Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Prateek choraria

Others

4.9  

Prateek choraria

Others

कुछ ही पल हमारा

कुछ ही पल हमारा

2 mins
245


कुछ ख्याल आया दिल में जब

देखा एक तारा

क्या होता, गर पास होता

कुछ ही पल हमारा?

सांसो की गिनती कर क्या

मायूसी चेहरों पे खलती

या मुस्कराती सुनहरी ये यादें

पलकों में पलती!


याद है वो माँ का आँचल जो

महकता था चन्दन सा

याद है वो सारी गलियाँ जहाँ

गुज़रा बचपन चंचल सा,

वो खेत और मिट्टी के टीलों

पर घूम कर यूँ आना

पानी भरने मटका लिए कुंड

तालाब कुओंं पर जाना,

लुक्का छुपी, गिली डण्डा और

पकड़म पकड़ाई ही थे हमारे खेल

पिरोलें मकान और परिवारों में थे

प्यार भरे आपसी मेल,

मेलों में जाना और दादाजी के

कंधों पर बैठना

पापा से ज़िद करना और वो

झूठी मुठी का रुठना,


गाँव की मिट्टी वो बरगद का पेड़

और उसकी छांव

चुभते नहीं थे वो पत्थर भागने

पर यूं नंगे पाँव,

डाकिए का इंतज़ार और डाकघर

जाकर चिट्ठियां लाना

उस पर लगी डाक टिकट का

निकालकर डायरी में चिपकाना,

भुली बिसरी बातें छोड़ बस मस्ती

करना दिन सारा

खटिया डाल कर सोना और ढूँढना

सप्तरिषि और ध्रुव तारा,

दाँत मांजना और वही कुछ जोड़ी

कपड़ों में इतराना


पढ़ने हँस कर जाना न कोई

बहाना बनाना,

वो दोस्ती यारी में खाना भी

बाँट कर खाना

कभी कभी टिफिन को कक्षा में

ही चट कर जाना,

पाटी-बरते छोड़ स्याही से लिखने

को मन मचलता था

पापा की कलम से नाम लिखने

पर ही फिर ये संभलता था,

ना इतवार जाने की न सोमवार

आने की समस्या थी

हर दिन ख़ुशनुमा हर पल में बस

ढेर सारी ख़ुशियाँ थी,

बहन से लड़ना झगडना फिर

प्यार दिखाना कभी भुला नहीं

बंधवाकर राखी फूलों वाली ये

हाथ कभी खाली छूटा नहीं,


दूरदर्शन पर वो चित्रहार का हर

एक गाना याद है

अंताक्षरी, रामायण, महाभारत का

वो ज़माना याद है,

याद है जब पहली बार चेतक

घर आया था

खूब सवारी की थी जब पापा ने

पीछे बिठाया था,

वो बस्ते झोले लटकाकर स्कूल की

ओर बढ़ता चला मैं

शारदे माँ को याद कर वो प्रतिज्ञा

पढ़ता चला मैं,

घर आकर माँ ने हाथों से जब खाना

खिलाया

मैंने भी दिन भर की बातों का लेखा

जोखा उनको सुनाया,

काश वो पल वो बचपन यूँ लौट

आता दोबारा

क्या होता, गर पास होता कुछ

ही पल हमारा।।


Rate this content
Log in