STORYMIRROR

Prateek choraria

Abstract

4  

Prateek choraria

Abstract

मृत्यु

मृत्यु

2 mins
434

चलो ले चलूं छांव तले एक इच्छा को बतलाने,

कैसे उठा मेरे मन में सवाल, क्या मृत्यु है? अब जानें।

चल रहा था सड़क पर अपने ख्वाबों में मैं कहीं गुम सा,

ठहरे कदम स्तब्ध मन सुन विलाप शोरगुल सा।


अर्थी उठाए चार कांधें तैयार थे पदचाप बनाने,

रों रही थी औरतें क्यों ले जा रहे हो इन्हे जलाने।

राम नाम एक सत्य है कह चल दिए शमशान तरफ,

शरीर पड़ा नील सुर्ख और ठंडा जैसे कोई बर्फ।


ज़िंदा रहकर मंज़िल छूने जो सारी मुश्किलें सह गया,

आज आसमान में उड़ने को जो पर ढूंढता रह गया।

चल दिया मैं भी शमशान तरफ ढूंढने मन की जिज्ञासा,

सवाल था कि क्या है मृत्यु, क्या है इसकी परिभाषा ?


देह जली धू धू करके वो स्वप्न सा एक प्रतीत था,

ना वस्त्र बचे ना ये काया, इस प्रकृति का ये प्रतीक था।

रूह निकलकर बोली मुझसे आओ मैं बतलाती हूं,

कौन हूं मैं और कौन है मृत्यु आज तुम्हे समझाती हूं।


सांसें चलती इस कदर, की वक़्त कभी ठहरता नहीं,

मैं वक़्त का एक स्वरूप हूं जो सांसों से भी संभलता नहीं।

मृत्यु का कोई रूप नहीं और अंतःमन ये नश्वर है,

जो कर्म हमारे परखे है वो बस आलौकिक ईश्वर है।


इस लोक परलोक की वाणी में मृत्यु नाम से मुझे जानते हो,

शरीर का रूह से अलग होना ही मृत्यु को तुम मानते हो।

अवसान, निधन हो या विनाश, सब इसके ही रूप हैं,

पर थक कर चीरनिंद्रा में सोना ही इसका एक प्रारूप है।


मैं तो बस एक आत्मा हूं जो तेरा कभी एक अंग रहा,

मोह माया जिज्ञासा और भ्रम में जीना मेरा भी प्रसंग रहा।

पर मृत्यु एक पहेली है जिसका ना कोई जवाब यहां,

उस पार एक जहां और भी है रास्ता जिसका सिर्फ मृत्यु जहां।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract