मॅन्स वर्ल्ड
मॅन्स वर्ल्ड
आज पुराने इंस्टिट्यूट में जाना हुआ। यह वही इंस्टिट्यूट है जहाँ मैंने जॉइन किया था। पीएचडी के बाद मेरी पहली पहल नौकरी के तौर पर। वह एक पोस्ट ग्रेजुएट लेवल का कॉलेज था। एक इंस्टिट्यूट के तौर पर मुझे वहाँ जॉइन करना अपने आप मे ही प्राउड फील हो रहा था।
सब चीज़ें मेरे लिए नयी थी..नयी नौकरी के अपने चैलेंजेस..स्टूडेंट्स को पढ़ाना... लोगों का व्यवहार..नये घर में शिफ्टिंग की मारामारी..नित नयी प्रॉब्लम..और भी न जाने क्या क्या...यह एक लंबी लिस्ट हो सकती है..कोई नया जॉइनी ही इसे रिलेट कर सकता है...
एज अ लर्निंग प्रोसेस मैं सब चीजोँ के साथ साथ अपने काम पर फोकस करने की कोशिश कर रही थी।
यूँही एक दिन एक सीनियर प्रोफेसर का बातों बातों में हल्का सा टच हुआ। ऐसे ही हुआ होगा सोचकर मैंने सॉरी कहते हुए उनकी ओर देखा। उनकी नज़र कुछ और कह रही थी। इतने सीनियर प्रोफेसर और ये हरकत!!!
अपनी नयी नौकरी और अनुभवहीनता के कारण मैं खामोश रह गयी।
कुछ दिनों के बाद एक सेमिनार हुआ।सेमिनार में जब सब लोग शाम को निकल गये थे। बीइंग प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर मुझे सारी चीजों को संभालना था। अचानक मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा। कुछ अजीब तरह के अहसास से पीछे मुड़ते ही मैं सन्न रह गयी। पीछे वही प्रोफेसर साहब खड़े थे...
मैं एकदम संभल गयी। शाम का वक़्त और आसपास कोई नही...मैंने कहा, 'सर, आप?' 'हाँ, मैं..मुझे लगा आप को कोई हेल्प की ज़रूरत होगी... आय एम हेअर फ़ॉर यू...'
'नही, नही, सर... बिल्कुल भी नही.. आय विल मैनेज.. बस थोड़ा सा ही काम रह गया है। आप थोड़ा आगे होइए..आय एम जस्ट कमिंग...'
'ओह..शुअर..शुअर..' कहते हुए वह थोड़ा आगे हो गये...
मैंने अपना सारा सामान झट से संभाल लिया..सारे पेपर्स को एक फोल्डर में रख कर स्टेपलर, पेन, पेंसिल स्टैम्प सब चीजों को ड्राअर में डालकर मैं निकल गयी..इस इंसिडेंट से मैं एकदम डिस्टर्ब हो गयी।
वापसी में मेरा मन बेहद अशांत था। मुझे समझ ही नही आ रहा था कि मैं क्या करूँ? क्या मुझे शिकायत करनी चाहिए?
मेरे अंदर की "प्रोफेशनल पर्सन मुझे इसकी कंप्लेंट करने के लिए कह रही थी जबकि मेरे अंदर की प्रैक्टिकल स्त्री मुझे कंप्लेंट करने के लिए रोक रही थी...
यह इन्टरनेट और मोबाइल फ़ोन के पहले के ज़माने की बात थी..उस वक़्त स्त्रियों का घर से बाहर निकलना ही अपने आप में बड़ी बात थी। घर मे इस तरह की बात बताने पर 'तुम बस नौकरी छोड़ दो' घर का हर मेंबर यही वाला एकमात्र सलूशन दे देता। इसी उहापोह में तीन दिन के बाद मंडे आ गया... मेरे अंदर के प्रोफेशनल पर्सन की जीत हुयी और मैं प्रिंसिपल के केबिन में जाकर उस दिन का वाकया उनके साथ शेयर किया।
प्रिंसिपल और वह प्रोफेसर शायद बैचमेट थे। पहले तो उन्होंने मुझे उनकी एज का खयाल करते हुए कहा कि आय थिंक यू हॅव सम कन्फ्यूजन...ही इज नॉट लाइक दैट।आय थिंक यु मस्ट थिंक अगेन बिफोर गिविंग सच कंप्लेंट अगेंस्ट हिम..यू आर पीएचडी इन केमिस्ट्री अँड ही इज आल्सो इन द सेम सब्जेक्ट। यू हॅव जॉइन योर ड्यूटीज टू इयर्स बैक सो बिकॉज़ ऑफ लेस एक्सपीरियंस यू आर थिंकिंग लाइक धिस...सो फोकस ऑन योर वर्क.. यू आर लॉन्ग वे टू गो..डोन्ट वरी, आय विल लुक इन टु इट...
बात आयी गयी हो गयी। लेकिन कुछ दिनों के बाद मेरे ट्राँसफर के आर्डर आ गये। दूसरे शहर में किसी प्रोजेक्ट के लिए मुझे प्रोजेक्ट डायरेक्टर के तौर पर मेरी पोस्टिंग हो गयी थी। एक हफ्ते के भीतर ही जॉइन भी करना था।
मेरे सब्जेक्ट एरिया से उस पोस्टिंग का कही दूर दूर तक कोई नाता नही था...
बहरहाल नौकरी तो करनी ही थी तो मैंने वहाँ जॉइन कर लिया..अपनी मेहनत और ईमानदारी से फिर काम में जुट गयी...
आज इतने सालों के बाद इस इंस्टिट्यूट में एक सेमिनार में की नोट स्पीकर के तौर पर आना हुआ...
इतने साल बीत जाने के बाद भी मुझे यह सब याद था। बावजूद मेरे सब्जेक्ट की ज़रूरत उन्होंने मुझे ट्राँसफर कर दिया था...मुझे कभी यहाँ आने ही नही दिया गया था। मैं सब समझ गयी थी...
दिस इज मॅन्स वर्ल्ड...यहाँ इसी तरह से ही चीजों को मैनेज किया जाता है..मेरा ट्राँसफर कर के इन अ वे उस समय प्रिंसिपल साहब ने उन प्रोफेसर का ही फेवर किया था...
कौन कहता है स्त्री शक्ति का प्रतीक है? स्त्री...देवी....शक्ति...यह सब झूठ है... यहाँ बहुत बार चीजें डिप्लोमेसी से ही हैंडल की जाती है...