साहसी नारी
साहसी नारी
किलकारियां गूंजती चीखों में ये कैसा मंजर आ रहा
विध्वस्त समाज का घोर कलंक हर माथे यूं मंडरा रहा,
देख विलोचन अश्रु बहे, रक्त बहे अब स्वाभिमान सबब
वस्त्र फटे कई रूहें जली अब वासना, काम मन भा रहा।
मूक हुई कई जान यहां जो हैवानों का परिहास बना
पर कटे उस पक्षी के जो इस दुनिया में खास बना,
छीन कर आरज़ू औरत की उसके वस्त्र भी तार किए
झकझोर दिया उस जिस्म को जो एक मूरत समान बना।
बिक चुकी इंसानियत और ईमान भी अब लाश बना
राजनेता अब इंसान नहीं वो कुर्सी का अभिलाष बना,
खुलता कानून भी राज़ तले अब इंसाफ तराजू टूट रहा
यहां कानून मिट्टी दबा, संविधान लोकपाल काश बना।
चीखती, पुकारती, खरोंचती वो रोकती
निशब्द सी विचारती वो अश्रुओं को पोंछती,
वो निर्भया वो आसिफा, प्रियंका या हो कामिनी
वो साहसी वामांगिनी वो नारी रूप धारिणी।
कलंक हो या धारणा वो हर जंग को जीतती
जो शैतान का संहार करे काली का एक रूप थी,
वो वीर लक्ष्मी या गर्वित चेन्नमा बाई जैसे दामिनी
वो निर्भया वो आसिफा प्रियंका या हो कामिनी
वो निर्भया वो आसिफा प्रियंका या हो कामिनी
वो निर्भया वो आसिफा प्रियंका या हो कामिनी
वो साहसी वामांगिनी वो नारी रूप धारिणी
वो निर्भया वो आसिफा प्रियंका या हो कामिनी।