Deepak Kaushik

Horror Tragedy Thriller

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Deepak Kaushik

Horror Tragedy Thriller

दर्द

दर्द

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480


अनिकेत की ड्यूटी देर रात समाप्त होती थी। अनिकेत एक होटल मे काम करता था। होटल से बाहर आते-आते उसे ग्यारह अवश्य बज जाया करते थे। हालांकि उसकी ड्यूटी समाप्त होने का समय दस बजे का था। परंतु रिलीवर के आते-आते और उसे अपना कार्यभार सौंपते, अधूरे कार्यो के बारे मे बताते-बताते ग्यारह अवश्य बज जाया करते थे। होटल से बाहर आते ही वो अपनी बाईक उठाता और जितना शीघ्र हो सके घर की तरफ चल देता। इस समय रास्ते लगभग सूनसान हुआ करते थे। इसलिये फुल स्पीड मे बाईक चलाने मे भी कोई खतरा नहीं हुआ करता था। होटल से घर के बीच एक स्थान अत्यधिक सुनसान रहता था। वैसे मुख्य मार्ग से जाया जाय तो पूरे मार्ग पर रात भर सवारियां चलती रहती थी। परंतु शीघ्र घर पहुंचने की उतावली के कारण अनिकेत यह सुनसान मार्ग चुन लेता था। वर्षो से यही क्रम चल रहा था। मगर आज का दिन कुछ अलग ही था। एक तो आज अमावस्या की रात थी। ऊपर से आसमान बादलों से भरा पड़ा था। एकाध बार बारिस भी हो चुकी थी। घटाटोप अंधियारे के सन्नाटे को मेंढ़को की आवाज ही भंग कर रही थी। वातावरण मे एक अजीब सा रहस्य घुला था। जिसे अनिकेत न समझ कर भी समझ रहा था। इस राह के मध्य पर आकर अनिकेत की बाईक अचानक से बंद पड़ गयी। बाईक का मीटर पर्याप्त पेट्रोल की सूचना दे रहा था। अनिकेत ने स्पार्क प्लक देखा। वह भी ठीक-ठाक स्पार्क दे रहा था। अनिकेत बाईक की जितनी इंजीनियरिंग जानता था वहां तक सब ठीक-ठाक था। अब अनिकेत के लिये एक ही रास्ता रह गया था कि वह बाईक को ढ़केल कर घर तक ले जाये। अनिकेत ने यही रास्ता चुना। अभी वह दो तीन कदम ही चला होगा कि पीछे से किसी स्त्री की आवाज आयी-

"अनिकेत !"

अनिकेत ने पीछे मुड़कर देखा। कहीं कोई नहीं था। अनिकेत इसे अपना भ्रम समझ फिर आगे बढ़ा। पुन: दो तीन कदम ही चला कि पुन: आवाज आयी-

"अनिकेत !" 

अब भ्रम की कोई संभावना नहीं रह गयी थी। उसने मुड़कर देखा। अब भी वहां कोई नहीं था। उसने साहस कर आवाज लगायी 

"कौन है?"

प्रत्युत्तर मे पुन: सन्नाटा ही रहा। इस समय तक वातावरण मे काफी ठंढ़ आ चुकी थी। अनिकेत ने चारो तरफ ध्यान से देखा। परंतु अब भी आवाज देने वाली नहीं दिखी। अनिकेत पुन: आगे बढ़ा। फिर वैसे ही आवाज आयी। अनिकेत बहुत ही साहसी व्यक्ति था। साहसी न होता तो अब तक उसे मूर्छा आ गयी होती।

"कौन है? सामने क्यो नहीं आती?"

"मै तुम्हे दिखायी नहीं दूंगी। बस तुम केवल मेरी आवाज ही सुन सकोगे।"

"परंतु तुम हो कौन?"

