Dhan Pati Singh Kushwaha

Horror Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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व्यावहारिक शिक्षा और बीरबल

व्यावहारिक शिक्षा और बीरबल

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"आज पांचवें और छठे पीरियड में तुम्हारी कक्षा का विज्ञान के प्रयोगात्मक कार्य की समय सारणी के अनुसार बारी है।मध्यावकाश के तुरंत बाद तुम सभी लोगों अपनी प्रयोगात्मक कार्य की नोटबुक और प्रयोगात्मक कार्य की पुस्तक लेकर विज्ञान प्रयोगशाला में समय पर पहुंच जाना है।"-विज्ञान की अध्यापिका रजनी मैडम सभी बच्चों को आज की विज्ञान की कक्षा में आते ही तरह याद दिलाते हुए कहा।


"हां जी मैडम।"-सभी बच्चों ने एक स्वर में कहा।


जिज्ञासा ने अपनी जिज्ञासा रजनी मैडम के सामने प्रकट करते हुए उनसे पूछा-"मैडम, क्या यह विज्ञान का प्रैक्टिकल स्कूल में करवाया जाना जरूरी है ? विज्ञान की प्रयोगशाला बनाने में काफी पैसा खर्च किया जाता है। स्कूल में पढ़ने वाले विद्यालयों में से कोई - कोई ही वैज्ञानिक बनता है। तो इस तरह जरुरत से ज्यादा धन और प्रयोगशाला में प्रयोग की जाने वाले सामान का अपव्यय क्यों किया जाता है?हमारी सैद्धांतिक पाठ्यपुस्तक में जिन तथ्यों की जानकारी हम सबको कक्षा में पहले से ही हमें दे दी जाती है उसे ही हम वहां जाकर दोहराते हैं।इस पैसे और सामान का समाज के कल्याण के दूसरे काम में खर्च किया जाना चाहिए। समाज में जो अभावग्रस्त लोग हैं उनकी ज़रूरतों को पूरा करने में इस धन और सामग्री को प्रयोग किया जा सकता है।"


"जिज्ञासा बेटा , शिक्षा पर जो भी धन खर्च किया जाता है उसे व्यय नहीं निवेश कहा जाना चाहिए। जिस प्रकार हम किसी योजना में धन का निवेश करते हैं तो एक समय के बाद उस धन से हमें लाभदायक परिणाम प्राप्त होते हैं।इसके लिए हमें सोच समझकर उस योजना को चुनना होता है जिसमें हमारा निवेश करना तुलनात्मक रुप से ज्यादा लाभकारी हो। निवेश करने के बाद हमेशा सतर्क भी रहना होता है क्योंकि समय परिस्थिति अनुसार इसमें बदलाव भी हो सकते हैं। हमें हमेशा ही बदलाव अपनी पैनी नजर भी रखनी होती है और समीक्षा भी लगातार करनी होती है। कई बार अपने निर्णय में भी जरुरत के अनुसार बदलाव करना पड़ता है।स्कूली शिक्षा और शिक्षा के दूसरे स्तरों पर भी समय की मांग की अनुसार बदलाव किया जाता है। इसके लिए हमारी शिक्षा नीति की भी लगातार समीक्षा की जाती है। इस 2020 वर्ष में भारत सरकार ने अपनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में काफी बदलाव किए हैं। ऐसे बदलाव पहले भी हुए हैं और आवश्यकतानुसार आगे भी समय की मांग की अनुसार करने ही पड़ेंगे।"


"मैडम,तब तो जो भी धन खर्च किया जाए सोच समझकर किया जाना चाहिए। जब बहुत सारा धन हम जिस काम में खर्च कर रहे हैं उसका परिणाम स्पष्ट है कि सभी को तो वैज्ञानिक बनना नहीं है तो फिर जो धन ऐसे लोगों के ऊपर खर्च कर दिया गया जिन्होंने वैज्ञानिक बनना ही नहीं है। तब तो व्यय किया गया धन स्पष्ट रूप से बेकार ही तो हुआ।"-जिज्ञासा ने अपने मन के भावों को स्पष्ट करते हुए कहा।


"प्यारे बच्चों,आशा ही जीवन है हमें कभी भी निराश नहीं होना चाहिए।कभी-कभी ऐसे परिणाम आते हैंजिनकी दूर-दूर तक संभावना नहीं होती। तुम सबको फटा होना चाहिए कि अल्बर्ट आइंस्टीन अपने बाल्यकाल के दिनों में कुशाग्र बुद्धि बालक नहीं थे। तुमने सब ने उनके बारी में वह कहानी सुनी होगी जिसमें उनके विद्यालय ने उनके घर पर एक पत्र भेजा था जिसमें यह सूचना डी गई थी कि आपका बच्चा पढ़ने में इतना कमजोर है कि उसे अब हम उसे अपने विद्यालय ने नहीं रख सकते। उनकी मां ने वह पत्र पढ़ा लेकिन आइंस्टीन को इस बारे में उनकी माने उन्हें बताया कि तुम्हारी विद्यालय यह लिखा कि आपका बच्चा पढ़ने में बहुत ही तेज है कि हमारी विद्यालय में ऐसे ज्यादा बुद्धिमान बच्चे को पढ़ाने की व्यवस्था नहीं है। उनकी आगे की शिक्षा की व्यवस्था घर पर ही अलग तरीके से की गई और पुणे उनकी मानी लगातार प्रेरित किया।इस सतत् प्रेरणा और आस्तीन की जिज्ञासु प्रवृत्ति जिसमें उनके प्रयोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।आज हम सबके बीच में यह प्रमाण है कि 'सापेक्षता का सिद्धांत' विश्व को देने वाले विश्व विख्यात वैज्ञानिक के रूप में सारे संसार में प्रतिष्ठित हैं। आज भी हम सब लोगों के बीच से ऐसे प्रतिभाशाली बच्चे हैं जो आर्थिक रुप से कमजोर पृष्ठभूमि वाले परिवारों से और अभावों में अपना जीवन गुजारने वाले बच्चे हैं जो अपनी प्रतिभा को धैर्य ,साहस ,परिश्रम, अनुशासन और नियोजन के सहारे निखारते हैं और समाज को आश्चर्यचकित कर देने वाले परिणाम देते हैं।हमारी मिसाइल मैन के नाम से विख्यात पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम और वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र जी मोदी आज के समय के अनुकरणीय प्रेरणादायी व्यक्तित्व हैं। सतत् होने वाले आविष्कारों का ही यह परिणाम है कि कम से कम संसाधनों का उपयोग कर उन से अधिक से अधिक सुविधा देने वाले लाभ देने वाले यंत्र विकसित हो रहे हैं। फिर कोई बात किसी को व्यावहारिक रूप से ज्यादा अच्छे तरीके से समझाई जा सकती है। हम सब ने 'बीरबल की खिचड़ी' वाली कहानी के बारे में सुन ही रखा है। अपनी बात को अकबर को समझाने के लिए बीरबल ने एक प्रयोग का ही सहारा लिया था। आज तुम सब उस कहानी को सुनना चाहोगे। कौन सुनाएगा यह कहानी?"-रजनी मैडम ने कक्षा को बताया वे अपने तरीके से जिज्ञासा के प्रश्न का उत्तर पूरी कक्षा के सामने रखना चाहती थीं।


"हमारी कक्षा के तेनालीरमन रीतू से।"-रीतू को छोड़कर कक्षा के सभी बच्चे एक साथ बोले।


सभी बच्चों की इच्छा की अनुसार रजनी मैडम के आग्रह और उनकी अनुमति से रीतू ने कक्षा में कहानी सुनाई।


"भीषण सर्दी के मौसम में अकबर राज्य के भ्रमण पर थे। एक जगह कुछ लोग सर्दी से बचने के लिए जलते हुए अलाव के चारों ओर खड़े होकर हाथ सेंक रहे थे। कोई कह रहा था कितनी भीषण सर्दी है? इस भीषण सर्दी में आग के सहारे के बिना जीवन कितना मुश्किल है। पानी को छुओ तो ऐसा लगता है कि वह काट रहा हो। ऐसे में यमुना नदी को घुसकर और करना एक असंभव सा कार्य है। लोग ऐसे ठंडे मौसम में नियमित स्नान की जगह कुछ अंतराल के बाद ही दोबारा स्नान करने की बात कह रहे थे। एक व्यक्ति बोला की सर्दियां है तो कुछ लोग सफाई का ध्यान नहीं रखते। मैं तो भैया सफाई पसंद हूं और हर पंद्रह दिन में स्नान करता हूं। दूसरा वाला कितने गंदे हो तुम। पंद्रह दिन के बाद नहाते हो मेरे शरीर में तो गंदगी बर्दाश्त नहीं होती है चौदहवें दिन मेरे शरीर में खुजली होने लगती है और स्नान किए बिना मुझे चैन नहीं आता। "-सुनते ही पूरी कक्षा में हंसी का जोर का ठहाका लगा।


