Arun Gode

Inspirational

4  

Arun Gode

Inspirational

साहित्य यात्रा.

साहित्य यात्रा.

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        एक छोटेशे शहर में,एक साधारणसा दिखनेवाला लड़का प्राथमिक कक्षा में पढ़ा करता था। वह अन्य अच्छी पढ़ाई करनेवाले छात्रों की तरह रोज स्कूल जाया करता था। उसकी उपस्थिती स्कूल में सौ प्रतिशत रहती थी। लेकिन वह खेल खेलने का बड़ा शौकीन था। उसका स्कूल के बाद ज़्यादातर समय खेल –कूद में ही बितताता । उसके पास घर में पढ़ने या गृह कार्य करने के लिए समय नहीं बचताता था। वह ज्यादा तर गृहकार्य उसी दिन या दूसरे दिन स्कूल में ही कर लिया करता था । कभी-कभी वह असफल भी होता था। तभी उसे अन्य छात्रों के साथ उसके शिक्षक सजा भी देते थे। लेकिन उस में कोई खास परिवर्तन नहीं होता था। वह जो कुछ भी कक्षा में पढ़ायां जाता था। उसेही स्मरण में रख लेता था। कक्षा में जब कोई पाठ शिक्षक सभी बच्चों से पढ़वायां करते थे । तभी उसे ध्यान देकर सुनकर उसका स्मरण कर लेता था। वह अन्य छात्रों की तरह अलग से कोई घर में पढ़ाई नहीं करता था। फिर उसका नंबर पहिले दो –तीन छात्रो में ही रहता था। घरवाले भी उसके तरफ विशेष ध्यान सबसे छोटा होनेसे नहीं दिया कराते थे। यही सिलसिला उसका पढ़ाई के समय निरंतर चलता रहा था।  

      एक बार जब वह चौथी कक्षा में था । तभी किसी कारण वश वह कुछ दिनों के लिए पाठशाला जा नहीं सका था। जब वह स्कूल गया था। तब उसने शिक्षक ने क्या पढ़ा यां इसके तरफ ध्यान हमेशा की तरह नहीं दिया था। उस दौरान शिक्षकने छात्रों को परीक्षा के दृष्टि से दो-चार निबंध लिखावाऐं थे। इन सब बातों से वह अनजान था। जब अर्ध वार्षिक परीक्षा हुई थी । तभी पेपर में अन्य सवालों के अलावा निबंध लिखने को आया था। उस में दिवाली त्योहार के ऊपर भी निबंध लिखने को आया था। अन्य विषय भी थे। अभी –अभी कुछ ही दिनों पहिले दिवाली का उत्सव संपन्न हुआ था। उसने सोचा की दिवाली पर निबंध लिखना आसान होगा !। उसने दिवाली त्योहार के दौरान जो –जो बातें की थी। उसेही अपनी शैली में लिख डाला था। वह हमेशा सभी सवालों के जवाब अपनी भाषा में लिखने का आदी था। वह कभी भी शिक्षको ने लिखवाया उत्तर रटकर नहीं लिखता था। इस कारण उसके शिक्षक अन्य छात्रों के रटे –रटाऐं , एक जैसे जवाब से ऊब जाते थे। लेकिन वह संबंधीत प्रश्न का उचित उत्तर अपनी शैली में लिखने से शिक्षक उसे अन्य छात्रों अधिक मार्क्स दिया करते थे। जब सभी की कॉपियां जांचने के बाद उन्हे बच्चों को देने लाऐ थे । तभी शिक्षक ने उस छात्र को अपने पास बुलाकर उसकी उत्तर- उसे दी और उस निबंध कक्षा में ज़ोर से पढ़ने को कहा था। सभी बच्चोने शिक्षक द्वारा लिखवायां निबंध रटकर, उसे जैसे का वैसा लिखा था। लेकिन उस छात्र ने जो दिवाली उत्सव में खुद और अन्य मित्रों ने किया था, उसका आंखों देखा हाल बड़े मजे के साथ अपनी शैली में लिखा था। जो निबंध अपेक्षित था । वह उस निबंध कुछ भी नहीं था। इसलिए शिक्षक के साथ अन्य छात्र भी ज़ोर –ज़ोर से हसने लगे थे। निबंध पूरा पढ़ने पर,, उन्होने उससे कान पकड़ कर पूछा था कि उन्होने ऐसा निबंध लिखवायां था क्या ?। उसके पास कोई उचित जवाब न होने से वह चुप-चाप शर्मिंदा होकर खड़ा था। लेकिन शिक्षक ने उन सबके सामने उसकी इस बात के लिए पीठ थपथपाई थी क्योकि उसमें अपनी शैली में कुछ लिखने की क्षमता थी॰ बाद में वह उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिए दुसरे नामी स्कूल गया था। 

         अभी धीरे-धीरे उसे मजबूरन स्पर्धा के कारण पढ़ाई में ध्यान देना पड़ रहा था। उसका खेलना का उल्लडपण कुछ नियंत्रित हो रहा था। अभी वह नौवीं कक्षा में पढ़ रहा था । उसके मातृभाषा के शिक्षक कुछही माह बाद सेवानिवृत्त होनेवाले थे। तभी उसकी अर्धवार्षिक परीक्षा दिवाली के बाद संपन्न हुई थी । सभी छात्र कॉफी रोमांचित और साथ में भयभीत थे क्योंकि अभी सभी की परीक्षाकी उत्तर पत्रिकऐं  मिलने वाली थी। सबसे पहिले मातृभाषा के शिक्षक छुट्टीयों के बाद कक्षा में आए थे। उनके पास कक्षा की उत्तर पत्रिकाऐं थी । औपचारिकता पूर्ण होनेपर उन्होने परिणाम के संबंध में बात करना शुरू किया था। छात्रों का हौवसला पढाने के लिए उन्होने सभी को अच्छे अंको से पास होनेके लिए बधाई दी थी। फिर उन्होने विषय में अव्वल रहने वाले छात्रों को बधाई दी थी। लेकिन उन्होने एक विवादास्पद वाक्य बोला था। जो विषय में अव्वल हैं । वास्तविक वह अव्वल नहीं हैं । यह सुनकर सभी छात्र अचिबित हो गऐ थे । तभी उन्होने उस छात्र के बारेमें कहां की उसने सबसे अच्छा निबंध लिखा हैं। फिर उसे, उन्होने, उस निबंध को शून गुण दीऐ हैं क्योंकि उसने निबंध में नियमानुसार कुछ परिछेद नहीं बनाऐ थे। वह फिर से कभी भी निबंध लिखते समय, अनुछेद बनाने की गलती दुबारा ना करे !। अन्य था वही कक्षा में अव्वल हैं ।

       भविष्य में उसे एक विज्ञान विभाग में वैज्ञानिक के पद पर नौकरी लगी थी। वहाँ भी केंद्र सरकार के आदेशा नुसार, वैज्ञानिक कार्य ज्यादा से जादा हिन्दी में करना था। विभाग में अनेक हिन्दी के कार्यक्रम ,स्पर्धाऐं और विभागीय संगोष्ठियाँ आयोजित हुआ कराती थी। उसमें वह भाग लिया करता था। उसने कार्यालय के मासिक के लिए अनेक वैज्ञानिक लेख भी लिखे थे। उसने कई कविताऐं राष्ट्रीय कार्यक्रमो के लिए लिखी थी। उसके अंदार जो साहित्य की चिंगारी थी । उसे सही वातावरण मिलने के कारण बढ़ावा मिला था। उसके कई लेख और कविताऐं कार्यालीन और अन्य मासिकों में छपी थी। वह अकसर सेवानिवृत होनेवाले कर्मचारीयों पर उनके सेवानिवृती के कार्यक्रम में उनको समर्पित पंक्तियाँ बोला करता था। उसे के सेवा निवृति के बाद, उसके पास एक बड़ा संकलन था। उस संकलन को सही धार देकर , सेवानिवृति के बाद अपना काव्य संग्रह प्रकाशित किया था। ऐसी उसकी साहित्य यात्रा रही थी।



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