Arun Gode

Abstract

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Arun Gode

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डरपोक सोच।

डरपोक सोच।

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एक कसबे में, एक दर्जी अपने परिवार के साथ रहता था। उसका वह पुरखोंवाला पेशा था। कई पीढ़ियों से, वह परिवार वहाँ वास्तव्य कर रहा था। उस परिवार का, उस मिट्टीसे मानों खून रिश्ता हो। वह परिवार कभी भी,उस मिट्टीसे दूर होने का साहस नहीं कर सकता था। उस परिवार की एक विशेषता थी कि कूदरतने परिवार को बहूँत ही सुरेली आवाज दी थी। उस परिवार के सदस्यों का पूजा –पाठ और भजन –किर्तन,आरती और भगवान के गीत गाने में दिलचस्पी थी। गाँव और परिवार में, कोई भी धार्मिक पर्व होने पर,परिवार के सदस्य अपने कला का प्रदर्शन किएं बिना नहीं रहते थे। इसलिए परिवार की गाँव में प्रतिष्ठा थी। परिवार का मुखियां, एक मात्र दर्जी उस कसबे में था। इसलिए परिवार की पहचान गाँव के सभी गाँव वासीयों थी। मुखियाँ, जैसे –तैसे अपनी परिवार को चला रहा था। उसे पहिले तीन कन्यारत्न हूँएं थी। पोते के चाहत में परिवार रफ्तार पकड़ रहा था। लेकिन विधाताने, इसबार उनकी प्रार्थना सुन ली थी।

उसे एक पुत्ररत्न प्राप्त हूँआं था। संपूर्ण परिवार बहुत खुश था। दादा-दादी पोते को हद से ज्याद प्यार कराते थे। पोता धीरे –धीरे बड़ा होने लगा था। वह स्कूल जाने लगा था। लेकिन पढ़ाई में, वह साधारण विद्यार्थी था। लेकिन परिवार वाले कि सोच थी की वह भी अपना पुश्तेनी व्यवसाय कर लेगा। इसलिए परिवार के सदस्य ज्यादा चिंतित नाही थे। वैसे ही वह परिवार कायर था। उस कारण, उसका प्रभाव उस बालक पर भी बच्चपन से हूँआं था। लेकिन नियाती को कुछ और ही मंजूर था।  

लड़केने शालान्त परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। लड़के को उच्च शिक्षा देने के स्थिति में, ना वो परिवार था, ना वह लड़का खुद चाहता था। उसने बगल के जिले में, ड्राफ्ट्समैन का अभ्यासक्रम करने का मन बना लिया था क्योंकि वह रेखा चित्र में कक्षा में अव्वल रहता था। वह अपने अंदर छुपे, कला का सही उपयोग करना चाहता था। उसने अच्छे अंक से, ड्राफ्ट्समैन प्रमाण पत्र अभ्यासक्रम पूरा कर लिया था। वहाँ उसकी दोस्ती कई मित्रों से हो चुकी थी। उनक बिचे में संपर्क बना था। जब एक सरकारी दफ्तर में, ड्राफ्ट्समैन की खाली जगह निकली थी। उसकी सूचना उसके, एक मित्र ने उसे दी थी। उसने भी उतने ही स्फुर्तीसे आवेदान किया था। जब वह अपने मित्रों के साथ, साक्षात्कार के लिए गया था। तब किस्मतने उनका साथ दिया था। जितनी रिक्तता, उस विभाग में थी। उससे कम ही साक्षात्कार देने वाले वहाँ पहुंचे थे। इसलिए सभी का नाम मात्र परिचय लेकर, उन्हे नियुक्त कर दिया गया था। लेकिन उनकी तैनाती देश के, अलग –अलग सूबे में हो गई थी। उसकी किस्मत कॉफी बुलंद थी। उसकी तैनाती, उसके ही सूबे में घर से कॉफी दूर हूँई थी। फिर भी परिवार के सदस्य, उसे जाने देने के लिए तैयार नहीं थे। पिता को आगे का भविष्य दिख रहा था। स्थानीय व्यवसाय में, गाँव में ही कॉफी स्पर्धक हो गएं थे। गाँव के लोग, अभी  तैयार कपड़े शहर से लाने लगे थे। उसे अपने तीन लड़कीयों के हात भी पिले करने थे। बड़ी हिम्मत दिखाकर, पिताने उसे जाने की अनुमती दी थी। वह उस विभाग में नौकरी करने लगा था। 

परिवार में सभी की शादियाँ हो चुकी थी। उसकी पत्नी भी परिवार में, जैसे धार्मिक,पूजा –पाठ और भजन कीर्तनवाले थे। वैसी वह भी थी। उसकी भी आवाज एकदम सुरेली थी। लेकिन वह भी परिवार जैसी डरपोक थी। कई साल तक उन्हे बच्चा नहीं हूंआ था।

