नई सुबह
नई सुबह


स्वर्णिम ने जैसे ही कालेज के अंदर पैर रखा, एक बार तो उसका हृदय जोर से धड़क उठा। फिर उसके अन्तर्मन ने उससे कहा 'बी ब्रेव'। उसने दो-तीन बार जोर से गहरी-गहरी सांस ली, अपने हृदय को नियन्त्रित किया और 'ब्रेव' हो गया।
आज उसका कालेज में पहला दिन था। शुरुआती दिनों में कालेज के सीनियर्स जूनियर्स से तरह-तरह से रैगिंग करते है। नये शिकार को देखकर सीनियर किस तरह का व्यवहार करें, यही सोचकर स्वर्णिम डरा हुआ था। लेकिन एक बार आत्मविश्वास का संचार कर लेने के बाद वो बेधड़क कालेज के अंदर प्रवेश कर गया। उसका आत्मविश्वास उसकी चाल में झलकने लगा। शायद यही कारण रहा हो कि स्वर्णिम न केवल नोटिस बोर्ड तक, बल्कि अपनी कक्षा तक भी निर्बाध पहुंच गया। कक्षा में पहुंच कर एक खाली सीट पर अपना कब्जा जमाने के बाद उसने एक सरसरी दृष्टि पूरी कक्षा पर डाली। अधिकांश लड़के-लड़कियां एक दूसरे से अपरिचित अपने-अपने स्थान पर बैठे थे। कुछ ने आपस में परिचय पैदा कर लिया था। और वे आपस में गप्पे मारने में व्यस्त थे।
कक्षा का समय हो चला था। उसके साथ की सीट अभी भी खाली थी। लेक्चरर महोदय ने कक्षा में प्रवेश किया। उनके साथ ही कई लड़के-लड़कियों ने कमरे में प्रवेश किया और सारी सीटे अनायास ही भर गयी। पहला दिन, पहली क्लास। लेक्चरर महोदय ने सभी से परिचय प्राप्त किया और समय पूरा होने पर वापस चले गये। अब असली परिचय शुरू हुआ।
"हाय, मैं राघव।"
"मैं स्वर्णिम।"
दोनों ने हाथ मिलाया और बाते करने लगे। बातों-बातों में स्वर्णिम बोल उठा-
"मैं कालेज आते समय बहुत डर रहा था कि सीनियर्स की रैगिंग का सामना ना करना पड़े। मगर यहां तो कुछ भी नहीं था। सारा मामला ठंढा था।"
"भाई आज पहला दिन है। हो सकता है शिकारी ताक में बैठे हो। वैसे तुम लोकल हो?"
"नहीं! बाहर से हूं। हास्टल के लिये एप्लाई कर रखा है। देखो कब तक कमरा मिलता है।"
"असली रैगिंग हास्टल में होगी। वहां से पार पा गये तो समझो विश्व विजय कर लिया।"
"अब जो हो। ओखली में सर दिया है, मूसलें तो पड़ेंगी ही।"
तभी अगली क्लास के लेक्चरर आ गये। दोनों की बात-चीत बंद हो गयी।
एक सप्ताह बीत गया। हास्टल में कमरा नहीं मिला। अब तक स्वर्णिम के कई दोस्त बन चुके थे। एक दिन जब स्वर्णिम ने कालेज परिसर में प्रवेश किया ही था कि सीनियर्स के एक गुट ने, जिसकी अगुवाई एक सिख युवक कर रहा था, उसे बुलाया।
"नाम?"
"स्वर्णिम ।"
"कक्षा?"
"बी. काम."
"सेक्शन?"
"बी"
"अपनी कमीज उतारो।"
स्वर्णिम झिझका।
"सुना नहीं। अपनी कमीज उतारो।"
स्वर्णिम ने अपनी कमीज उतार दी। एक युवक ने जेब से लाईटर निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाया।
"जला दो।"
"मेरे पास एक ही कमीज है।"
"भूखा-नंगा है क्या?"
एक दूसरे युवक ने कहा।
"जला दो।"
सिख युवक ने पुन: आज्ञा दी। स्वर्णिम ने लाईटर ले लिया। और कमीज जला दी। अब उसके बदन पर बनियान ही रह गयी थी। कमीज जल जाने के बाद सिख युवक ने उसका पिण्ड छोड दिया। स्वर्णिम उसी अवस्था में अपनी कझा में पहुंच गया। साथियों ने पूछा तो उसने सारी घटना बता दी। साथियों को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। ये घटनाएं कालेज परिसर में आम थी। लगभग सभी इस तरह की घटनाओं से दो-चार हो चुके थे। परंतु जूनियर होने के कारण कुछ बोल नहीं सकते थे। अगले दिन स्वर्णिम बनियान पहने ही कालेज पहुंच गया। उसने देखा, उसी सिख युवक के गुट ने एक लड़की को रोक लिया था। वो लोग उसका दुपट्टा जलवाना चाहते थे। स्वर्णिम उन लोगों के सामने पहुंच गया।
"सर! इस लड़की को छोड़ दीजिये।"
स्वर्णिम ने बहुत ही नर्मी से कहा ।
"तेरी बहन लगती है क्या?"
