Ignite the reading passion in kids this summer & "Make Reading Cool Again". Use CHILDREN40 to get exciting discounts on children's books.
Ignite the reading passion in kids this summer & "Make Reading Cool Again". Use CHILDREN40 to get exciting discounts on children's books.

Deepak Kaushik

Horror Tragedy Action

3  

Deepak Kaushik

Horror Tragedy Action

योद्धा

योद्धा

15 mins
397


 यह कथा भारतीय सेना और सेना के वीर योद्धाओं को समर्पित है। और उन नीच नेताओं के मुंह पर जूता है जो भारतीय सेना के शौर्य पर प्रश्न चिन्ह लगाते है।

 हम भारतीय सेना और उसके वीर सैनिकों के साथ है।

इस अनोखी धरती पर अक्सर ऐसी घटनाएं घट जाती है जो मानव बुद्धि की समझ से परे होती है। जहां तर्क काम नहीं करते। विज्ञान के नियम काम नहीं करते। ऐसी ही एक घटना द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान घटी थी जब भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी शत्रु की सेना की एक टुकड़ी से लड़ते हुए जंगलों में भटक गई थी। ऐसे में भारतीय सेना के एक कर्नल ने उस टुकड़ी की सहायता की और उन्हें सुरक्षित उनकी कम्पनी तक पहुंचाया। बाद में पता चला कि उन कर्नल की दो दिन पूर्व ही बम धमाके में मृत्यु हो चुकी थी।

प्रस्तुत कथा उपरोक्त घटना से प्रेरित है। इस कथा में द्वितीय विश्व युद्ध के स्थान पर १९७१ के भारत पाकिस्तान युद्ध के परिवेश चुना गया है।

कथारंभ

१९७१।

भारत पाकिस्तान युद्ध प्रारंभ ही हुआ था। अभी भारतीय सेना अपने पूरे रंग में नहीं आयी थी। अत: पाकिस्तानी सेना कुछ घोंघे-सीपियां बटोरकर अपने गाल थपथपा रही थी, जबकि भारतीय सेना अभी गहरे उतर कर मोती-मूंगो की प्रतीझा में थी।

अपने आपरेशनल बंकर में बैठे मेजर भुल्लर कैप्टन राजेश को उनका टास्क समझा रहे थे। मेज पर एक नक्शा फैला हुआ था। मेजर भुल्लर के हाथ में एक पेन्सिल थी। पेन्सिल के संकेत से कैप्टन राजेश को बता रहे थे। बंकर में इन दोनों के अतिरिक्त मेजर भुल्लर के सहायक सूबेदार राम सिंह भी थे।

"यहां से लेकर ये जो लाल रंग की धारी देख रहे हो ये दुश्मन के इलाके मे उनकी पोस्ट है। जहां पर भी लाल घेरा दिखे वहां पर उनकी पोस्ट है। कुल छह पोस्ट है। पी-वन, पी-टू, पी-थ्री, पी-फोर, पी-फाइव और पी-सिक्स। तुम्हें दुश्मन के इलाके ने जाकर इस पूरे एरिया की रेकी करनी है। दुश्मन की एक-एक एक्टिविटी पर बारीक निगाह रखनी है। दुश्मन क्या करता है, उसकी स्ट्रेन्थ कितनी है, वो क्या और कैसी तैयारी कर रहा है, उसकी आर्म्स-एमुनेशन की स्थिति वगैरह-वगैरह। छोटी से छोटी कोई भी बात मिस नही करोगे। अनावश्यक खतरा मोल नही लोगे। बस चुपचाप निगाह रखोगे। कुल ग्यारह लोगे की पार्टी जायेगी। सभी प्लाटूनो से जवान ले लो। तैयारी करने में कितना समय लोगे।"

"पन्द्रह मिनट सर"

"ओ के। तैयारी कर के सूचना दो।"

"सर एक बात कन्फर्म कर दे"

"पूछो"

"यदि दुश्मन सर पर आकर खड़ा हो जाय तो क्या करना है।"

"तो पार्टी के कमान्डर तुम होगे। जैसी परिस्थिति हो वैसा निर्णय लेने के लिये तुम स्वतंत्र होगे।"

"राम सिंह साहब, जरा मेरी कम्पनी को फोन लगा दीजिये।"

राम सिंह ने कैप्टन राजेश की कम्पनी में फोन लगाकर कैप्टन राजेश की तरफ फोन बढ़ा दिया।

"हां यादव! देखो दस जवान तुरन्त चाहिये। सारी प्लाटूनो से दो-दो तीन-तीन जवान ले लो। और वायरलेस आपरेटर कैप्टन मिश्रा की प्लाटून के हर दयाल साहब को ही लेना। सारे जवानो का ड्राई राशन, वाटर बाटल, एमूनेशन, आर्म सब फिट होना चाहिये। सारी व्यवस्था तुम स्वयं चेक करना। मुझे दस मिनट में सब कुछ ओ के चाहिये। मैं अभी पहुंच रहा हूं।"

फिर मेजर भुल्लर से बोला

"सर! मुझे अनुमति दीजिये। मैं सारी व्यवस्था करके जवानों सहित हाजिर होता हूं।"

कैप्टन राजेश खड़ा हो गया। और अटेन्शन हो गया।

"ओ के। मैं तुम्हारी प्रतीझा कर रहा हूं।"

कैप्टन राजेश ने सैल्यूट मारा और तेज कदमों से बंकर से बाहर निकल गया।

कैप्टन राजेश चौदह मिनट बाद ही मेजर भुल्लर के सामने उपस्थित था। सभी जवान अटेन्शन मुद्रा में खड़े थे। मेजर भुल्लर जवानों को सम्बोधित कर रहे थे।

"जवानों! आज आप को एक बहुत ही महत्वपूर्ण काम सौंपा गया है। आपको दुश्मन के इलाके में जाकर उसकी रेकी करनी है। मैं जानता हूं कि ये काम आसान नहीं है। लेकिन आज हाई कमाण्ड ने आप पर भरोसा करके आपको हीरो बनने का अवसर दिया है। और मुझे आप की काबिलीयत पर पूरा भरोसा है। मैं आप सभी लोगों को दया निधि ईश्वर के सुपुर्द करके आप लोगों की सफलता के लिये प्रार्थना करता हूं।"

पार्टी विदा हो गयी।

शत्रु के क्षेत्र में।

कैप्टन राजेश की टीम पी-वन के पीछे से चली। जब तक दिन का प्रकाश रहा टीम जंगलों से छुपकर शत्रु की गतिविधि को देखती रही। आपरेशनल बंकर मे बैठे मेजर भुल्लर को वायरलेस पर सूचना देती रही। पी-थ्री तक निष्कंटक चले गये। अब तक अंधेरा बहुत घना हो गया था। ऊपर से झींगुरों की आवाज वातावरण को रहस्यमयी और भयानक बना रही थी। इन सारी बातों से बेखबर ये जांबाज सिपाही सिंगल फार्मेशन में आगे बढ़े जा रहे थे। एक घण्टे तक बराबर चलते जाने पर भी पी-फोर नहीं पहुंचे। अब कैप्टन राजेश घबराये।

"अब तक तो हमें पी-फोर पहुंच जाना चाहिये था।"

कैप्टन राजेश फुसफुसाये। वायरलेस आपरेटर हर दयाल जो कैप्टन राजेश के पीछे चल रहे थे, आसमान की तरफ देखते हुये बोले-

"साहब! हम रास्ता भटक गये है। हम दुश्मन के एरिया में काफी अंदर तक आ गये है।"

"क्या? क्या कह रहे हो?"

कैप्टन राजेश चौक पड़े।

"आसमान की तरफ देखिये"

वायरलेस आपरेटर हर दयाल के ठीक पीछे लेफ्टिनेण्ट अमन चल रहे थे। उन्होंने और कैप्टन राजेश दोनों ने एक साथ आसमान की तरफ देखा।

"हर दयाल साहब ठीक कह रहे है। सर!"

लेफ्टिनेण्ट अमन ने फुसफुसाते हुये कहा।

"हे ईश्वर! अब क्या होगा?"

