chandraprabha kumar

Action Inspirational

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chandraprabha kumar

Action Inspirational

सम्बल बनो

सम्बल बनो

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‘डूबने वाले के प्रति सहानुभूति का मतलब उसके साथ डूब जाना नहीं है, बल्कि खुद तैरते हुए उसे बचाने की कोशिश करना है।’

 यह सन्त वचन सुमिता को बड़ा प्रेरणादायक लगा, वह ठगी सी रह गई। कितना सच लिखा है। उसकी बेटी नमिता की शादी ऐसी जगह होने पर जहाँ काम में सहायता देने को कोई सहायक या नौकर नहीं है, कोई आराम नहीं है ,अपमान ही अपमान है, सुमिता को बड़ा दुःख हुआ था। इस दुःख के कारण अपने यहाँ से भी सब सहायक व नौकर हटा देने की उसने सोच ली । पर जब कार्यान्वित किया तो ध्यान आया कि क्या ऐसा चल सकेगा। ख़ुद बर्तन, चौका , झाड़ू नहीं कर सकती। ख़ुद खाना नहीं बना सकती क्योंकि ऑफ़िस आना- जाना रहता है ।ऊपर से उसके पति अपना अलग से टाइम रखते हैं। उनकी चाय , नाश्ता, शाम की चाय ,रात का खाना सब अलग है। फिर अतिथि भी आते रहते हैं। हर बार की चाय के लिए बार बार उठना पड़ता है ।ज़रा से काम के लिए परेशान हो जाना पड़ता है ।उस पर छुट्टी में यदि नमिता यहाँ आएगी या उसका पति , तो उनका काम करने वाला कोई नहीं होगा।छोटी बेटी सुजाता अकेली पड़ जाएगी , उस पर भी भार पड़ जायेगा। 

सुमिता ने सोचा-“मुझे अपने पास सब सुख सुविधा रखनी पड़ेगी जिससे नमिता को सुख पहुँचा सकूं , वह यहाँ आने पर चिंता मुक्त रह सके ,आराम महसूस कर सके, और उसके पास भी मैं कोई नौकर सहायता के लिए भेज सकूँ। अपना रहन- सहन का स्तर भी अच्छा रखना पड़ेगा ,जिससे नमिता का सिर ऊँचा रह सके ।उसका पति भी यहाँ आए तो यहाँ का अच्छा स्तर और सुव्यवस्था देखे।”

“जैसे अपने पीहर जाने पर मुझे आराम महसूस होता है ,मेरी बेटी को भी मेरे पास आकर विश्राम मिलना चाहिये। पीहर में लड़की आराम महसूस करेगी तो ससुराल में नई स्फूर्ति लेकर पहुँचेगी। यदि बारिश हो रही है तो इसका यह मतलब नहीं कि और भीग जायें। उससे बचा जा सकता है छाता लगाकर। यदि अँधेरा हो रहा है तो यह मतलब नहीं कि डूब जाएं, पर उसमें दीपक जलाया जा सकता है। यदि ग्रह बुरे हैं तो यह मतलब नहीं कि रोया जाए। उनका उपचार भी किया जा सकता है। यदि तलवार का वार हो रहा है तो यह नहीं कि सिर झुका दिया जाए ।दूसरी तलवार से काटा भी जा सकता है। सुख दुख तो आते रहते हैं, पर उन्हें गुज़रने दिया जाए ,बिना उनमें आसक्त हुए। मन में क्षोभ नहीं होना चाहिये। हँसते हँसते दिन गुज़ार देना चाहिए।”

 दिन के बाद रात, प्रकाश के बाद अंधेरा होता है ।पर वही बस नहीं है। चक्कर तो घूमता ही रहता है फिर अँधेरे से प्रकाश होता है ,रात के बाद दिन होता है। यह तो झूलने वाला वाला चक्कर है ,ऊँचे भी चढ़ोगे ,नीचे भी उतरोगे। पर अपने मन का संतुलन क्यों ख़त्म करते हो।