"ये मेरी क्या लगती है, ये तो मैं स्वयं भी नहीं जानता। मगर महिलाओं का सम्मान जरूर करता हूं। इस लिहाज से आप से रिक्वेस्ट कर रहा हूं।"
"अगर हम न छोड़े तो क्या कर लोगे?"
"सर! हम जूनियर है। आप लोगों से झगड़ा नहीं कर सकते। रिक्वेस्ट कर सकते है। और मुझे विश्वास है कि आप लोगों के भीतर का इंसान आप को इसे छोड़ने के लिये अवश्य प्रेरित करेगा।"
"ठीक है। छोड़ देंगे। पहले ये बताओ कि आज कमीज क्यों नहीं पहनी है।"
"सर, मैंने कल ही आप को बताया था कि मेरे पास सिर्फ एक ही कमीज है। तब भी आप लोगों ने जलवा दिया। आप लोगों का सम्मान रखते हुए मैंने उसे आप लोगों के सामने ही जला दिया। "
"ठीक है, हम इस लड़की को छोड़ देते है। बदले में तुम्हें अपनी बनियान जलानी होगी।"
स्वर्णिम हँसा।
"सर! ये भी एक ही है।"
"जलाओ।"
स्वर्णिम ने अपनी बनियान उतारी, लाईटर के लिये हाथ बढ़ाया। कल वाले युवक ने ही उसे लाईटर दे दिया। स्वर्णिम ने अपनी बनियान भी जला दी। लड़की को छोड़ दिया गया। सिख युवक ने स्वर्णिम के कंधे पर हाथ रखा।
"मर्द हो। हमें तुम जैसे लोग पसंद है। आज से तुम मेरे दोस्त हो। मेरा नाम जान लो गुरविन्दर सिंह आहलूवालिया। कालेज में कोई भी समस्या आये मेरा नाम ले लेना। तुम्हारा काम हो जायेगा।"
"सर! सबसे पहले तो मैं आपसे एक रिक्वेस्ट करना चाहता हूं।"
"सबसे पहले तो तुम ये समझो कि अब तुम मेरे दोस्त हो। सर का पुछल्ला छोड़ दो। सीधे-सीधे गुरविन्दर कहो या शार्ट कट में गुरू। या अगर तुम्हारा कान्शश इनफार्मल होने की अनुमति न दे तो गुरू भाई कह सकते हो। ओ.के.।"
"ओ.के.।"
"अब कहो क्या कहना चाहते हो।"
"रैगिंग बंद कर दीजिये। यदि सारे जूनियर्स की न बंद कर सके तो कम से कम लड़कियों की तो बंद ही कर दे।"
"बंद कर दी। केवल लड़कियों की ही नहीं सारे जूनियर्स की।"
फिर अपने गुट के लोगों से कहा-
"सबने सुन लिया ना। अब से रैगिंग बंद।"
कुछ लोगों ने कहा-
"ठीक है।"
कुछ लोगों को बात पसंद नहीं आयी मगर प्रगट में वे कुछ नहीं बोले।
इस घटना के बाद स्वर्णिम कालेज में हीरो बन गया। न केवल अपने बैंच के छात्रों के बीच अपितु सीनियर्स के बीच भी। कहना नहीं होगा, जिस लड़की को उसने रैगिंग से बचाया था, वो उसकी दोस्त बन गयी।
घटना के अगले दिन स्वर्णिम बिना कमीज बिना बनियान के कालेज पहुंच गया। गुरविन्दर ने देखा। उसे आवाज दी-
"ओए स्वर्णिम! इधर आ"
स्वर्णिम आ गया।
"तेरी बनियान और शर्ट कहां है।"
"आपके कहने पर जला दी।"
"और यदि हम लोग पैंट भी जलवा देते तो..."
"मैं केवल अन्डरवियर पहन कर आ जाता।"
"तुझे शर्म नहीं आती।"
"शर्म मेरे बड़े भाइयों को आनी चाहिये। जिन्होंने मेरे कपड़े जलवाये।"
"क्या सचमुच तेरे पास एक ही कमीज बनियान थी।"
"हां!
