chandraprabha kumar

Abstract

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chandraprabha kumar

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एक शाम पेरिस की

एक शाम पेरिस की

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 ज़माना गुजर गया, जब हम पेरिस घूमने गये थे, और उसके संस्मरण लिख डाले थे। हम वरसाईल का पैलेस देखकर आये थे। आते आते शाम के चार बज गये। मन था कि उसके बाद और घूमेंगे। चाहे आर्ट गैलरी देखेंगे, चाहे सेंट जरमेन डी प्रिज़ जायेंगे या फिर लक्ज़मबर्ग गार्डन घूमेंगे। लेकिन ये कहने लगे कि-“ थक गया हूँ, कहीं नहीं जाऊँगा।” आख़िर में हम सां लज़ा के स्टेशन पर उतरे। वहॉं से बस लेकर शांसा लीजे पर उतरे और पैदल ही कॉनकॉर्ड की तरफ़ चले। 

रास्ते में वृक्षों की छाया तले बेंच रखी देखकर मन प्रसन्न हो गया। पूरे रास्ते में बेंच रखी हुई थी। बीच बीच में फौवारे थे, गार्डन थे। थोड़ी देर पार्क में बैठे, जहॉं बच्चे खेल रहे थे। प्रेमी जोड़े दुनिया से बेख़बर आपस में लीन चुम्बन रत थे। प्रौढ़, वृद्ध बैठे धूप सेक रहे थे, या तो इधर - उधर देख रहे थे या अख़बार पढ़ रहे थे। 

हमसे दूर एक गोरा और सॉंवला जोड़ा आकर बैठ गया। गोरा चेहरा पुरुष का था ,साँवला तरुणी का। कुछ देर वे बैठे रहे फिर गोरे ने अपना चेहरा सॉंवली के कटे बालों में छिपा लिया और मादक स्पर्श उसकी खुली गर्दन व बालों, चेहरे, गाल के पास देने लगा। उधर बेंच पर बैठे युगल में तरुणी पुरुष के चेहरे पर झुक आई। पुरुष ने भी तरुणी को बेंच के सहारे अधलेटा कर दिया, खुद उस पर झुक अधरपान करने लगा। तरुणी की स्कर्ट थोड़ा और ऊपर उठ गई और पुरुष हाथ उसकी गोरी त्वचा को सहलाता रहा। इन सबसे बेख़बर दूर सड़क पर हाथ में हाथ डाले युगल तेज़ी से चले जा रहे थे। कुछ दिन भर काम से थककर घर लौटते पुरुष थे। कुछ ऊँची एड़ियॉं और इठलाती तेज चाल से जाती नारियॉं थीं। 

 पेरिस जीवन का एक दृश्य हमारी आँखों के आगे उभर रहा था। हम लोग सघन वृक्षों की छाया तले रखी बेंचों पर उठते बैठते आगे बढ़ते जा रहे थे। धीरे धीरे बादल घिरे, सॉंझ का झुटपुटा घिरता सा लगा। टप टप कुछ बूँदें बरसीं। हमने छाते खोले । पर शीघ्र ही बूंदों का टपकना बंद हो गया ।आकाश खुल गया। बादल छँट गए। हमने अपने छाते बंद किये। फिर दिन की रोशनी फैल गई। सूर्यास्त यहॉं साढ़े नौ - दस बजे रात तक होता है। हम आगे चलकर कॉनकॉर्ड पहुंचे। 

  वहॉं फौवारे और उसकी मूर्तियों ने मन मोह लिया। गोल घेरे में फौवारे हैं ।हाथ में मकराकृति या मीनाकृति छड़ें लिये नारी मूर्तियाँ हैं,उनसे जल निकलकर ऊपर छत्रनुमा सिंहासन पर बैठे पुरुष व नारी मूर्तियों का अभिषेक सा कर रहा है। ऊपर भी जल धारा बह रही है। इधर उधर फुहारें उड़ रही हैं। आस पास की ज़मीन गीली हो रही है जो मन को शीतलता का आभास देती है।

  उससे आगे बढ़कर ट्यूलरीज़ गार्डन्स गये। वहॉं सुन्दर बगीचा है। चारों तरफ़ पेरिस का शिल्प सजा है। गोल तालाब सा है। बीच में फ़ौवारा है। सुन्दर फूल हैं। सब कुछ आह्लादक है। कुछ देर वहीं बेंच पर बैठे। फिर आगे बढ़े। आगे ही आर्क द त्रियॉम्फ द लेत्वाल है, जो फ्रॉंस के सबसे प्रसिद्ध स्मारकों में से एक है। यहॉं कॉनकॉर्ड के पास खड़े होकर यह अनुभव हुआ कि पेरिस कितना सुन्दर है। कितनी सुन्दर प्लानिंग है। यहॉं से शॉंज़ एलिजे़ का मार्ग सीधा चला गया है। दूसरी और ट्यूलरीज़ से आगे आर्क द ट्रौम्फ़ द लेत्वाल के बाद लूव्र म्यूज़ियम है और वहीं रॉयल पैलेस है और उसके गार्डन्स और शॉप सब एक ही सीध में। एक जगह खड़े होकर सब कुछ देख लो। 

  पेरिस के वृक्षों की झरमुटदार लाईन बहुत सुन्दर है। यह सब यहॉं के आर्किटेक्ट की प्लानिंग है। पेरिस की यह शाम यादगार पलों में से एक है। 


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