कुछ पल सोचकर कैप्टन राजेश ने कहा

"सारे लोग करीब आ जाओ और गोलाकार पोजीशन लेकर जमीन पर लेटकर चारो तरफ बारीक निगाह रखो। ध्यान रहे हम दुश्मन के एरिया में है। किसी की भी गलती हम सबकी जान खतरे में डाल देगी। बीच मे केवल मै, हर दयाल साहब और लेफ्टिनेण्ट अमन ही रहेंगे।"

पलक झपकते ही यह व्यवस्था बन गयी। हर दयाल, लेफ्टिनेण्ट अमन और कैप्टन राजेश ने जल्दी-जल्दी कुछ मंत्रणा की और मेजर भुल्लर को वायरलेस पर लिया।

"सर! हम लोग भटक कर दुश्मन के एरिया में काफी अंदर चले आये है। ओवर।"

"सो सैड। क्या तुम अंदाजा लगा सकते हो कि किस एरिया में हो। ओवर।"

"सर अभी अंदाज लगा पाना मुश्किल है। फिर भी अंदाज करके बतायेंगे। ओवर।"

"ठीक है। जल्दी ही सूचना दो तो तुम्हारी सहायता भेजी जा सकती है। ओवर।"

"ठीक है। ओवर।"

"गो अहेड मैन! घबराना मत। धैर्य से निर्णय लेना। ईश्वर तुम्हारे साथ है। ओवर।"

"सर! हमें अपनी चिन्ता नहीं है। मेरी जिम्मेदारी पर दस जवानो की जिन्दगी है। ओवर।"

इसी बीच वायरलेस आपरेटर हर दयाल ने कैप्टन राजेश से धीरे से कुछ कहा।

"हमे भी तुम लोगो की चिन्ता है। मै हाई कमान से बात करके कुछ करता हूं। ओवर।"

"सर! वायरलेस आपरेटर हर दयाल साहब कह रहे है कि दुश्मन के एरिया में हमारे वायरलेस की फ्रीक्वेन्सी पकड़ी जा सकती है। ऐसे में हम लोगों का बातचीत करना खतरे से खाली नही हो सकता। ओवर।"

"समझ सकता हूं। खतरा है। फिर भी थोड़ी थोड़ी देर पर अपनी सुरझा की सूचना देते रहना। ओवर।"

"ओके सर! ओवर।"

और वायरलेस बंद कर दिया गया।

कैप्टन राजेश, लेफ्टिनेण्ट अमन और वायरलेस आपरेटर हर दयाल तीनो जमीन पर बैठ गये। कैप्टन राजेश और लेफ्टिनेण्ट अमन नक्शा खोल कर अपनी स्थिति को जानने का प्रयत्न करने लगे। । चंद पल ही बीते थे कि एक जवान फुसफुसा कर बोला-

"सर! कोई आ रहा है।"

तीनों जो अभी तक बैठे हुये थे, झटके से लेट गये।

"पोजीशन ले लो। परंतु फायर मत करना।"

आने वाला व्यक्ति बहुत सावधानी से इधर-उधर देखते हुये और किंचित स्वयं को छुपाते हुये आ रहा था। कैप्टन राजेश की टीम के करीब आकर उसे इन लोगो की उपस्थिति का भान हुआ। वह भी सावधान होकर जमीन पर लेट गया। कैप्टन राजेश ने सुनिश्चित किया कि यह व्यक्ति अकेला है। इसके साथ कोई भी अन्य व्यक्ति नहीं है।

"मुझे कवर दो। मै इस व्यक्ति के पास जा रहा हूं। लेकिन कोई भी अपनी पोजीशन न छोड़े।"

कैप्टन राजेश उस व्यक्ति की तरफ बढ़ा। उस व्यक्ति के पास शायद हथियार के नाम पर कुछ भी नही था। उसकी भाव-भंगिमा से लगा कि वह कुछ असहज हुआ है।

"जो कहता हूं वही करो अन्यथा गोली मार दूंगा"

कैप्टन राजेश ने अपनी लाईट मशीनगन उसकी तरफ तान दी। उस व्यक्ति ने लेटे ही लेटे समर्पण की मुद्रा मे हाथ ऊपर तान दिये।

"घुटनो के बल बैठो।"

वो घुटनो के बल बैठ गया। कैप्टन राजेश ने अपनी जेब से एक छोटी सी टार्च निकाली। उसके चेहरे से लेकर उसकी वर्दी तक को देखा। उसकी वर्दी पर छाती की जगह पर खून का धब्बा था। वर्दी और वर्दी पर लगे बैज उसके भारतीय सेना के होने की पुष्टि कर रहे थे। कैप्टन राजेश ने उसका बैज ध्यान से देखा। कैप्टन की रैंक थी।

"भारतीय सेना के कैप्टन हो?"

