STORYMIRROR

Prateek choraria

Abstract

4  

Prateek choraria

Abstract

यूहीं पलट जाए ज़िंदगी

यूहीं पलट जाए ज़िंदगी

1 min
337

किताबों के पन्नों को पलट कर सोचता हूं,

यूहीं पलट जाए ज़िंदगी तो क्या बात है।


ख़्वाबों में रोज़ मिलते है जो मुझसे,

हकीकत में मिल जाए तो क्या बात है।


कुछ मतलब के लिए ढूंढते है जो मुझे,

बिना मतलब के पुकारे तो क्या बात है।


मरने पर तो रुक ही जाएगी ये धड़कने,

कोई बातों से रोक दे तो क्या बात है।


जो शरीफों की शराफ़त में बात ना हो,

वो एक शराबी में हो तो क्या बात है।


ज़िंदा रहने तक तो खुशी दूंगा सबको,

जो मेरी मौत पे किसी को खुशी मिल जाए तो क्या बात है।


किताबों के पन्नों को पलट कर सोचता हूं,

यूहीं पलट जाए ज़िंदगी तो क्या बात है...

क्या बात है । 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract