वर्गमित्रों की एक पहल
वर्गमित्रों की एक पहल
कुछ मित्र अपने पुराने सभी मित्रों को मिलने के लिए बहुत आतुर थे। मिलना तो वे सभी एक-दूसरे से चाहते थे। उनकी चाहत पुरी कैसी होगी ये उन्हें समझ नहीं आ रहा था। इसके लिए कुछ स्थानीय मित्रों को लेकर, नागपुर में बसे तीनों धुरंधरों ने कमान अपने हाथ ले ली थी। उन्होंने जो एक वाट्स ग्रुप बनाया था। उसी का वे सद-उपयोग करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने एक संदेश वाट्स ग्रुप पर डाल। जो सभी बिछड़े वर्ग मित्रों को उनके अपने स्कूल में पुनर्मिलन के संबंध में था। वे सभी मित्रों के प्रतिसाद के इंतजार में थे। उन्होंने ये संकल्प किया था कि किसी भी कीमत पर पुराने मित्रों का पुनर्मिलन कार्यक्रम करना है। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। इसलिए कुछ अति उत्साही मित्रों ने इस दिशा में पहल की थी। चैन्नई के मित्र ने तुरंत उसका अनुमोदन कर, कार्यक्रम करने वाले कर्मठ सदस्यों से बातचीत की थी। उसके अनुमोदन से उन्हें ऊर्जा मिली थी। क्योंकि एक और एक ग्यारह होते है।
पदमनाभन: हैलो अरुण, मैं पदमनाभन बोल रहा हूँ । कैसे हो?।
अरुण : अच्छा हूँ। और आप कैसे हो, बढ़िया। कैसे याद किया इस सुदामा मित्र को, बहूँ त दिन बाद याद आई है। मैंने तो मान लिया था कि आप अभी पुरी तरह से चैन्नईवासी हो गये हो। और हमें आप भूल चुके है। लेकिन मेरा सोचना आपने गलत सिद्ध कर दिया है। चलो देर आयें, दुरुस्त आयें।
पदमनाभन: अरे आप तो हमारे दिल में ही बसे हो। हनुमान होता तो, सीना फाड़ के आपको, आपकी प्रतिमा दिखाता। सिर्फ बातचीत नहीं हो पाती । अरे आज मैंने व्हाट्स अप पर श्रीकांत का मेसेज देखा। उसने अच्छा प्रस्ताव रखा है। हमें इसका समर्थन करना चाहिए। ये अच्छा अवसर होगा। हम सब पुराने मित्र-मिलन का !। हमें इसे को अमल में लाना ही होगा। मैंने तो इसका समर्थन किया है।
अरुण : हां। मैं भी इसका समर्थन करता हूँ । वैसे मेरी श्रीकांत और गुनवंता से बात हो चुकी है। इस कार्यक्रम को कैसे करना है। इसकी रूपरेखा तैयार भी कर ली है। बस सभी मित्रों के समर्थन के बाद आगे की कार्रवाई करते है। मैं अभी से इस कार्यक्रम के लिए आप को शुभकामनाएं दे देता हूँ । आप और भाभी को इस कार्यक्रम के लिए प्रथम नागपुर आना है। फिर हम सब मिल के पुलगांव चलेंगे। वैसे हमने, इस कार्यक्रम को अपने स्कूल में ही करने की सोचा है। इस में हम , स्कूल के प्राचार्य और कुछ अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों को बुला लेंगे। मेरी दिली तमन्ना है कि हमारे जीतने भी जीवित गुरुजन हैं, उन सभी को आमंत्रित कर के उनका स्वागत करेंगे। उन्हें सम्मानित करेंगे !।आप अपने सुझाव भी दे सकते हो।
पदमनाभन: हां मैं आप के सुझाव से एकदम सहमत हूँ । मेरे कोई सुझाव होंगे, तो मैं ग्रुप पर डालूंगा। अब की बार आपके यहां पक्का आना ही है। पिछले वक्त मैं रुक नहीं सका। लेकिन अब की बार जरूर रुकूंगा !। पुराना हिसाब जो चुकता करना है।
अरुण : यह मेरा सौभाग्य होगा कि आप लोगों के पदकमल हमारे घर को छूएंगे !। हाँ सेवा का मौका देंगे। बीच -बीच में हमें आपके महत्वपूर्ण दिशा निर्देश कार्यक्रम संबंधी देते रहना। कुछ दिन बाद फिर गुनवंता ने मुझे फोन किया।