रीतू अपनी कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा-"एक बोला। भैया, यह सर्दी -गर्मी- बरसात , हर मौसम में आराम करना ,सब अमीरों के हिस्से में है। हम गरीबों को तो हर मौसम में मेहनत मजदूरी करनी ही पड़ती है। इतनी सर्दी है तो क्या हुआ? अगर कोई मुझे इनाम दे तो इस सर्दी में भी मैं यमुना के जल में पूरी रात भर खड़ा रह सकता हूं। अकबर ने यह सुना और उन्होंने उस व्यक्ति को बुलाकर कहा यदि तुम पूरी रात यमुना के जल में खड़े रहोगे तो मैं तुम्हें एक हजार स्वर्ण मुद्राएं इनाम में दूंगा।

उस व्यक्ति ने शर्त स्वीकार कर ली और शर्त के अनुसार पूरी रात यमुना के जल में खड़ा रहा। सवेरा होने पर वह अकबर के दरबार में गया और उसने अपना इनाम प्राप्त करने के लिए अकबर से निवेदन किया। अकबर ने उससे पूछा की पूरी रात यमुना के ठंडे पानी में वह किस प्रकार खड़ा रहा उस व्यक्ति ने निवेदन किया महाराज आपके महल में दीपक जल रहा था मैं उसी दीपक को देखता रहा और जल में खड़ा रहा। अकबर ने उसे उसको दिए जाने वाले इनाम को देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि वह महल के दीपक की गर्मी के सहारे ही पूरी रात यमुना के जल में खड़ा रह सका । बीरबल भी उस समय दरबार में उपस्थित थे उन्होंने अकबर को उनके द्वारा किए जा रहे अन्याय को उन्हें समझाने के लिए एक प्रयोग किया था। अगले दिन बीरबल दरबार में उपस्थित नहीं हुआ अकबर उनसे किसी विषय में कुछ मंत्रणा करना चाहता था उसने दरबार से सैनिक बीरबल को घर से बनाने के लिए भेजें उन सैनिकों ने दरबार में वापस आकर बताया कि महाराज बीरबल का कहना है कि अभी उसने खाना नहीं खाया है। खिचड़ी बना रहे हैं बनते ही खिचड़ी खा कर दरबार में उपस्थित हो जाएंगे। इसके बाद सैनिकों कई बार बीरबल के घर पर भेजा गया हर बार सैनिक खाली हाथ वापस आते और आकर बताते महाराज अभी खिचड़ी नहीं बनी। जब बहुत ज्यादा देर हो गई तो अकबर स्वयं ही बीरबल के घर की ओर यह देखने के लिए निकल पड़े कि बीरबल कैसी खिचड़ी बना रहा है? जो अभी तक बनकर तैयार नहीं हुई। वे जब बीरबल के घर पहुंचे तब उन्होंने देखा कि जमीन पर गाडे़ गए एक बहुत बड़े बांस के ऊपर वाले छोर पर हांडी बंधी हुई हुई हैऔर उसके नीचे बैठे बीरबल थोड़ी-थोड़ी सी आग जला रहे हैं। अकबर ने बीरबल को ऐसा मूर्खतापूर्ण कार्य किए जाने का एहसास कराते हुए पूछा कि बीरबल क्या इस तरीके से कोई खिचड़ी पक सकती है ? बीरबल ने अकबर से कहा हुजूर जब आपके महल के दीपक की रोशनी से यमुना में खड़े हुए आदमी को आंच का असर होकर वह सर्दी के असर से बच सकता है तो इस आग की आंच खिचड़ी भी अवश्य पक सकेगी। अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने उस व्यक्ति को दरबार में बुलाकर सम्मानपूर्वक उसका इनाम उसे प्रदान किया। तो यह है उस प्रयोग की महिमा जिसकी मदद से अकबर को उनकी गलती का एहसास कराया गया और एक गरीब को न्याय मिल सका।"