कैप्टन राजेश ने प्रश्न किया।

"हां!"

"मै भी भारतीय सेना का कैप्टन हूं। अपना पासवर्ड बताओ।"

उसने अपना पासवर्ड बताया। कैप्टन राजेश ने अपना पासवर्ड बताया। संतुष्ट होने पर कहा-

"ओ के। रिलैक्स हो कर साथ आ जाओ।"

कैप्टन राजेश कैप्टन को साथ लेकर अपने साथियों के पास आ गया। नये साथी का अपने सभी साथियों से परिचय कराया।

"आपका नाम क्या है।"

"रिपुदमन सिंह राठौर।"

"आपके सीने पर ये खून का धब्बा कैसा है।"

"लड़ाई चल रही है। खून खराबा तो होता ही रहता है।"

कैप्टन राठौर हंसे। फिर बोले-

"एक गोली छाती चूमती हुयी निकल गयी है।"

"आप दुश्मन के एरिया में कैसे आये थे।"

"अपनी टीम के साथ रेकी करते हुये। मै अपनी टीम से बिछड़ कर अलग हो गया। ना जाने मेरी टीम कहां और किस परिस्तिथि मे है। वापस अपनी कम्पनी तक पहुंची भी या अभी भी दुश्मन के एरिया मे भटक रही है।... आप लोग भी शायद रेकी करते हुये ही यहां तक आये है।"

"हां! हम लोग भी दुश्मन की टोह में निकले थे। रास्ता भटक कर यहां आ पहुंचे है।... हर दयाल साहब मेजर साहब को मिलाइये उन्हे अपनी सूचना दे दी जाय।"

"ऐसी गलती मत करिये। मुझे पक्की सूचना है यहां से हमारी फ्रिक्वेन्सी पकड़ ली जायेगी।"

"लेकिन थोड़ी देर पहले तो मैंने उनसे बात की है।"

"आप का भाग्य अच्छा था कि आप की फ्रिक्वेन्सी पकड़ी नहीं गयी है। फिर भी यदि आप वायरलेस पर बात कर चुके है तो यहां पर रुकना खतरे से खाली नहीं है। तुरन्त यहां से निकल चलिये।"

"लेकिन हमें रास्ते के बारे में कुछ पता नहीं चल पा रहा है।"

"मुझे अपनी कम्पनी तक जाने का रास्ता पता है। उधर ही निकल चलिये। एक बार अपनी सीमा के अन्दर पहुंच गये तो फिर आप अपनी कम्पनी चले जाइयेगा।"

"हां, ये ठीक रहेगा।"

कैप्टन राजेश उठ खड़े हुये। उनके सारे साथी भी उठ खड़े हुये।

कैप्टन राठौर उन सभी को लीड़ करते हुये चलने लगा। थोड़ी दूर चलने के बाद ही गोला-बारूद चलने की आवाज सुनायी देने लगी। कुछ आगे बढ़ते ही हवा मे बारूद की गंध की भी आने लगी। सीमा पर घमासान युद्ध छिड़ा हुआ था।

"लगता है, अभी सारी पोस्ट क्लीयर नहीं हुयी है।"

कैप्टन राठौर ने कहा। इन बारहों व्यक्तियों की टीम कुछ और आगे बढ़ी। यहां से युद्ध झेत्र एकदम साफ दिखायी दे रहा था।

"कैप्टन राजेश साहब! हमारे एरिया में दुश्मन की चार पोस्ट है। उनमे से लगता है कि तीन पोस्ट तो क्लीयर हो चुकी हैं लेकिन एक पोस्ट क्लीयर नहीं हुयी है। इस पोस्ट पर दुश्मन ने हैवी मशीनगन लगा रखी है। इसलिये पोस्ट को क्लीयर करने मे कठिनाई हो रही है।"

कैप्टन राठौर ने चलते-चलते बताया। कुछ और आगे चलने के बाद कैप्टन राठौर पुन: बोले-

"कैप्टन राजेश साहब यहां से मै आपको सकुशल अपनी सीमा के अन्दर ले चल सकता हूं। कहिये तो आप को अपने एरिया मे पहुंचा दूं या यदि आप सहायता करे तो दुश्मन की पोस्ट पलक झपकते क्लीयर हो सकती है।"

"मैं आपका आशय समझ गया। मैं आपके साथ हूं। क्यों लेफ्टिनेण्ट अमन साहब?"

