Arun Gode

Inspirational

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Arun Gode

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मालव्दिप यात्रा.

मालव्दिप यात्रा.

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          एक साधारण परिवार का बच्चा, जब स्कूल में पढ़ा करता था। तब पढ़ते समय, उसे उसके भूगोल के किताबों में, उसने देखा की इतने बड़े पृथ्वी के भू-भाग पर, उसके भारत देश जैसे कई देश मौजूद हैं। वे सभी देश, भारत जैसे प्राकृतिक संसाधनों से, आकर्षक कुदरती नजारों से परिपूर्ण हैं। वहाँ भी हमारे जैसे लोक रहते हैं। जिनकी संस्कृति हमारे से भिन्न हैं। वहाँ भी कई कुदरती रहस्यमय मनोहर नजारे हैं । मानव के लिए, कुदरत ने एक ही धरती बनाई हैं । लेकिन मानव ने , उस पर कही भारत, जापान और ईरान बनाया हैं। उसे तभी से विदेश घूमने का जुनून उसके सिर पर मंडरा रहा था। वह, उसने अपने खुले आंखों से देखा ख्वाब था। लेकिन वह ख्वाब, निकट भविष्य में पूरा होने के आसार नजर नहीं आ रहे थे॰

       जब वह पढ़ लिखकर, जॉब करने लगा था। तभी उसने अपने विभाग में अन्य कर्मचारियों की तरह , कार्यालीयन कार्यों के लिए विदेश जाने का जी तोड़ प्रयास किया था। लेकिन उसे कभी भी सफलता नहीं मिली थी। कई अवसरों पर उसने स्वयं के खर्चे से जाने का प्रयास किया था। लेकिन विभाग ने ,उसे उसके जिम्मेदारियों को देखते हुए इजाजत नहीं दी। फिर उसने, सेवानिवृती के बाद, विदेश भ्रमण करने की योजना बनाई थी। उसने अपनी सभी पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरी कर ली थी। वह सेवानिवृती के पश्चात, एक आजाद पंछी की तरह विदेश में भ्रमण करना चाहता था। लेकिन उसकी किस्मत ही फुटी थी। जैसे ही वह सेवानिवृत्त हो गया था कि दुनिया में, सदी की महामारी का प्रकोप दुनिया भर में फैल चुका था। सभी देशों ने प्रवासीयों के आने पर पाबंदियां लगा दी थी। लोक तो अपने ही घरों से बाहर नहीं निकाल पा रहे थे। वह एक बड़ा महामारी का  आतंकी संक्रमण काल था। कई पृथ्वी वासियों की जान, उस दौरान कई थी। वह भी उस महामारी का शिकार हुआ था। लेकिन , उस महामारी के प्रकोप से बच गया था। पर्यटन उद्योग , अन्य उद्योगों के साथ दम तोड़ रहे थे। कई देशों की अर्थ व्यवस्था चरमरा गई थी। वैज्ञानिकों ने अथक प्रयास के बाद, उस महामारी पर वैकसीन तयार की थी। उसके बाद, देश विदेशों में व्यापक टिकाकरण का जनहित में कार्यक्रम चलायां था। तभी पर्यटन उद्योग के गिने –चुने द्वार खुले थे। उसने भी वैकसीन लगवाई थी। उसी महामारी में, उसके लड़के की, रुकी हुई शादी हो चुकी थी। महामारी की तीव्रता कुछ कम हुयी थी। तभी उसके परिवार ने, मालदीव जाने का फैसला किया था। उसके लड़के ने, जाने के पूरी योजना बनाकर, उसे कार्यान्वित करने का सोचा था। उसके लिए उसने अपने माता-पिता को, उसके कार्यस्थल बेंगलरु में बुलाया था। उस के माता –पिता ने विदेश यात्रा में कोई खलल ना पड़े, इसके लिए वैक्सीन का बूस्टर टीका भी लगवायां था। योजना नुसार, वे दोनों बेंगलरु गऐ। वह बहुत खुश था। बचपन में देखा सपना, अभी हकीकत में बादल जानेवाला था। मालदीव जाने की तिथी करीब आ रही थी । सभी तैयारियां हो चुकी थी। अचानक उसे काफी तेज बुखार आ गया था। उसे डॉकटर को दिखायां गया था। लेकिन उसका बुखार कम नहीं हो रहा था। मलेरिया , डेंगू ,और कोरोना की जांच की गई थी। वह फिर से कोरोना पॉज़िटिव निकाला था। फिर उसके सपने को ग्रहण लग चुका था। लड़के ने ,सूझबूझ दिखाते हुए, कार्यक्रम को पुनर्निधारीत किया था। वह ठीक होने के बाद, नियत तिथि को बेंगलरु से, वे माले गए थे।

