यादोँ की पैकिंग
यादोँ की पैकिंग
सरकारी नौकरी में ट्रांसफर के कारण हम पति पत्नी को अलग अलग शहरों में रहना पड़ा था।
आते हुए तो इतना सामान नही था,बस कुछ जरूरियात की चीजें लायी थी,लेकिन जैसे जैसे दिन बढ़ते गए सामान भी आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता गया।इस घर में आज बहुत सामान लग रहा था।
आज सामान पैक करते हुए एक एक चीज को मैं रखती जा रही थी,टेम्पो वाले जल्दी मचा रहे थे और काम है की खत्म होने का नाम ही नही ले रहा था।
अचानक टेबल के एक ड्राअर में कुछ टॉप्स, बिंदियों के पैकेट और दो चार मालाऐं दिखाई दी, मेरा खजाना मिला और बहुत सी यादें जैसे ताजा हो गयी।
बाकी सामानों के साथ टेम्पो वाला गद्दों और तकियों को लेने की जल्दी करने लगा।उन तकियों ने मेरा बहुत सी रातों में मेरा साथ दिया था।मुझे लगा की टेम्पो वाले से खींच लू वह तकिया और सूंघ लू मेरी आंसुओं की उसमे रची बची खुशबू जो रात रात मेरा साथ देती रहती थी।
रसोई में रखे बर्तन,नमक - मिर्ची और मसालों के डब्बे खाना बनाते समय मेरे साथ कभी कभी रोते रहते जब घर के लोगों के साथ मेरी खाना न खाने की मजबूरी को महसूस करते।आज सब खामोशी से यहाँ से विदा ले रहे थे।टेम्पो वाले ने झट से मेरे हाथों से सामान खींचकर टेम्पो में डालने के लिए लेकर चला गया।उसे तो बस अपना काम खत्म करने की जल्दी थी।
आखिर में टेम्पो वाला चला गया सारा सामान लेकर और पीछे छोड़ गया एक खाली घर जो मेरी बहुत सी यादों से भरा हुआ था।
मैंने अपनी भूली बिसरी,खट्टी मीठी और उलझनों से भरी हुयी अपनी उन तन्हाई भरी यादों को अपने साड़ी की पल्लू से पोटली बना कर बांध लिया और आगे बढ़ी।अपने बड़े से घर को सजाने के लिए और फिर से नयी और खूबसूरत यादें बसने की आशा लिए......