फाइनल फेयरवेल
फाइनल फेयरवेल
आज उनके यहाँ जाना हुआ। लेकिन इस बार का मौका एकदम अलग था...उनकी फाइनल फेयरवेल वाला...
एक फीकी सी मुस्कुराहट से उनके घर वालों से मिलना हुआ। लेकिन अब बातों में वह बात नही थी और न ही उस तरह की बातें भी थी...
उसी माहौल में प्रशाद स्वरूप खाना हो गया। घर वालों ने घर में चलने को कहा लेकिन घर के लिए लेट हो जायेंगे कहकर हमने टालना चाहा...घर वालों के इसरार पर हम घर के अंदर गये। ऐसे तो उस घर मे बहुत बार जाना हुआ था लेकिन इस बार की बात अलग थी।
घर मे मेहमान थे...बस वह नही थी...वह थी लेकिन हार चढ़े फ़ोटो में...सोफे के सामने टेबल पर उनका स्माइल करता फ़ोटो रखा गया था..मोमबत्तीयों और अगरबत्ती के साथ...
वह उस घर की धुरी थी...घर के हर फ़र्द के लिए थी। सबकी ज़रूरतें और ख़्वाहिशों के लिए..घर ऑफिस में चक्करघिन्नी की तरह घूमते हुए वह शायद अपने सारे शौक भूल गयी थी...अभी कुछ दिन पहले ही उनको लगा कि वह अपने संगीत के शौक को पूरा करेगी...
लेकिन अब सब कुछ बदल गया है...घर के हर कोने में वह महसूस हो रही थी... लेकिन वह कही थी नही...बस वहाँ रखी उस फ़ोटो में ही मौजूद थी..उस स्माइलिंग फ़ोटो में बस...