"मैं भी आपके साथ हूं"

कैप्टन राजेश ने अपनी टीम के सभी साथियों को करीब लेकर कहा-

"साथियों! सामने की पोस्ट पर हमारी सेना जी जान से लड़कर जीतने की कोशिश कर रही है। परंतु वो सफल इसलिये नही हो पा रही है क्योंकि यहां दुश्मन के पास भारी हथियार है। हमें अपनी मातृभूमि की सेवा का सुनहरा अवसर मिला है। हमें अपनी सेना को जीतने मे सहायता करनी है। हम करेंगे। लेकिन ये निर्णय मेरा है। यदि आप लोग लड़ना चाहे तो मेरे साथ आ जाये। अन्यथा कैप्टन राठौर साहब आप लोगो को वापसी का रास्ता बता देंगे। आप लोग सकुशल वापस चले जाये।"

किसी ने कहा

"साहब हम आपके साथ चले थे। आप के साथ है।"

किसी ने कहा

"साहब देश सेवा का यह अवसर आप हमसे क्यों छीनना चाहते है। देश सेवा हमारा अधिकार भी है और कर्तव्य भी। हम करेंगे।"

किसी ने कहा

"साहब हम जब घर से चले थे तो घर वालों से अंतिम विदाई लेकर चले थे। अब हम इसलिये वापस चले जाये कि यहां जान जाने का डर है।"

किसी ने कहा

"साहब देश की सेवा करते हुये बलिदान होकर हीरो बनने का गौरव आप अकेले क्यो पाना चाहते है।"

"तो चलो वीरो! आज हम दुश्मन को बता दें कि उन्होंने किन लोगों से पंगा ले लिया है। ये सारा आपरेशन साईलेन्ट होगा। इसी मे हमारी जीत है।"

सभी योद्धा सर पर कफन बांध कर चल पड़े। आगे-आगे कैप्टन राठौर, उनके पीछे कैप्टन राजेश और उनकी पूरी टीम। शत्रु की पोस्ट से चंद कदम की दूरी पर कैप्टन राठौर रुक गये। कैप्टन राजेश से बोले

"यहां एक संतरी पोस्ट है। इसे इस तरह हटाना है कि रास्ता साफ भी हो जाय और पोस्ट वालों को पता भी न चले। मेरे साथ लेफ्टिनेण्ट अमन को भेजिये।"

"मै स्वयं चलता हूं।"

"नही! आपकी यहां आवश्यकता अधिक है।"

कैप्टन राजेश लेफ्टिनेण्ट अमन से-

"जाइये।"

लेफ्टिनेण्ट अमन आगे आ गये। कैप्टन राठौर ने कहा-

"प्लान ये है कि ये रास्ता सीधे पोस्ट की तरफ जाता है। आप इधर से पौधो और झाड़ियों से होते हुये ऊपर की तरफ जायेंगे। आपको संतरी के पीछे पहुंचने मे पांच मिनट का समय लगेगा। मै इस तरफ से पोस्ट की तरफ बढ़ूंगा। मै उसका ध्यान भटकाऊंगा आप पीछे से उस पर कंट्रोल करके चाहे उसे मार दीजियेगा चाहे गहरी बेहोशी मे डाल दीजियेगा। उसके बाद मेरे संकेत देने पर आप (कैप्टन राजेश से) पूरी टीम के साथ पोस्ट पर आक्रमण कर दीजियेगा। अचानक आक्रमण की स्थिति दुश्मन संभाल नही पायेगा। या तो मरेगा या आत्मसमर्पण करके बंदी हो जायेगा। याद रखियेगा दुश्मन को संभलने का मौका नहीं मिलना चाहिये अन्यथा हमें ईश्वर भी नहीं बचा सकेगा। बोलिये भारत माता की..."