      माले हवाई अड्डे पर, पहुँचने पर, सभी औपचारिकतायें पूरी होने बाद , हम सभी हवाई अड्डे के बाहर आए थे। जहां से हमें, कुरामाती दीप जाना था। जैसे ही हमने, चारों तरफ देखा ,तो विशाल हिंद महासागर नजर आया था। अलग क्षेत्रों में, अलग –अलग रंग के, जल निकाय दूर –दूर तक नजर आ रही थी। उसे देखते ही रहने का मन कर रहा था। लेकिन हमारी नांव लग चुकी थी। उसमें हमारा सामान लोड हो चुका था। उसके छूटने का संकेत हो चुका था। हमने अपनी जगह निश्चित कर ली थी। स्थानीय कर्मचारी ने, सभी सैलानीयों को शुभ कामनाएं देते हुए बिदाई दी थी । कुदरत का नजारा देखने के लिए, हमने खुली नांव का चयन किया था। नांव समुद्र के लहरों को काटते हुए , तेज से आगे बढ़ रही थी । पाणी के फुहारें, सभी पर्यटकों लुभा रहे थे। जैसे –जैसे नांव रास्ता काट रही थी । वैसे-वैसे, नांव के पिछवाड़े की तरफ , पानी का सफेद चौड़ा पट्टा, रास्ते की तरह बनाते जा रहा था। उस पट्टे को देखकर, ऐसा लग रहा था कि नांव उस रास्ते से चल रही हो । एक से डेढ़ घंटे का प्रवास पूरा करने के बाद, हम अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचे थे। 