"चल मेरे साथ।"
गुरविन्दर उसे पास की एक कपड़े की दुकान पर ले गया। दुकान अभी बंद थी। गुरविन्दर ने दुकान खुलवायी और स्वर्णिम को दो बनियान, दो कमीज और एक पैंट दिलवायी। स्वर्णिम ने दुकान पर ही बनियान और कमीज पहनी और कालेज आ गया।
पन्द्रह बीस दिन बाद गुरविन्दर ने एक पार्टी का आयोजन किया। इस पार्टी में जूनियर्स में से मात्र एक ही व्यक्ति सम्मिलित हुआ था, स्वर्णिम। इस पार्टी का माहौल बिल्कुल अलग था। शराब और सिगरेट का बोलबाला था। सिगरेट के धुएं में एक अजब सी कसैली गंध बसी हुयी थी। स्वर्णिम को बहुत ही अजीब सा अनुभव हो रहा था। यहां कालेज की और कुछ बाहरी लड़कियां भी थी। उन्हें देखकर लग रहा था कि वे नशे में है। स्वर्णिम कुछ देर तक तो वहां रुका फिर उसे लगा कि शायद उसकी तबीयत खराब होने लगी है। कभी उसे चक्कर आने का आभास होता तो कभी उबकाई आती। वह वापस चला आया। दूसरे दिन उसने इस पार्टी का जिक्र राघव व अमित आदि अपने खास मित्रों से किया। अमित इस तरह की पार्टियों से परिचित था। उसने बताया-
"ये जो तुम कसैले से धुंए की बता रहे हो ये हो ना हो किसी तरह के ड्रग की गंध होगी। तुमने अच्छा किया जो वहां अधिक देर तक नहीं रुके अन्यथा ड्रग का नशा तुम्हारी नसों में चला जाता और शायद तुम भी इस नशे के लती बन जाते।"
"ऐसे ड्रग्स इन्हें मिलते कहां से है।?"
"ये ड्रग्स के एजेंट होते है। ज्यादातर विदेशी होते है, खास कर पाकिस्तानी। शायद इनमें से कोई इस पार्टी में भी आया हो।"
स्वर्णिम को याद आया कि पार्टी में दो-तीन व्यक्ति ऐसे थे जो अपने हाव-भाव और बोली-चाली से विदेशियों जैसे लग रहे थे।
"हां, कुछ लोग ऐसे थे तो अवश्य, जिन पर विदेशी होने का संदेह हो रहा था। मगर मैने उनकी तरफ अधिक ध्यान नहीं दिया था।"
"मेरी सलाह मानो तो इन सरदार जी, क्या नाम है इनका, हां, गुरविन्दर सिंह, इनकी मित्रता को हाथ जोड़ लो।"
"देख भाई, किसी को बीच रास्ते में छोड़ दूं, ऐसा मेरा स्वभाव नहीं है। मैं कोशिश करूंगा कि गुरविन्दर को उस दलदल से निकाल लाऊं। तुम लोग ईश्वर से प्रार्थना करना कि मैं अपने उद्देश्य में सफल होऊं।"
"हम सब तुम्हारे साथ है। सब मिलकर प्रार्थना करेंगे।"
सारे मित्रों ने एक दूसरे के हाथ पर हाथ रखा।
एक सप्ताह बाद।
स्वर्णिम कालेज आ रहा था। उसने देखा, सामने से गुरविन्दर चला आ रहा था। वो दोनों करीब आते उससे पहले ही गुरविन्दर के पीछे से चार लोग दो बाइक से आये और उससे कुछ बात करने लगे। बातों -बातों में, आये हुए लोगों ने गुरविन्दर को पीटना शुरू कर दिया। दो लोगों ने उसकी दोनों बाहे पकड़ कर उसे बेबस कर रखा था। एक व्यक्ति उसे मार रहा था। जबकि एक व्यक्ति ने अपने हाथ में पकड़े बैग से एक सीरिंज निकाल ली और गुरविन्दर की कलाई के पास की नस में चुभो दी। सीरिंज देखते ही स्वर्णिम समझ गया कि गुरविन्दर को किसी तरह का ड्रग दिया जा रहा है। वैसे तो गुरविन्दर ड्रग का आदी था परंतु शायद ये ड्रग कुछ विशेष होगा या फिर हैवी डोज़ होगी। स्वर्णिम ने आस-पास देखा। कुछ दूरी पर गोल पहाड़ी पत्थर पड़े हुए थे। स्वर्णिम लपक कर पत्थरों के पास पहुंच गया। झपटते हुए दोनों हाथों में एक-एक पत्थर उठा लिये। दाहिने हाथ के पत्थर को चूमा और पूरी ताकत से सीरिंज वाले युवक को दे मारा। निशाना सटीक था। पत्थर युवक के नाक के ऊपर और भौहों के नीचे के गड्ढ़े वाले स्थान पर जा लगा। पत्थर लगते ही युवक पीछे की तरफ उलट कर बेहोश हो गया। यही हाल उस दूसरे युवक का भी हुआ जो गुरविन्दर को पीट रहा था। पलक झपकते ही सारा काण्ड हो गया। स्वर्णिम ने पुन: अपने दोनों हाथों में दो पत्थर उठा लिये और लपकते हुए बाकी बचे दो के पास पहुंच गया।
