्यों हो रहे हैं अब शिक्षा के बुरे हाल?

पूछता हूं खुद से मैं आज ये सवाल।


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