    वहाँ हमने अपने दो कमरे बुक किये थे। जाते ही हमारा, वहाँ तैनात स्वागती द्वारा स्वागत किया गया था। जाते ही उन्होंने हमें, गिले रुमाल, पसीना पुछने के लिया दिया और बैठने का आग्रह किया था । अन्य कर्मचारी द्वारा ठंड पेय  दिए गए थे । बाद में हमें अपने बुक किए गए , कमरों में विद्दुयतीय वाहन द्वारा छोड़ा गया था। रहने की सुविधा एकदम बढ़िया थी । ताजा –तवाना होकर , शाम के समय जब सूरज समुद्र में डुबने का वक्त था । हम समुद्र की हवा का लुप्त उठा रहे थे । वहाँ का समुद्र किनारा एकदम से रोमांचित कर देने वाला था । बहुत देर तक हम, आनेवाले समुद्र के लहरों से , दिल भरने तक छेड़खानी कर रहे थे। इस खेल को खेलते समय, हम सभी को , अपने आप ही ताजगी महसूस हो रही थी। कुदरत के करीब रहने से, ताजा –तवाना बनाने के लिए किसी अतिरिक्त ऊर्जा पेय की जरूरत नहीं होती। बहुत समय होने के बाद, रात्री भोज करके अगले दिन का लुप्त उठाने के लिए, हम सभी गहरे निंद लेने बिस्तर पर चले गए थे। सुबह उठने पर, फिर उगते हुए सूरज का मनोहर दृश्य देखने, दूसरे समुद्र किनारे पर चले गए थे। उसी दिन हमारा स्कूपा डायविन का कार्यक्रम था। समुद्र के बाहर का नजारा, जीतना सुंदर होता हैं, उतना ही आकर्षक दृष्य अंदर भी होता हैं। उसे देखने मैं कॉफी मजा आता हैं। तीसरे दिन ,हम सब पैरासिलिंग के लिए गए थे। उसमें हमें प्रथम लाईव जाकेट दिया गया था। फिर एक छत्री द्वारा, जिस को  एक बड़े मजबूत रस्सी से बांधा गया था । उस छतरी के सहारे ,हम गहरे समुद्र में पंछी की तरह ऊंची उड़ान भर रहे थे। काफी समय बाद, हमें उतारा गया था। उसका आनंद दिल में लिए, हम बाहर आ चुके थे। करामथी बेट, बहुत साफ-सुतरा और प्रदूषण मुक्त हैं । तीसरे दिन, हम करामथी का सैर-सपाटा करते हुए निकले थे। पूरा बेट हरा-भरा हैं , कई बड़े –बड़े नारियल के पेड़ दिखाई देते हैं। सभी वाहन विद्युत पर चलने वाले होने के कारण, वायु और ध्वनि प्रदूषण नाम मात्र था। द्वीप में, स्थानीय जरूरत के लिए, वही पानी का शुद्धिकरण यंत्र लगा था। वहां के बिजली जरूरत को, वही निर्माण किया जाता हैं। सभी अन्य जीवनावश्यक चीजें, ज़्यादातर बाहर से आयात होती हैं। इसलिए किसी प्रकार का प्रदूषण, वहाँ महसूस नहीं होता हैं । अगले दिन, हम सभी वॉटर विला में रहने चले गए थे।  यहाँ पर्यटकों के रहने के लिए, समुद्र के अंदर, अतिथि गृह बने है । वहाँ पाहूँचने के लिए, जमीनसे वहाँ तक सीलिंक बनायें गए हैं । उसके सहारे ,आप अपने रहने के अतिथि गृह में जा सकते हैं। उन अतिथी गृह से, आप , विशालकाय सागर, उसमें उठानेवाले लहरे, उनकी आवाज़ें, जो आपके अतिथि गृह को टकराती हैं। उसे आप लगातार देख सकते हैं। अपने बेड पर लेटे –लेटे, आप उस प्राकृतीक नजारोंका भरपूर आनंद ले सकते हैं। दूसरे दिन, हम  समुद्र को बाटनेवाली जगह का आनंद लेने गए थे । दो भाव्य जलनिकायों के बिच में, एक सकरा रेतीली रास्ता था। जिस के, दोनों और, जल निकायों से उठती समुद्र की लहरे, आपको आके टकराती हैं। धीरे –धीरे , वह रास्ता और सुकुड़ते जाता हैं, और पर्यटकों को, धीरे –धीरे पीछे लौटने को बाध्य करता हैं। दूसरे दिन फिर वह रास्ता बड़ा होता हैं। यह प्रतिदिन की परिघटना वहां आप देख सकते हैं। वहाँ सैलानी फोटोग्राफी का बहुत आनंद लेते हैं। पर्यटकों के लिए, कुछ फोटोग्राफी लिए, पूल समुद्र के अंदर तक बनाए गए हैं । उसका मजा कुछ और ही । हम दो दिन उस वॉटर विला रहे थे। आखरी दिन, हम उसके पास में ही, एक दूसरा द्वीप था । वहाँ गए थे। वहाँ मालव्दिपवासी रहते हैं । वैसे तो, वहाँ हजारों व्दिप हैं। उसमें भी मालव्दिपवासी रहते हैं ।वहाँ हम सभी एक दूसरे बोट से गए थे। वहाँ स्थानीय पर्यटकों के लिए मंडी हैं। वहाँ बनी और अन्य जगह से लाई गई वस्तुऐ बाजार में उपलब्ध थी। कई पर्यटकों ने हमारे साथ यादगार के तौर पर स्थानीय कलाकृति खरीदी थी। उसके अगले दिन, फिर हम सब मालव्दिप की राजधानी के लिए निकले थे। उसी दिन फिर हम श्याम के समय माले पहुंच गए थे। उस दिन, हमने हवाई अड्डा परिसर का व्दिप देखा था। राजधानी माले के लिए, हवाई अड्डे से जाने के लिए, पहले जहाजों से जाया कराते थे। अभी वहाँ से माले तक, एक सीलिंक बनाया गया हैं। अभी रास्ते से ही माले राजधानी को जा सकते हैं । दूसरे दिन सुबह हम माले गाऐ थे। वहाँ की स्थानीय पर्यटकस्थल देखने के बाद, दोपहर हवाई अड्डे पर पहुंच गए थे। वहाँ से, फिर हम सभी बेंगलरु वापिस लौट आये थे। इस तरह , कथा के नायक का विदेश जाने का सपना पूरा हुआ था। 



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