गुनवंता: अरे अरुण , तु देख रहा है ना, मित्रों का कार्यक्रम करने के प्रति बहूँ त उत्साह है। लोहा गरम हैं, तुरंत उस पर वार करना चाहिऐ। हमें अभी इसे गंभीरता से लेना चाहिए। अरे यार श्रीकांत ने तो कमाल कर दिया है। कितनी मेहनत करके सब लोगों को जोड रहा है। कई महिलाएं भी जुड़ गई है। वे सभी अन्य सहेलियों को जोड़ने का भरसक प्रयास कर रही है। इस में वे सफल भी हो रही है। हमने सोचा नहीं था। उससे ज्यादा प्रतिसाद मिल रहा। अंडे से वे कोई, बच्चे ले वे कोई। हम इसका अभी से पूरा श्रेय श्रीकांत को देते है। अब वही सबके आँखों का तारा है।अभी तो मैंने सोच लिया की कार्यक्रम करके रहेंगे। चाहे इस के लिए हमें जमीन -आसमान एक करना पड़े । तो भी करेंगे। श्रीकांत का कार्य उलटी गंगा पहाड़ चली जैसा है। जिसकी जीतनी तारीफ की जाए, कम है। मेरा तो गाना गाने का दिल कर रहा है। बन के चलूँ , मस्त उडूं, मस्त गगन में। आज मेरे पैर नहीं पड़ते है जमीन पर।
अरुण : कार्यक्रम जरूर करना है। श्रीकांत ने जो मेहनत ली है। उसे बेकार नहीं जाने देंगे। मेरा सुझाव है कि सभी मित्रों को अपने परिवार के फोटो और अन्य जानकारी एक दूसरे के साथ साझा करने के लिए वाट्स अप पर डालने के लिए आग्रह करना चाहिए । इससे हमारे कमजोर हुये संबंध को नई ताकत मिलेगी। सब के परिवार वाले भी एक दूसरे से जुड़ जायेंगे। हमें कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने में इसका फायदा होगा।
गुनवंता: आज ही ऐसी पोस्ट में वाट्स अप पर डालता हूँ ।
अरुण : दूसरे दिन गुनवंता ने सभी सदस्यों को आग्रह किया कि वे अपने परिवार के फोटो ग्रुप में डाले। गुनवंता ने इसकी शुरुआत खुद ही परिवार का फोटो डाल कर की थी। धीरे –धीरे सभी एक –दूसरे का, देखा- देखी परिवार सहित अपने फोटोज डालने लगे। अपने- अपने परिवार संबंधी जानकारी साझा करने लगे। एक –दूसरे के परिवार की जानकारी से सभी को एक –दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा। ग्रुप के सदस्यों के चहरे देख-देख कर एक–दूसरे को याद आने लगे। काफी संख्या में पारिवारिक जानकारी ग्रुप में उपलब्ध होने लगी। सभी की राय थी। एक्सठ्वीं का सामूहिक कार्यक्रम किया जाना चाहिए। सभी उसके लिए आर्थिक मदत देने के लिए भी तैयार थे। सदस्यों का उत्साह देखकर मैंने, गुनवंता और् श्रीकांत से आगे के कार्यक्रम के संबंधी चर्चा की। चर्चा में यह तय हूँ आ कि हम सभी एक बार इस संबंध में स्थानीय मित्रों से फिर चर्चा करके कार्यक्रम की अगली रूपरेखा तय करेंगे। आम सहमती के बाद हम सबने अगले रविवार को पुलगांव जाने का प्लान बनाया था। स्थानीय मित्रों को इसकी जानकारी दी थी। हम सब श्याम को अपने जन्मगांव पहूँ चे। हमारे पुराने मिलने के जगह पर फिर सब इकट्ठा हुए थे।
सभी ने हमारा गर्म- जोशी से फिर स्वागत किया। इस वक्त सब एक उम्मीद के साथ वहां जमा हुये थे। सब के दिल में अपने पुराने मित्र और गर्लफ्रेंड से मिलने की चाहत थी। किसी भी कीमत पर कार्यक्रम करना ही है। ये सभी मित्रों की मंशा थी।