"मेरे बारे मे सुनकर भयभीत मत होना। मै तुम्हारा कोई अहित नहीं करूंगी। अपितु मेरा काम कर दोगे तो तुम्हारा कुछ उपकार ही करूंगी।"

"अच्छी बात है। तुम अपने बारे मे बताओ।"

हालांकि साहसी होने पर भी अनिकेत को भय लगने लगा था।

" मै एक प्रेत हूं। पिछले दो सालों से इस मार्ग पर भटक रही हूं। जब मै अपने बारे मे कुछ कह सकने मे समर्थ होती हूं तब इस रास्ते से कोई भी आता-जाता नहीं। सिर्फ तुम्ही को आते-जाते देखा है। इसलिये तुम्हे आवाज देकर रोका है। तुम्हारी बाईक भी मैने ही बंद की है।"

प्रेतनी चुप हो गयी। आवाज देने वाली एक प्रेत है यह जानकर अनिकेत को ठंढ़ होने के बावजूद भी पसीना आ गया था। परंतु उसकी पूरी बात सुकर उसका भय काफी कुछ समाप्त हो गया था। उसने पूंछा

"मुझसे क्या चाहती हो?"

"मेरी हत्या की गयी है। मेरे हत्यारो को सजा दिलाओ। यही मै चाहती हूं।"

"लेकिन इस काम को मै कैसे कर सकूंगा। ये काम तो पुलिस का है।"

"रास्ता मै बताऊंगी। तुम बस मेरे कहे अनुसार करते रहना"

"ठीक है। बताओ मुझे क्या करना है?"

"मेरे एक चचेरे भाई हैं। उनका नाम विशाल सिंह है। आजकल ... थाने पर पोस्ट है। तुम कल उनसे मिलकर मेरे बारे मे बताना। वे तुम्हारे कहे अनुसार काम करेंगे।"

"लेकिन तुमने अपने बारे मे तो कुछ बताया ही नहीं है।"

"मेरा नाम नलिनी है। अब से तीन वर्ष पूर्व मेरा विवाह अखिलेश नाम के एक व्यक्ति से हुआ था। यह विवाह दोनो परिवारो की सहमति से हुआ था। विवाह होकर जब मै ससुराल पहुंची तब पता चला कि मेरे पति वेश्याओं के पास जाया करते थे। उनके इस कृत्य ने उन्हे एक भयानक रोग दे दिया था। परंतु विवाह तक उनके घर वालो को इस बारे मे पता नहीं था। मुझे भी तब पता चला जब मै भी उसी रोग से ग्रस्त हो गयी। मुझे ये रोग अपने पति से मिला था। परंतु ससुराल वालों ने इसका सारा दोष मुझ पर डाला और मुझ पर दिन रात अत्याचार करने लगे। मै एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त हूं यह जानने के बाद भी मेरा इलाज नहीं करवाया। मै असमय ही मर जाऊंगी यह जानते हुये भी उन लोगो ने एक दिन मुझे बहुत मारा। इस पर भी संतोष नहीं हुआ तो मेरे बार-बार मांगने पर भी मुझे पानी तक पीने को नहीं दिया। दवा और इलाज तो दूर की बात थी। अंतत: प्यास, पीड़ा और रोग के चलते मेरी मृत्यु हो गयी।"

"ये तो तुम्हारी ससुराल के लोगो की बात थी। तुम्हारे मैके वालो ने तुम्हे बचाने की कोशिश क्यो नहीं की?"

"मेरे ससुराल वालो ने पैसा खर्च करके मेरी बीमारी के बारे मे झूठे डाक्यूमेंट बनवा रखे थे। उसी को दिखाकर उन लोगो ने मेरे मैके वालो को बरगला रखा था। वे लोग मुझे मैके वालो से मिलने भी नहीं देते थे। मेरे पति भी उन लोगो से नहीं मिलते थे। मैके वालो के पूंछने पर भी ससुराल वाले सदैव हम लोगो को बाहर गया बताकर टाल दिया करते थे। मैके वालो को आज तक पता ही नहीं है कि मेरी मृत्यु हो चुकी है।"

"आश्चर्य है; तुम्हारे मैके वाले कैसे हैं जो तुम्हारी कोई खोजखबर भी नहीं लेते"

"मैने बताया ना, कि मेरे ससुराल वालो ने मैके वालो को बरगला रखा है। मेरे मैके वाले मुझे कुलटा और कुलच्छनी समझते हैं।"

"फिर भी तुम्हारी मृत्यु हुये दो वर्ष हो गये है। अभी भी वे लोग तुम्हारी खोजखबर नहीं ले रहे।"

"मेरा दुर्भाग्य ! मेरे माता-पिता ने मेरा विवाह कर दिया, उनकी जिम्मेदारी पूरी हो गयी। अब मै जीती हूं या मर गयी उनसे कोई मतलब नहीं।"

"कभी फोन आदि भी नहीं करते।"

"करते होते तो उन्हे अपनी बेटी पर कुछ तो विश्वास हुआ होता।"

"ऐसी परिस्थिति मे क्या तुम्हारे चचेरे भाई तुम्हारे पक्ष मे काम करेंगे?"

"एक वही है जिनपर मै विश्वास कर सकती हूं।"

"ठीक है। मै उनसे मिलूंगा। वे अगर नहीं भी करेंगे तो भी मै कोई ना कोई मार्ग अवश्य निकालूंगा।"

निश्चित रूप से अनिकेत नलिनी के प्रेत के दर्द से द्रवित हो गया था।

"मुझे तुमसे यही आशा है। मुझे यह भी विश्वास है कि तुम मुझे धोखा नहीं दोगे। अब तुम अपनी बाईक स्टार्ट कर लो। बाईक स्टार्ट हो जायेगी।"

सचमुच एक किक मारते ही बाईक स्टार्ट हो गयी। अनिकेत घर आकर सोने की कोशिश करने लगा। परंतु आज नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। सचमुच नलिनी बहुत अभागी थी। जिसके माता-पिता ही ऐसा व्यवहार करे उसे अभागी न समझा जाय तो क्या समझा जाय।

अगले दिन ही अनिकेत ...थाने पर इंस्पेक्टर विशाल से मिलने पहुंच गया।

"इंस्पेक्टर विशाल सिंह से मिलना चाहता हूं।"

"कहिये मै ही विशाल सिंह हूं।"

"आपसे पन्द्रह मिनट का समय चाहता हूं। अकेले मे।"

"आप यहां भी मुझसे बात कर सकते हैं।"

इंस्पेक्टर विशाल ने अनिकेत को हलके लेना चाहा।

"कुछ घरेलू बात है।"

"यहां जितने भी आते हैं कोई ना कोई समस्या लेकर ही आते हैं। ज्यादातर की समस्या घरेलू ही होती है।"

यह एक सामान्य पुलिसिया बात थी। अनिकेत को इस व्यवहार पर आश्चर्य नहीं हुआ।

"मुझे नलिनी के बारे मे बात करनी है।"

नलिनी ! अब विशाल ने अनिकेत को गंभीरता से लिया।

"आइये मेरे साथ। तिवारी ! दो चाय और समोसा लाना। मै सभा कक्ष मे हूं।"

दोनो सभा कक्ष मे आ गये।

"आप नलिनी को कैसे जानते हैं?"

"आप मुझसे बाद मे प्रश्न कीजियेगा। पहले आप मुझे बताये कि क्या आपको यह पता है कि नलिनी अब इस दुनिया मे नहीं है?"

"क्या नलिनी अब इस दुनिया मे नहीं है? ये आप क्या कह रहे है? और आप हैं कौन?"

