Kunda Shamkuwar

Others

4.8  

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मुझे बुद्ध नही बनना है

मुझे बुद्ध नही बनना है

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अपनी नौकरी के चलते परिवार और बच्चों के इग्नोर की बातें अपने आसपास के लोगों से जब भी सुनती है तो वह गिल्ट में आ  जाती है..उस गिल्ट में अपनी भारी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ देने का भी उसे ख़याल आता है लेकिन फिर अपनी पढाई लिखाई और मेहनत की बातें याद कर ऐसे कोई भी ख़याल को वह फौरन झटक देती है...उस गिल्ट को काउंटर करने के लिए वह डबल मेहनत करते जाती है..ऑब्वियस्ली दोनो जगह...घर और ऑफिस....

इस दौरान वह घर परिवार और मेहमानों के साथ साथ सोसाइटी के प्रेशर को भी मैनेज करती है..स्कूल में बच्चें गर पढ़ाई में वीक हो तो ट्यूशन का जिम्मा भी उसके सर पर आ जाता है क्योंकि नौकरी की चॉइस उसकी जो होती है...बच्चें हर चीज़ में अव्वल होने चाहिए इस सोच से बच्चों की एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी का ध्यान भी उसने ही रखना होगा...और वह रखती भी है...

घर मे आनेवाले हर मेहमान का मुस्कुराते हुए स्वागत भी वह करती है क्योंकि वह एक पढ़ीलिखी और समझदार महिला जो है। घर मे जब कभी फाइनेंशियल हेल्प की ज़रूरत हो तब भी वह आगे बढ़कर सपोर्ट करती है क्योंकि फॅमिली में वह भी तो एक अर्निंग  मेंबर है...सर्कस में बैलेंस बनाती लड़कियों की तरह वह भी अपनी जिंदगी में बैलेंस बनाते जाती है....

वह जानती है कि सदियों से औरतों की जिंदगी दुरूह रही है..उनकी जिंदगी आसान कभी नही रही है...हर एक सदी में औरतों ने चैलेन्ज एक्सेप्ट किये है। आजकल वह नाईट शिफ़्ट में भी काम करने लगी है...जो काम कभी पुरुषों के हुआ करते थे जैसे कि डिलीवरी पर्सन, ऑटो, टैक्सी भी चलाने वाले काम..ऑफिस में प्रोफेशनल लेवल पर यह इक्कीसवी सदी की औरत भला किसी से पीछे रहे? नो... नेवर... 

फिर क्या? औरतें अब हर फील्ड में हाथ आजमाने लगी है...अपने लिए बराबरी का हक़ चाहने लगी है...घर और दफ़्तर की भागदौड़ में वह ख़ामोशी से डबल शिफ़्ट भी करने लगी है...इक्वल पे फ़ॉर इक्वल वर्क की उसे समझ आ गयी है और अब वह अपने हक की माँग करने लगी है...जायज़ राइट्स की....क्योंकि प्रोफेशनल लेवल पर  वह अब जान चुकी है की औरतें भी हाड़ माँस से बनी एक आम इंसान होती है.. कोई देवी देवता नहीं है... 

जब सोसाइटी में कुछ औरतें बराबरी और आज़ादी को अलग तरीके से इंटरप्रेट करती है...कुछ फेमिनिस्ट टाइप की औरतें बराबरी के नाम पर सिगरेट और ड्रिंक्स की हिमायत करती है..और धड़ल्ले से स्मोकिंग करती है। वह इन सारी बातों पर ऐतराज़ करती है क्योंकि उसका मानना है की पुरुषों की बराबरी सिर्फ़ स्मोकिंग अँड ड्रिंकिंग से नही होती है बल्कि एक्चुअल बराबरी उनके जैसे प्रोफेशनल बनने में होती है...

सिद्धार्थ के लिए तो आसान था राजमहल मे सोती हुयी यशोधरा को छोड़कर बुद्ध बनने के लिए निकल जाना...
लेकिन फिर वह सोचती है..सोचती ही रहती है..उसे लगता है कि बुद्ध बनने के लिए सिद्धार्थ का घर से निकल जाना कितना आसान था। लेकिन औरत कैसे बाहर निकले? कैसे बुद्ध बनने के लिए सोते हुए दूध पीते बच्चे को छोड़कर बाहर निकले? हाऊ इट इज पॉसिबल? जागने पर जब वह भूख से रोयेगा तो क्या बुद्ध बनने की राह चलते सिद्धार्थ की तरह वह क्या ध्यान लगा पाएगी? उसके परिवार का क्या होगा? बच्चों का क्या होगा? अगर वह सोच भी ले तो.. नहीं..नहीं..हम औरतें बुद्ध नहीं बन सकतीं..







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