chandraprabha kumar

Action Inspirational

3  

chandraprabha kumar

Action Inspirational

श्रीराम का अयोध्या आगमन

श्रीराम का अयोध्या आगमन

3 mins
17


  

    अयोध्या आगमन के समय श्री रामजी ने भरद्वाज आश्रम पर उतरने से पहले पुष्पक विमान से ही अयोध्यापुरी का दर्शन करके हनुमान जी द्वारा भरतजी को अपने आने की सूचना भिजवाई। और हनुमानजी से कहा-“ तुम भरत के पास जाकर उनका कुशल समाचार पूछना। और उन्हें सीता एवं लक्ष्मण सहित मेरे सफल मनोरथ होकर लौटने का समाचार बताना। भरत के विचार और निश्चय को जानकर शीघ्र लौट आओ। ”

    इस प्रकार आदेश पाकर पवनपुत्र मनुष्य रूप धारण करके अयोध्या की ओर तीव्र वेग से उड़ चले। उन्होंने अयोध्या से एक कोस की दूरी पर आश्रमवासी भरत जी को देखा, जो चीर वस्त्र और काला मृगचर्म धारण किए दुखी एवं दुर्बल दिखाई देते थे।

     हनुमानजी के मधुर वाक्यों द्वारा सारी बातें सुनकर भरतजी बड़े प्रसन्न हुए और हाथ जोड़कर बोले-“ आज चिरकाल के बाद मेरा मनोरथ पूर्ण हुआ। ” परमानन्दमय समाचार सुनकर भरत जी ने शत्रुघ्नजी से अयोध्या से नन्दिग्राम तक का मार्ग श्री रामजी की अगवानी हेतु लावा और फूलों से सजवाने के लिए कहा।  

  धर्मात्मा एवं धर्मज्ञ भरतजी अपने बड़े भाई की चरण पादुकाओं को सिर पर धारण कर शंखों एवं भेरियों की गंभीर ध्वनि के साथ चले। राजा दशरथ की सभी रानियों कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी सहित सब की सब नन्दिग्राम आ पहुँचीं।  अयोध्यानगरी के सभी नागरिक नन्दिग्राम आ गये।  

   श्रीराम का वाहन बना वह पुष्पक विमान प्रातःकालीन सूर्य की भाँति प्रकाशित हो रहा था। उसे देखते ही सभी पुरवासियों के मुख से यह वाणी फूट पड़ी है-“ अहो ! ये श्रीरामचंद्र आ रहे हैं। ” भरतजी का शरीर हर्ष से से पुलकित था। उन्होंने दूर से ही अर्घ्य- पादादि के द्वारा श्रीराम का विधिवत् पूजन किया। विनीत भाव से उन्हें प्रणाम किया। श्रीराम की आज्ञा पाकर वह महान् वेगशाली हंसयुक्त विमान पृथ्वी पर उतर आया। श्रीरामने बड़े हर्ष से भरत जी का अपने हृदय से लगाया।  

    माता कौसल्या शोक के कारण अत्यंत दुर्बल और कांतिहीन हो गई थीं। उनके पास पहुंचकर श्रीराम ने प्रणत हो उनके दोनों पैर पकड़ लिये। फिर उन्होंने संपूर्ण माताओं का अभिवादन किया। और राजपुरोहित वशिष्ठजी के पास आये। श्रीराम की आज्ञा से प्रेरित हो दिव्य पुष्पक विमान वेगपूर्वक कुबेर की सेवा में चला गया।  

  तदनन्तर धर्मज्ञ भरत ने स्वयं ही श्रीराम की वे चरण पादुकायें लेकर उन महाराज के चरणों में पहना दीं।  और उनसे कहा-“ प्रभो ! मेरे पास धरोहर के रूप में रखा हुआ यह सारा राज्य आज मैंने आपके श्री चरणों में लौटा दिया। आज मेरा जन्म सफल हो गया। मेरा मनोरथ पूरा हुआ, जो अयोध्या नरेश आप श्रीराम को पुनः अयोध्या में लौटा हुआ देख रहा हूँ। आपने मेरी माता का सम्मान किया और यह राज्य मुझे दे दिया। जैसे आपने मुझे दिया, उसी तरह मैं फिर आपको वापिस दे रहा हूँ। आप राज्य का ख़ज़ाना, सेना सब देख लें। आपके प्रताप से ये सारी वस्तुएँ पहले से दसगुनी हो गयी हैं। अब हमारी इच्छा है कि जगत के सब लोग आपका राज्याभिषेक देखें । जब तक नक्षत्रमंडल घूमता है और जब तक यह पृथ्वी स्थित है तब तक आप इस संसार के स्वामी बने रहें। ” 

  भरत की यह बात सुनकर भगवान् श्रीराम ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे मान लिया। फिर सब भाइयों व सखाओं ने स्नान किया। तदनन्तर जटा का शोधन करके श्रीराम ने स्नान किया । बहुमूल्य पीतांबर धारण कर आभूषणों की शोभा से प्रकाशित होते हुए वे सिंहासन पर विराजमान हुए। सीता जी का मनोहर श्रृंगार हुआ।

  सुमन्त्रजी सर्वागसुन्दर रथ जोतकर ले आये । उस दिव्य रथ पर महाबाहु श्रीराम सीताजी सहित आरूढ़ होकर राज्याभिषेक हेतु अपने उत्तम नगर की ओर चले। उस समय भरतजी ने सारथि बनकर घोड़ों की बागडोर अपने हाथ में ले रक्खी थी और लक्ष्मण उस समय श्रीरामजी के मस्तक पर चँवर डुला रहे थे। उस समय आकाश में खड़े हुए ऋषियों सहित देवताओं के समुदाय श्रीरामचंद्रजी के स्तवन की मधुर ध्वनि सुन रहे थे। पुरुषसिंह श्रीराम शंखध्वनि और दुन्दुभियों के गंभीर नाद के साथ प्रासाद मालाओं से अलंकृत अयोध्यानगरी की ओर प्रस्थित हुए।  



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Action