ताना बाना
ताना बाना
वह अपने टीन एज में कॉलेज के दिनों में कभी उसे पसंद करती थी लेकिन बस अपने मन मे ही...
बाद में पता चला कि वह तो किसी और को लाइक करता है....
वह इंतज़ार करती रही...
यह चाँद और सूरज कभी किसी का कहना मानते है भला? वे तो रोज बिना नागा किये निकल लेते है दूर आसमाँ में। फिर क्या? जिंदगी कही रुकती है भला? वह तो बस चलती रहती है।
बरसों बाद किसी फंक्शन में उसका सामना हुआ। वह उसे अचरज से देखती रही। उसने हँसते हुए कहा, "पहचाना मुझे? तुम कहाँ हो आजकल? क्या करती हो ?" सारे सवाल एक साथ? वह फिर उसी हँसी के साथ आगे बढ़ते हुए कहने लगा, "चलो, वहाँ बैठकर बातें करते है। " वह आज भी मुझे किसी चुम्बक की तरह ही लगा। एकदम मेसमरायज़िंग....हम दोनों वहाँ गये और ढेर सी बातें करते रहे। थोड़ी देर में पति ढूँढते हुए आये। हम दोनों को बातें करते हुए देखकर कहने लगे, "मैं तुम्हे वहाँ ढूँढता रहा और तुम यहाँ बैठी हो? "मैंने हँसते हुए उन दोनों को परिचय कराया। फिर क्या? वे दोनों बातों में मशगूल हो गये। न जाने क्यों मेरी नज़रें उन दोनों को कंपेयर करने लगी। शायद मेरा दिल भी....अचानक पति कहने लगे, "अरे भई, कभी इन्हें घर मे भी बुलाओ। अच्छे से मिलेंगे, साथ खाना खाएँगे।" उन दोनो की हँसी ने इसका जवाब भी दे दिया...
कल शाम को मिलने का वादा करके हमने एड्रेस और फोन नंबर एक्सचेंज किये और फिर रुख़सत हो गये। मैंने आज घर को सँवारने में कोई कोताही नही की। मैंने घर को खूब सजाया। बड़ी मेहनत से उसकी आवभगत की सारी तैयारियाँ की।
मैं उसे बेहद खुश हूँ दिखाना चाहती थी। लेकिन क्यों?
मैं ऐसा क्यों कर रही थी?मुझे यह सब करने की ज़रूरत क्यों हो रही थी ? क्यों ? ?
क्या मैं अब भी उसे प्यार करती थी ?
शायद हाँ... शायद नहीं....