  सुमिता का विचार प्रवाह चलता रहा-“ दूर रहकर भी बच्चों को सुख पहुँचा सकते है। प्यारी मीठी स्मृति उनका मन ताजा रखेगी। कहीं ग़लत क़दम उठने पर पर हमारी याद उनको सहारा देगी और वे सही रास्ते चलेंगे। कोई व्यक्ति किसी की बर्बादी यह आबादी का कारण नहीं बनता ।व्यक्ति का चला जाना घर को बरबाद नहीं करता ।उसकी ख़ुशबू की मीठी गन्ध बरसों सहारा देती है।”

सुमिता की मॉं, बहिन और भाई उसके आदर्श हैं । आज भी व्यथित होने पर उनसे सहारा मिलता है। मन मुरझाने पर उन्हें याद कर मन हरा हो जाता है। जब क़दम डगमगाते हैं ,उनका ध्यान कर सँभल जाती है। वे उसके जीवन की धूप हैं। अपने अंधेरों का मुँह उधर कर वह उजालों से अपने को भर लेती है। बराबर वे उसकी शक्ति का स्रोत हैं। जब ज़िंदगी के संघर्ष में वह हारने लगती है ,तो उनके आदर्श ,उनका जीवन उसका संबल बनते हैं।

निश्चय ही ,हम में से हर एक ने जैसा जीवन जिया है ,अपने उस निजी अनुभव की पृष्ठभूमि में वर्तमान को देखते हैं।

समय को बाँधो मत ,पकड़ो मत ,अपनी स्वाभाविक धारा में बहने दो। सुबह ही सुबह अपनी बुद्धि को भगवद्गीता में स्नान कराओ ,तब कार्य करो । सरस्वती का आह्वान करते हो ,वह थकी हारी आती हैं, उनको भगवन्नाम में स्नान कराओ। श्रम दूर हो जाता है ,तब लेखनी उठाओ। 

  आज सुबह डॉक्टर भट्टाचार्य से मिले ।उनका नाम रोगी चेहरों पर स्वास्थ्य का विश्वास ला देता है। लगता है कि अपने यश की सीमा से डॉक्टर भट्टाचार्य स्वयं अनभिज्ञ हैं। उनको भगवान् ने यश का वरदान दिया है। जो छूते हैं ,सोना हो जाता है। जिधर देखते हैं दुआ उठती है। अपनी इस महिमा से वे स्वयं स्तंभित चकित लगे। अपार धन ने उनकी श्रीवृद्धि की है। सब जगह एक संस्था की तरह वह हैं। काफ़ी व्यक्तियों को रोज़गार दे रहे हैं और काफ़ी आदर पा रहे हैं। लगता है कि उसको संभालने के लिए उन्होंने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए हैं। वीतराग संन्यासी के वस्त्र । अपार सफलता ने उनको और विनम्र बना दिया है।

 हम पड़ौसी लोगों से मिलकर डॉक्टर भट्टाचार्य बोले-“ आइए ,बैठिए ,आप लोगों से मिलकर बाक़ी का दिन आनंद से बीतेगा।”

सचमुच कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो जहाँ बैठते हैं ,प्रसन्नता फैलाते हैं ।अपने भी ख़ुश रहते हैं ,औरों को भी ख़ुशी से भरते हैं।

बेटी के दुःख से दुखी सुमिता इसी तरह सोचकर अपना दुःख मिटाने की कोशिश करती। अब उसे यही राह दिखाई देती कि बेटी को आर्थिक रूप से सशक्त बनाये। उसे यदि पहले स्वावलम्बी नहीं बना सकी तो अब सम्बल देकर सशक्त बनाये, जिससे वह अपनी ज़िम्मेदारी खुद उठा सके। जब जागो तभी सवेरा। शक्ति आने पर व्यक्ति अपनी समस्या सुलझाने में समर्थ हो जाता है। 


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