"मै आपके सभी प्रश्नो का समुचित जवाब दूंगा। पहले आप मेरी बात का जवाब दीजिये।"

"नहीं मै नहीं जानता। लम्बा अर्सा हो गया उसकी कोई सूचना भी नहीं मिली।"

"और आप लोगो ने जानने की कोशिश भी नहीं की कि वो किस हाल मे है।"

अनिकेत ने अपने स्वर को सामान्य बनाये रखने की कोशिश करते हुये कहा।

"मुझे उसके बारे मे आखिरी बात यही पता चली थी कि वो एक गंदी बीमारी से ग्रस्त है। ऐसी कुलटा के बारे मे क्या जानना।"

"तो आप भी यही समझते हैं कि वो चरित्रहीन थी और उसने यह बीमारी अपने पति को दी है। जबकि वास्तविकता यह है कि वह बीमारी उसे उसके पति ने दी थी।"

"मैने तो कुछ और ही सुना था।"

"सुनने और होने मे बड़ा फर्क होता है श्रीमान जी।और ये बात आप पुलिस अधिकारी होने के कारण मुझसे बेहतर समझ सकते हैं।"

इसी समय तिवारी चाय और समोसे लाकर रख गया। बातों का सिलसिला कुछ पलों के लिये थम गया। तिवारी के जाने के बाद बातों का सिलसिला पुन: आगे बढ़ा।

"तो आप के अनुसार वो चरित्रहीन नहीं थी।"

"बिलकुल भी नहीं। बल्कि वो ऐसी अभागी थी कि खुद उसके घर वालो ने, यहां तक कि उसके माता-पिता ने भी उसका विश्वास नहीं किया और उसे मरने के लिये छोड़ दिया।"

"लेकिन आप उसके बारे मे इतना कैसे जानते हैं। आप हैं कौन?"

"मेरा नाम अनिकेत है। मै उसके बारे मे इतना कैसे जानता हूं और इतने विश्वास के साथ उसके पक्ष मे कैसे बात कर रहा हूं यह जानकर पहले तो आपको विश्वास नहीं होगा। मगर आपको विश्वास करना ही होगा। सबसे पहले तो आप यह जान लें कि मेरी नलिनी से कल रात ही भेंट हुयी है...।"

"एक तरफ आपने कहा कि उसकी मृत्यु हो चुकी है। दूसरी तरफ आप यह कह रहे है कि आपकी उससे कल रात ही भेंट हुयी है। ये दो तरफा बातों से आपका आशय क्या है?"

"मैने पहले ही कहा कि आप पहले-पहल विश्वास नहीं कर पायेंगे परंतु बाद मे आपको विश्वास करना ही होगा।"

कुछ क्षण रुककर अनिकेत ने पुन: कहना शुरू किया।

"नलिनी दो वर्ष पूर्व ही मर चुकी है। उसकी हत्या की गयी है। हत्या के बाद वो प्रेत बन गयी है। प्रेत रूप मे ही वो मुझसे मिली और मुझसे सहायता की मांग की। उसकी याचना पर ही मै आपसे मिलने आया हूं। आपका पता भी उसी ने मुझे दिया है। उसे आप पर काफी विश्वास है।"

कहकर अनिकेत विशाल को सारी बात बताता चला गया। सारी बात सुनकर विशाल ने कहा-

"विश्वास करना तो कठिन है। फिर भी मै इस बारे मे जांच-पड़ताल करूंगा। वैसे यदि उन लोगो ने उसकी हत्या कर दी है तो उसके शव का क्या किया।"

"यह बात तो मुझे भी नहीं पता। मै जिस मार्ग से जाया करता हूं उसी से आज भी जाऊंगा। शायद उससे फिर भेंट हो जाय। तब उससे पूछ लूंगा।"

"ऐसा तो नहीं कि किसी ने आपके साथ मजाक किया हो"

अनिकेत सोंच मे पड़ गया। इस संभावना पर तो उसने विचार ही नहीं किया। कुछ पल सोचने के बाद उसने कहा-