गुनवंता: आप सभी जानते है कि आज हमें कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करनी है। इसलिए हम सब यहाँ इकट्ठा हुए है। यह कार्यक्रम फरवरी माह के प्रथम सप्ताह में हो जाए तो अच्छा है। फरवरी माह में ना ज्यादा ठण्ड न बहुत गर्मी रहती है। हम सब ने श्रीकांत का शुक्रिया अदा करना चाहिए क्योंकि उसने बहूँ त मेहनत करके इस कार्यक्रम के लिए सभी मित्रों को एकत्र किया है। आप जैसे जान चुके है की सभी मित्रों ने कार्यक्रम करने के लिए दिलचस्पी दिखाई है। इसलिए सभी मित्रों में प्राण वायु का संचार हो गया था। वे सभी अपने स्कूल वाले जोश में थे। मानो ये सभी साठ साल के बूढ़े सोला साल के जवान बन गये थे। जो कभी छोटी-छोटी बातों के लिए एक-दूसरे से लड़ लिया करते थे। अपना- अपना राग अलापना में विश्वास किया करते थे। कोई पीछे कभी पीछे हटना नहीं चाहते थे। हमेशा मेरे मुर्गी की एक ही टांग वाला रवैया रखते थे। उन्हें आज इतना अधीर और उतावला देखते हुये यकीन नहीं हो रहा था। कि ये वो पुराने स्कूल मित्र है जो हमेशा अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना चाहते थे। शायद उन्हें इस बात यकीन हो गया था। जब कोई चीज हमारे पास होती है, उसका महत्व हमें नहीं होता। लेकिन खो जाने पर उसकी असली कीमत समझ में आती है। शायद यहीं सबके साथ हो रहा था। एक पंथ दो काज, वे इसी बहाने अपने दोस्तों को मिलकर उन्हें शुक्रिया करना चाहते थे।
श्रीकांत: अगर स्कूल के प्राचार्य सर, मान जाते हैं। तो हम उसी वक्त आवश्यक कार्रवाई करके स्कूल के नियमानुसार भुगतान करके हॉल का बूकींग कर लेते है। बाद में जो हमारे समय के अभी जीवित शिक्षक गण को भी उनके घर जाकर आमंत्रित करते है। चर्चा के दौरान खाने की प्लेट्स भी लग गई ।
अरुण : अरे चलो, मुझे बहुत भूख लग चुकी है। खाना शुरु करो। साथ में चर्चा भी जारी रखो। अपने- अपने सुझाव भी देते रहो। मजाक करते हुए मैंने श्रीकांत से कहाँ। अरे तूने सभी गर्लफेंड को कैसे संपर्क किया। संपर्क करने में कोई दिक्कत तो नहीं आई।
श्रीकांत : जब किसी गर्लफेंड को फोन करता था। तो उसके पति राज उठाते थे। मैं अपना परिचय देता। मैं श्रीकांत बोल रहा हूँ । मुझे सुलभा से बात करनी है। उसका पती कहता क्यों करनी है। फिर मैं कहता कि आप की पत्नी मेरी वर्गमित्र है। तो अभी क्या करना है। हम कुछ मित्रों ने सोचा है कि सभी पुराने मित्र फिर से एक बार मिलेंगे। एक पुनर्मिलन समारोह करने की सोचा है। इस बहाने सभी का एक दूसरे से पुनर परिचय हो जाएगा । सामूहिक इकसठवीं भी मना लेंगे। कुछ समझदार पती तुरंत फोन दे देते थे। कुछ काँट देते थे। मेरी तरह। ओखली में सिर दिया तो मूसल क्या डर, मैं फिर से फोन लगाता था। फिर अपना परिचय दे के ,संपर्क कर लेता था। बातचीत हो जाती थी। परिचय होने पर जो नागपुर या आस-पास के शहरों में रहती उन से मिलने चले जाता। मिलने के बाद मोबाइल नंबर सेव कर लेता था। उससे अन्य सहेलियों के संबंध में जानकारी प्राप्त कर लेता था। कुछ सहेलियां अतिरिक्त प्रयास करके, मुझे मोबाईल पर जानकारी देती थी।
अरुण : अरे तु जब मिलने जाता। तुझे अटपटा या अंदर से डर नहीं लगता था।
श्रीकांत : काहे का डर। जब सर ओखली में दिया है तो अंजाम से क्या डरना ?। अरे अपनी गर्लफेंड से ही तो मिलने जाता था।
अरुण : अबे गर्लफेंड का नहीं। उसके पति या बच्चों का।
श्रीकांत : अरे अपने सफेद बाल देख के कोई कुछ क्या कहेगा ?।
अरुण : आसाराम के हरकतों के बाद , सफेद बाल वालो पे कोई भरोसा नहीं करता। सब जोर से हँसने लगे। बाद में मैंने कहां । तेरे प्रयासों के कारण ही हमें भी अपनी गर्लफेंडस से मिलने का सुनहरा अवसर प्राप्त होगा !। सभी मित्र इस बात से सहमत थे। एक ने कहां। पता चलेगा। की वो क्या कर रही है अभी ?