रजनी मैडम ने पूरी कक्षा को समझाया- " हमारे समाज में बहुत से रीति रिवाज हैं। जिनको धर्म से जोड़ दिया गया चूंकि धर्म आस्था का विषय है और समाज का अधिकतर भाग इन्हें स्वीकार करता है। इन रीति-रिवाजों के पीछे भी एक लंबे अनुभव से जांचे परखे गए वैज्ञानिक आधार होते हैं। यह रीति रिवाज व्यवहार भी देश,काल, परिस्थिति आदि के अनुसार भिन्नता लिए हुए होते हैं और समय के अनुसार इनमें बदलाव भी होता रहता है। धर्म के नाम पर कुछ ठेकेदार सीधे सच्चे सरल लोगों को बहकाकर उनका शोषण करते हैं और कुछ बहुत ही आधुनिक होने का दम भरते हैं जो इन रीति-रिवाजों के पीछे के वैज्ञानिक तथ्यों पर ध्यान दिए बिना उनमें तो त्रुटियां ढूंढते रहते हैं। आज के समय में कोरोना वैश्विक महामारी ने हमारी भारतीय संस्कृति की उत्कृष्टता को प्रमाणित किया है। किसी दूसरे व्यक्ति से मिलते समय उसे पूरा सम्मान देते हुए दूर से दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करने की पद्धति सुरक्षित सिद्ध हुई है।बाहर से आने पर अपने को शुद्ध करने के पश्चात ही घर में प्रवेश करना। किसी भी खाद्य पदार्थ या दूसरे की शुद्धता से पूरी तरीके से संतुष्ट होने के पश्चात ही उसे ग्रहण करना। घर के किसी सदस्य के अस्वस्थ होने पर उसे घर के स्वस्थ सदस्यों के संपर्क में आने से यथासंभव बचाना। अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए एक नियमित दिनचर्या जिसमें सोने, जागने काम और आराम करने के घंटे नियत करना। आपके कार्य में शारीरिक श्रम को हर हाल में शामिल करना नियमित योग , व्यायाम और ऋतु के अनुसार आहार- व्यवहार के नियमों का पालन करना। प्रकृति संरक्षण को भी हम सबको ध्यान में रखना अनिवार्य है। हमारे त्यौहार हमारी जीवन चर्या को नियमित और हमें परंपराओं के अनुसार हमें स्वस्थ रखने और जीवन में एकरसता से बचाकर जीवन के प्रति हमारी रुचि को बनाए रखते हैं। पेड़ -पौधों और जीव-जंतुओं सहित अनेकानेक निर्जीव प्राकृतिक वस्तुओं को पूजनीय मानने की यह सामाजिक परंपराएं समाज के सभी वर्ग और व्यवसाय के लोगों की जीविका के लिए भी आवश्यक रूप से उपयोगी होती हैं। कई बार हम यह देखते हैं कि कुछ चीजें जिस तरीके से सैद्धांतिक रूप में सफल या असफल होती हुई दिखती हैं। उनकी सत्यता की जांच व्यवहारिक रूप से जांचने के बाद ही हो पाती है। केवल पुस्तक पढ़ने से भोजन बनाने , तैरने, सिलाई, बुनाई, वाहनों को चलाने जैसे अनेकानेक कार्य हो ही नहीं पाएंगे।ये सभी काम तभी बेहतर तरीके से हो पाएंगे जब उन्हें व्यावहारिक रूप से बार-बार किया जाए। विद्यालय में गणित पढ़ने वाले विद्यार्थियों से कहीं ज्यादा जल्दी छोटी मोटी दुकान पर बैठने वाले कम पढ़े लिखे लोग भी चीजों के खरीदने- बेचने पैसे के लेन-देन का हिसाब किताब बेहतर तरीके से कर पाते हैं। व्यवसायिक प्रशिक्षण देने वाले अधिकांश कोर्सेज में उनके इंटर्नशिप का भाग भी बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होता है ।प्रयोगात्मक कार्य हमारी शिक्षा व्यवस्था का अनिवार्य और अपरिहार्य अंग है।हम सबने यह भी सुन रखा है न-

करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। 

रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान।।"


अब कक्षा के सभी बच्चे प्रयोगों के महत्त्व को भली भांति समझ चुके थे।


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