दंपति पूजा –पाठ में ही लगा रहा था। दंपति का धारणा थी कि एक दिन ईश्र्वर, उनकी झोली संतान से भर देगा !। दोनों शर्म और डर के मारे अपना इलाज नहीं कर रहे थे। कुछ साहसी मित्रों के सलाह से,उन्होने अपनी चिकित्सा जांच की थी।फिर विज्ञान ने उनकी झोली टेस्ट ट्यूब बेबी द्वारा भर दी गई थी। वंश का दीपक आने से परिवार के सभी सदस्य बेहद खुश थे। देर आएं, दूरस्त आएं. लड़का धीरे-धीर बड़ा होने लगा था। बचपन से बच्चा तेज लग रहा था। लेकिन घर का माहोल डर का था। एक तप बाद, घर में संतती आई थी। उतनाही उसे बचा –बचा कर बड़ा कर रहे थे। उसे बचपन से घबराहट का माहोल मिला था। वह इसलिए मां-बाप की तरह अंदर से डरा –डरा सा रहने लगा था। इसलिए उस में जोखीम भरे कार्य करने की कला विकसित नहीं हो पाई थी। फिर भी उसने जब होश संभाला था। वह अन्य बच्चों की तरह ढलने का प्रयास कर रहा था। वह जितना पढ़ाई में तेज था, उतना ही संगीत के वाद्द बजाने में पारंगत था। अपने स्कूल और मौहल्ले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में तबला और पेटी कमाल का बजाता था। लड़का पढ़ाई में तेज होने के कारण इंजिनीअर का अभ्यासा क्रम में चला गया था। उधर विभाग में ड्राफ्ट्समैन के लिए कुछ वैज्ञानिक शाखा / तांत्रीक शाखा में विभागीय प्रशिक्षण का अभ्याक्रम उत्तीर्ण करने पर पदोन्नती देने का प्रावधान था। उसे के पिता को शुरू से इन वैज्ञानिक शाखा / तांत्रीक अनुभाग के कार्य से घृणा थी। इस कारण, उसने कई अवसरों के बाद, जैसे –तैसे प्रणिक्षण उत्तीर्ण कर लिया था। तभी उसे वरिष्ठता के कारण पदोन्नती मिल रही थी। लेकिन वह अपने अकार्यक्षमता के कारण, दूसरे स्थानों पर नहीं जा सकता करके,पदोन्नोती को टालते रहा था। एक अवसर ऐसा आया जब उसकी पदोन्नती पर बहूँत नजदीक तैनाती हूँई थी। सहकर्मियों ने उसका हौसला बढ़ायां था। बड़े मुशकील के बाद, वह जाने को तैयार हूँआ था। वह आनन-फानन में वहाँ चला गया था। कुछ दिन बाद, उसे लगाने लगा की वह कार्य नहीं कर सकेगां !। यह सोचकर,वह वही अपने पुराने स्थान पर छुट्टी पर आ गया था।

उसने पदावनति के लिए आवेदन दिया था। लेकिन उसका आवेदन पर कार्रवाई करने का अधिकार, उस अधिकारी को नहीं था। इसलिए उसका आवेदन मुख्यालय के सक्षम अधिकारी को भेजा गया था। लेकिन मुख्यालय उस को पदावनति देना नहीं चाहती थी। इस दौरान उसकी छुट्टीयां कॉफी बर्बाद हो चुकी थी। कॉफी प्रयासों के बाद पदावनति निरस्त हूँई थी। फिर से वह उसी पद पर पदस्थ हूँथा। लेकिन उसकी बात –बात पर, सहकर्मी मज़ाक उड़ाते थे। वह बात उसके दिल को छू जाती थी। 

 उधर लड़का सॉफ्ट-वेयर इंजीनीयर बन चुका था। उसे गलती से उसी शहर में तुरंत कम वेतन पर किसी कंपानी में जॉब मिला था। मां –बाप बहूँत खुश थे। लेकिन लड़का खुश नहीं था। वह अपने जीवन में कुछ करना चाहता था। लेकिन मां –बाप के जिद के आगे, वह जॉब करने लगा था। उसी दौरान विश्र्व में माहामारी का प्रकोव हर जगह कहर मचा रहा था। देश में लॉक डाऊन था। देश का अर्थ चक्र बंद हो गया था। लेकिन परिवार वाले खुश थे की उनका बेटा उनके पास हैं। वह परिवार इतना महामारी से भायभित था की उन्होने खुद को लंबे समय के लिए एकांत वास में बंद कर लिया था। एक वाहन चालक, उनके पड़ोस में रहता था। उसका मालिक पोझिटिव्ह निकाला था। इसलिए सरकारी गाड़ी उसे जांच के लिए ले गई थी। जांच के बाद उसे एकांत में रहने का कहा था। वह अपने घर और घर छत पर टहलता था। उस परिवारने वह क्यों टहलता हैं। इसलिए पहिले मौहल्लेवालो को दबाव डालने को कहाँ था। जब मौहल्ले वालों ने उसका साथ नहीं दिया था, तब उन्होने पोलिस कम्प्लेंट की थी। उस दौरान, जब स्थिति सामान्य होने पर भी, वह पतिवार अलग –अलग रहने लगा था। लड़का किसी अन्य स्थान पर चला गया था। लेकिन मां –बाप के दवाब के कारण, वह उस हालात को झेल नहीं पाया था। इसलिए नाराज होकर लौट आया था। उधर कार्यालय ने उसके पिता को सेवानिवृति के पहिले, उसी जगह पदोन्नती थी। अभी उसकी मजबूरी थी की वह पदोन्नती को स्वीकार करे, अन्यथा उसका उसी पद पर स्थानांनतर होना पक्का था। इसी डर से,उसने पदोन्नोती ले ली थी। और उसी डर के माहोल में सेवा निवृत हो चुका था। उसका लड़का उस शहर में कम वेतन पर, मां-पिता के साथ ,उसी शहर में किसी कंपनी में कार्यरत था। वह अपने प्रतिभा का दूर उपयोग कर रहा था। दिल को समझाने के लिए तबला और संगीत पेटी बजाते रहता रहता था।  


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