"मेरा शौर्य तुम लोग देख ही चुके हो। अब बताओ, इन दोनों लाशों को साथ लेकर जाओगे या इन दोनों लाशों के साथ जाओगे।"
दोनों युवक सामने खड़े युवक को हैरानी भरी आंखों से देखने लगे।
"तुम दोनों को मैं यह भी बता देना चाहता हूं कि मेरे साथियों तक सूचना पहुंच चुकी है। किसी भी पल वो सब यहां पहुंच रहे होंगे। फिर तुम लोगों का यहां से भाग पाना भी संभव नहीं हो सकेगा।"
जान है तो जहान है, विचार करते हुए उन दोनों ने वहां से भाग निकलना ही उचित समझा। किसी तरह से दोनों बेहोश युवकों को बाइक पर लाद कर वहां से भाग निकले। स्वर्णिम ने तत्काल गुरविन्दर को देखा। गुरविन्दर के ऊपर नशा हावी हो चुका था। वह न कुछ समझ पाने लायक था, न कुछ बता पाने लायक। स्वर्णिम ने एक रिक्शा रुकवाया और पास के एक अस्पताल में ले गया। डा० ने गुरविन्दर को पास ही के एक नशा मुक्ति केन्द्र में भेज दिया। इन सब कामों से निपटने के बाद स्वर्णिम अपने साथियों से मिला। थाने पर जाकर रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने कार्यवाही करते हुए गुरविन्दर का बयान लिया। बयान के आधार पर उन विदेशी युवकों की तलाश शुरू हो गयी। आखिरकार वे युवक शहर से बाहर भागने की कोशिश में बस अड्डे पर पकड़े गये। मामला चूंकि आबकारी विभाग से जुड़ा हुआ था तो पुलिस ने बड़ी तत्परता से काम किया। ड्रग्स का बहुत बड़ा जखीरा पकड़ा गया। कई और लोग भी पकड़े गये। स्वर्णिम के लिये इनाम की घोषणा भी हुयी। उसे इतना इनाम मिल गया कि अब उसे अपनी पढ़ाई के लिये धन की चिन्ता करने की जरूरत नहीं रह गयी। ड्रग्स रैकेट के ध्वस्त हो जाने के कारण बहुत से लड़के-लड़कियों के लिये पुनर्वास की समस्या उत्पन्न होने लगी। इतनी बड़ी संख्या में लड़के-लड़कियों के लिये नशा मुक्ति केन्द्रों में स्थान की कमी पड़ने लगी। ऐसे में स्वर्णिम और उसकी टीम ने दूसरे शहरों में उनकी व्यवस्था करायी।
गुरविन्दर को पूरी तरह स्वस्थ होने में महीने भर का समय लगा। वापस कालेज आने पर वह सबसे पहले स्वर्णिम से मिला।
"स्वर्णिम! वैसे तो मैं तुमसे सीनियर हूं। मगर तुमने जो काम किया है उसने तुम्हें हम सबसे सीनियर बना दिया है। मैं बहुत समय से इस ड्रग की लत से छुटकारा पाना चाहता था। परंतु चाह कर भी छोड़ नहीं पा रहा था। अब, वाहे गुरू की सौं, ड्रग्स को हाथ भी नहीं लगाऊंगा।"
"वाहे गुरू साहब आपको शक्ति दें।"
"मैं सोच रहा हूं कि एक पार्टी हो जाये।"
"वैसी ही जैसी पहले दी थी।"
"वाहे गुरू! वाहे गुरू!"
गुरविन्दर ने अपने कानों को हाथ लगाया।
"नही! इस पार्टी में किसी भी तरह का कोई भी नशा नहीं होगा। खाना-पीना, नाच-गाना, मनोरंजन, बस यही सब होगा पार्टी में।"
"तब तो पार्टी का स्वागत है। इस पार्टी का नाम क्या रखेंगे? क्या बताएंगे पार्टी के बारे में?"
"इस बारे में भी सोच लेंगे।"
"मैं सलाह दूं।"
"जरूर।"
"इस पार्टी का नाम रखे 'नई सुबह'। क्योंकि आज से आपके जीवन में एक नई सुबह की शुरूआत हो रही है। आपके जीवन में नये प्रकाश का संचार हो रहा है।"
"ठीक कहा तुमने। तो चलो हम सब मिलकर नई सुबह की तैयारी में जुट जाये।"
इति।