"यह बात नहीं जमती। मजाक करने के लिये कोई आधी रात का समय और ऐसा सुनसान स्थान क्यो चुनेगा। फिर उसे मेरा और आपका नाम कैसे पता चला। फिर जो-जो बाते उसने बतायी वे सभी सत्य है। इन सारी बातों पर ध्यान दिया जाय तो यही लगता है कि ये मजाक नहीं है।"

"आप ठीक कह रहे है। ये मजाक नहीं है।"

अनिकेत वापस लौट आया। अब उसके मन मे एक नया कौतूहल उत्पन्न हो गया था। आज ड्यूटी से लौटते समय अनिकेत उसी स्थान पर रुक गया जहां कल रात उसकी बाईक बिगड़ गयी थी। अनिकेत कुछ पलो तक प्रतीझा करता रहा कि शायद नलिनी का प्रेत स्वयं उससे बात करे। परंतु जब किसी ने भी बात करने की चेष्टा नहीं की तो उसने स्वयं आवाज देनी शुरू की।

"नलिनी !"

कोई प्रतिक्रिया नहीं हुयी।

"नलिनी !"

उसने पुन: आवाज दी। इस बार भी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुयी।

"नलिनी !"

इस बार प्रतिक्रिया हुयी।

"हां ! मै आ गयी।"

"मै विशाल से मिला था। पहले उसने विश्वास नहीं किया। फिर विश्वास किया। यदि मै उसे लेकर यहां आऊं तो क्या उससे बात करोगी?"

"हां करूंगी।"

"उन्होने मुझसे पूंछा कि तुम्हारे ससुराल वालो ने तुम्हारे शव का क्या किया।"

"मेरा शव यही; इसी स्थान पर दफन है। इसी वजह से मै इसी मार्ग पर भटक रही हूं।"

"नलिनी तुम्हारी पीड़ा सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ है। तुम्हारी पीड़ा दूर करने के लिये मै कोई कोर-कसर न उठा रखूंगा"

"मै जानती हूं। तुम बहुत अच्छे व्यक्ति हो।"

"अच्छा अब मै जाता हूं। कोशिश करूंगा कि कल विशाल को अपने साथ ले आऊं।"

अनिकेत घर चला गया।

अगले दिन पुन: वो विशाल से मिला। और रात की घटना बतायी। विशाल अनिकेत के साथ चलने को तैयार हो गया। रात होने पर विशाल और अनिकेत दोनो उसी स्थान पर पहुंचे। अनिकेत ने नलिनी को आवाज दी। नलिनी आयी। नलिनी से बात करके विशाल की आंख भर आयी। वो बोला-

"नलिनी तुमने जीवन मे इतना कष्ट सहा और हम लोग मूर्खो जैसे धूर्त-दुष्ट लोगो की बात पर विश्वास करते रहे। धिक्कार है हमारे जीवन पर।"

"भाई दुखी मत हो। जो होना था हो गया। अब मेरे हत्यारों को दण्ड दिलाओ और मेरी मुक्ति का प्रयास करो।"

",ठीक है बहन ! मै ऐसा ही करूंगा। तुम्हारा शव किस स्थान पर दफन है?"

"मेरी आवाज के पीछे-पीछे आओ। जिस स्थान पर चार लकड़ियां जमीन मे गड़ी दिखे बस वहीं खोदने पर मेरा शव मिल जायेगा।"

कहकर नलिनी ध्वनि करती हुयी चलने लगी। दोनो उस ध्वनि के पीछे-पीछे चलने लगे। सचमुच एक स्थान पर चार लकड़ियां आयतकार लगी हुयी थी। जैसे किसी ने उस स्थान को किसी विशेष उद्देश्य से घेर रखा हो।

"नलिनी ! यहां तक का काम एक भाई का था। जो मैने कर दिया। इससे आगे कानून का काम है। उसमे समय लगेगा। धैर्य रखना। वैसे मै प्रयास करूंगा कि ये काम शीघ्रातिशीघ्र हो जाये।"