"...जय"

सभी ने बहुत धीमे स्वर में नारा लगाया। आपरेशन शुरू हो गया। पांच मिनट के बाद कैप्टन राठौर का संकेत मिला। पूरी टीम पोस्ट के अन्दर धड़धड़ाती हुयी घुसी। घुसते ही पूरी टीम ने चारों तरफ गोलियां बरसानी शुरू कर दी। दुश्मन जब तक कुछ समझ पाता कैप्टन राजेश की टीम हावी हो चुकी थी। मशीनगन ठप कर दी गयी। दुश्मन के सारे सैनिक मारे गये। कुल पांच सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। कैप्टन राजेश की पूरी टीम जोश के साथ 'भारत माता की जय' के नारे लगाने लगे। कुछ ही देर मे सामने से भारतीय सेना के जवान पोस्ट पर चले आये। यहां जो देखा वो इनके लिये किसी चमत्कार से कम नहीं था। आने वाले सैनिको ने देखा दुश्मन की पोस्ट पर भारतीय सैनिक तो है परंतु किसी अन्य कम्पनी के। कैप्टन राजेश ने अपना पासवर्ड बता कर अपना परिचय दिया। आने वाली टीम के कमाण्डर लेफ्टिनेन्ट विशाल थे।

"सर! अपनी कम्पनी मे हम आपका स्वागत करते है। आपने जो किया वो अकल्पनीय है। लेकिन आप यहां तक पहुंचे कैसे?"

"हम ये सब बिल्कुल भी नही कर पाते यदि आपकी कम्पनी के कैप्टन राठौर हमारी सहायता न करते और हमारा मार्गदर्शन नही करते। अरे! कैप्टन राठौर कहां गये। अभी तो यहीं थे।"

कैप्टन राजेश की टीम भौंचक सी उन्हें इधर-उधर देखने लगी। लेकिन कैप्टन राठौर का कहीं निशान तक नही मिला।

"कौन? किसका नाम लिया आपने?"

"कैप्टन राठौर। कैप्टन रिपुदमन सिंह राठौर।"

कैप्टन राजेश ने अपनी बात दोहरायी। परंतु उन्हें इस बात पर आश्चर्य हुआ कि लेफ्टिनेन्ट विशाल कैप्टन राठौर का नाम सुनकर हैरान क्यों हुये।

"लेकिन ये कैसे हो सकता है।"

"क्या कैसे हो सकता है?"

"आप हमारे साथ आइये।"

कहकर लेफ्टिनेन्ट विशाल मुड़कर चल दिये। कैप्टन राजेश और उनकी टीम अपने कैदियों को लेकर लेफ्टिनेन्ट विशाल के पीछे चल पड़ी। लेफ्टिनेन्ट विशाल सबको लेकर अपने आपरेशनल हेड क्वार्टर पहुंचे।

"आप लोग यहां रुकें। मैं मेजर साहब को सूचना देकर आता हूं।"

कैप्टन राजेश की टीम वही रुक गयी। लेफ्टिनेन्ट विशाल कोई दस मिनट बाद मेजर यादव और अपने कमाण्डर कैप्टन पाण्डे के साथ वापस आये।

"सर! ये ...कम्पनी के कैप्टन राजेश है। इन्होने ही दुश्मन की आखिरी पोस्ट जीती है।"

मेजर यादव ने बड़ी ही गर्मजोशी से इस पूरी टीम से हाथ मिलाया।

"हम आप लोगो का हार्दिक स्वागत करते है। आपकी इस जीत को सेलिब्रेट करेंगे। लेकिन कैप्टन राठौर के बारे मे जो कुछ आप कह रहे है वो कैसे संभव है।"

"सर! आपकी सदाशयता के हम आभारी है। लेकिन आप लोगों को कैप्टन राठौर के बारे में इतनी हैरानी क्यों है?"

