बुलंदियों को चुन
बुलंदियों को चुन
खुद की लकीरें चीर कर बुलन्दियों को चुन के दिखा
निकली है अवाज़ तो तू गौर से बस सुन के दिखा,
कांटे हो या पत्थर बस तू आगे बढ़ता चल
रास्तें हैं नकली तो असलियत को बुन के दिखा।
मंजिलें नहीं मुश्किल गर हिम्मत है तुझमें
कर वही जो दिल कहे बस खोज खुद को खुद में,
दुनिया से न डर बस डर उस खुदा से
जो माँ बाप की शक्ल लेकर बस रहा है तुझमें।
रास्ते ये लम्बे सफ़र भी तो कम नहीं
जंगल ये गहरा और रोशन भी चमन नहीं,
लगा निशाना निःसंकोच तू आँख देख बस चिड़िया की
क्या हुआ गर तुझमें एक एकलव्य और अर्जुन नहीं।
खुद में खोज एक विजेता और बन जा तू एक प्रतीक
तूझे पुकारे दुनिया छीन कर तुझसे तेरा अतीत,
उठ खड़ा हो निःशब्द कर धनुष के अहंकार को
अचूक है तू, तेरी प्रतिष्ठा, भेद निशाना सटीक।
ढ़ूंढ़ सफलता हार हटा कर बन जा तू एक शब्दकोश
शिखर पर पहुँच चिल्ला और आवाज़ को बना तेरा उध्घोष,
पलकें तेरी सपना सींचे, सींचे तेरी उमीदें
मिले हर मंजिल तुझे तेरा चेहरा दिखे एक परितोष।
खुद की लकीरें चीर कर बुलन्दियों को चुन के दिखा
निकली है आवाज़ तो तू गौर से बस सुन के दिखा।