यहां से विशाल अपने घर लौट गया और अनिकेत अपने घर चला गया। अनिकेत का यह रोज का ही मार्ग था। अक्सर अनिकेत और नलिनी की मुलाकात हो जाती। दोनो एक दूसरे से बाते किया करते। दोनो के मध्य एक अजीब सा स्नेह बंधन बन गया था। इस बंधन का कोई नाम नहीं था; कोई रिश्ता नहीं था। बस एक अंजाना लगाव था। लेकिन ये लगाव दिन प्रतिदिन प्रगाढ़ होता जा रहा था। कितनी अजीब बात थी। एक शरीरधारी था दूसरा अशरीरी; अदृश्य। दोनो एक दूसरे का अनुभव तो कर सकते थे पर एक दूसरे को स्पर्श नहीं कर सकते थे।

अनिकेत विशाल के प्रयासों की सूचना भी नलिनी को दिया करता था।

विशाल के प्रयासो ने आकार लेना प्रारंभ कर दिया था। सर्वप्रथम घटना की प्राथमिकी दर्ज हुयी। फिर केस उसके हाथ मे आया। फिर उस विशेष स्थान की खुदाई की अनुमति ली गयी तब जाकर खुदाई की नौबत आयी। जिस समय खुदाई की जा रही थी अनिकेत भी वहां उपस्थित था। चार-पांच फुट की खुदाई के पश्चात एक कंकाल बरामद हुआ। कंकाल का पंचनामा करके फोरेंसिक भेज दिया गया। डी एन ए रिपोर्ट से प्रमाणित हो गया कि कंकाल नलिनी का ही है। अब बारी थी साझ्य जुटाने की। इसमे भी नलिनी के प्रेत ने बहुत सहायता की। अंतत: नलिनी के ससुराल वालो के विरूद्ध वारण्ट कट गया। इस समय तक अखिलेश भी दिवंगत हो चुका था। बाकी अखिलेश का पूरा परिवार जिसमे उसके माता-पिता, दो भाई व एक बहन शामिल थी जेल चले गये। साझ्य इतने पुख्ता थे कि बचाव पझ के वकील की कोई दलील काम नहीं आयी। सबको आजीवन कैद की सजा हुयी। अब बारी थी नलिनी के प्रेत की मुक्ति की। इसका जिम्मा विशाल ने उठाया। मुक्ति से पूर्व नलिनी ने अनिकेत से कहा-

"तुमने मेरा काम बिना किसी स्वार्थ के किया है। अब मेरी बारी है। मै आज तुम्हे दिखायी पड़ूंगी।"

इतना कहने के साथ ही अनिकेत के सामने एक धुंधला सा प्रकाश प्रकट हुआ। यह प्रकाश धीरे-धीरे गाढ़ा होने लगा। फिर उस प्रकाश ने आकार ग्रहण करना शुरू किया। अंतत: उस प्रकाश ने एक नारी का रूप ग्रहण कर लिया। अनिकेत ने ऐसी सुंदर नारी अपने जीवन मे नहीं देखी थी। वह उसे अपलक देखता रह गया।

"क्या देख रहे हो अनिकेत? ये मेरा वास्तविक रूप नहीं है। स्थूल शरीर की तुलना मे सूझ्म शरीर अत्यधिक सुंदर होता है। मैने तुम्हे अपना ये रूप इसलिये दिखाया कि मै भविष्य मे यदि कभी तुम्हारे सामने आ जाऊं तो तुम मुझे पहचान सको। अनिकेत तुम जीवन मे कभी पीछे मुड़कर नहींं देखोगे। बहुत उन्नति करोगे"

कहने के साथ ही वह प्रकाश वातावरण में घुल गया। जैसे उसका कभी कोई अस्तित्व रहा ही न हो।


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