अरुण :अरे वो क्या कर रही है अभी ,से ज्यादा ,अरे अभी वो कैसी दिखती है। ऐसा बोलो। सब लोग हँसने लगे।
श्रीकांत : इसी लिए तो सबको फोन कर –कर के परिवार के नवीनतम फोटो डालने को कह रहा हूँ । एक मित्र ने मजाक में कहाँ। अबे, उसी के ही फोटो डालने को कहना।
अरुण : अरे श्रीकांत बहूँ त अक्लमंद है। उसे डर है कि वो अपने जवानी का फोटो ना डाल दे। फिर कैसे पता चलेगा कि अभी वो कैसी दिखती है। भाभी से अच्छी तो नहीं लगती है ना ?। सब मित्र मिलकर हंस रहे थे। श्रीकांत शर्मा रहा था। मैंने कहा, देखो वो कैसा शर्मा रहा है। बाल सफेद हो गये। लेकिन, अभी उसकी जवानी कायम है। रस्सी जल गई है, लेकिन बल अभी बाकी है।
श्रीकांत : बंदर कितना भी बूढ़ा हो जाए, छलांग, मारना नहीं छोड़ता। सभी हंसने लगे।
अरुण : इसीलिए इतनी मेहनत कर रहा है। ठहर जा भाभी को बताता हूँ । हम सब उसकी मजे ले रहे थे। वो धीरे –धीरे मुस्कुरा रहा था। बात को आगे बढ़ाते हुए
मैंने कहां। चलो, अच्छा बता। वो फोटो, जिसका तुझे इंतजार है। अभी आया है की नहीं ?। सब हँसने लगे।
श्रीकांत : उसने कहां, हां, मित्रों ने पुछा ,अरे कौन है वो ?
श्रीकांत :वो राज की बात है। वो राज पता करने का काम आप का है। लग-भग भोजन समाप्ति की और था। सभी ने कहां कल हम स्कूल और अन्य कार्य के लिए सुबह मिलते है। सब मित्र अपने- अपने घर निकल गये6 थे। हम बाहर से थे। इसलिए हमारा ठहरने की प्रदीप ने व्यवस्था अपने घर में की थी। फिर हम प्रदीप के घर गये। सुबह उठने पर टहलने के लिए गांव के नदी की और निकले। चलते- चलते एक- दूसरे के साथ पुराने यादों को साझा कर रहे थे। हम कैसे बचपन में साइकिल पर कपड़े लेकर नदी पर धोने जाया करते थे। पंचधारा में मटर मस्ती करते थे। बातें करते- करते हम कब पंचधारा के पास तक आ गये, पता भी नहीं चल। वहां पहिले से अभी काफी परिवर्तन आ चुका था। हम मित्रों ने खूब आनंद लिया। फिर से प्रदीप के घर लौट आयें। तैयार हो के, भाभी ने बनाया नाश्ते का आनंद लिया। फिर सब मित्र स्कूल जाने के लिए निकले थे।