"इसका जवाब कैप्टन पाण्डे आपको देंगे।"

कहकर मेजर यादव ने कैप्टन पाण्डे की ओर देखा।

"साहब आप हमारे साथ आयें। बाकी आप लोग अभी यहीं रुकें।"

"नही साहब! मेरी टीम को मेरे साथ ही चलने दीजिये। बस मेरे इन बंदियों की व्यवस्था कर दीजिये।"

"ठीक है। ... राम दयाल साब! इन्हें अपनी कस्टडी में रखिये। आप लोग आइये।"

कैप्टन पाण्डे कैप्टन राजेश की पूरी टीम के साथ उस स्थान पर आये जहां युद्ध मे काम आ गये सैनिकों के ताबूतों को सम्मान के साथ रखा गया था। जिनकी संख्या अभी बढ़ ही रही थी। कैप्टन पाण्डे ने एक ताबूत का ढ़क्कन उठा दिया। ताबूत के अन्दर देखते ही कैप्टन राजेश और उनकी पूरी टीम को जैसे ४४० वोल्ट का झटका लगा। अन्दर कैप्टन राठौर का शव था। उनके सीने पर उसी स्थान पर गोली लगने का निशान था जहां उन्होंने देखा था। कैप्टन राजेश की टीम एक दूसरे का मुंह देखने लगी।

"दुश्मन ने साढ़े तीन बजे शेलिंग शुरू की थी। साढ़े चार बजे कैप्टन राठौर और उनकी टीम दुश्मन की पोस्ट एन-वन को क्लीयर करने निकल गये थे। पांच बजे उन्होंने एन-वन क्लीयर कर लिया। साढ़े पांच बजे एन-टू को क्लीयर किया। सवा छह बजे एन-थ्री को क्लीयर करने बढ़ रहे थे कि शत्रु की एक गोली उनके हृदय पर जा लगी। उन्हें शायद सांस लेने का भी अवसर नहीं मिला था। लेफ्टिनेन्ट विशाल उन्हीं की प्लाटून में थे। उनकी आंखों के सामने उन्होंने अंतिम सांस ली थी। वे ही उन्हें अपनी कम्पनी लेकर आये थे। क्या अब भी आप अपनी बात पर कायम हैं?"

कैप्टन राजेश ने एक दृष्टि अपनी पूरी टीम पर डाली। फिर कहा-

"हम ग्यारह लोग साझी हैं। कैप्टन राठौर का शव देखने के बाद तो हम और दृढ़ विश्वास के साथ कह सकते है कि वे कैप्टन राठौर ही थे।"

कैप्टन राजेश की बात पूरी होने से पूर्व ही मेजर यादव वहां पहुंच गये। कैप्टन राजेश की अंतिम बात शायद उनके कानों में पड़ी। परंतु इसे नजरंदाज करते हुये उन्होंने कहा-

"कैप्टन राजेश! आपकी कम्पनी में बात हो गयी है। मेजर भुल्लर आप लोगों को लेने स्वयं आ रहे है। तब तक आप लोगों के लिये चाय बन रही है। कोई और समय होता तो जश्न मनता, हंगामा होता, पार्टी होती। परंतु इस तनातनी के समय हम आपकी यही सेवा करेंगे। ना जाने किस समय आपकी कम्पनी को आप लोगों की जरूरत पड़ जाये। फिर भी अवसर मिलते ही हम आप लोगों के सम्मान में दावत अवश्य रखेंगे।"

कैप्टन राजेश ने शायद मेजर यादव की बात सुनी नहीं। या सुनी तो अनसुनी कर दी। कैप्टन राजेश अपलक कैप्टन राठौर के शव को देख रहे थे। अनायास ही यंत्रचालित से उनके हाथ जुड़ गये। उनके साथ ही उनकी पूरी टीम के हाथ जुड़ गये।

कैप्टन राजेश बोले-

"मैं सब समझ गया। ...धन्य है ये देश और इस देश की माटी, जो ऐसे-ऐसे योद्धाओं को जन्म देती है। जो जीते जी तो देश के लिये प्रण-प्राण से न्योछावर करते ही है मरने के बाद भी देश की रक्षा में लगे रहते है।"

कैप्टन राजेश और उनकी टीम ने कैप्टन राठौर को सैल्यूट किया और उनकी पूरी टीम मेजर यादव के साथ चली गयी।



Rate this content
Log in

More hindi story from Deepak Kaushik

Similar hindi story from Horror