chandraprabha kumar

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एक अनुभव बादलों के बीच

एक अनुभव बादलों के बीच

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    क़रीब 11.२५बजे सुबह लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट से हमारा विमान उड़ा। पहले धरती लेक मकान, पेड़ सब का एरियल व्यू लिया ,फिर ऊँचे और ऊँचे ले उड़ा। लग रहा था कि प्लेन बादलों के बीच से गुज़र रहा है।

   आस पास बादल-सफ़ेद बादल उड़ रहे थे ,प्लेन के पंखों से आरपार गुज़रते। धीरे धीरे प्लेन और ऊँचाई लेने लगा ,बादलों के टीले से बनने लगे। फिर समतल से लगने लगे जैसे रूई के ग़लीचे को कहीं कहीं उधेड़ दिया हो। फिर बादलों का सागर सा हो गया। बीच में नील गहराई आस- पास उजले बादल। लग रहा था कि जैसे कोई झील हो। जहॉं गहरा नीला पानी हो और आस -पास बर्फ़ पड़ी हो। फिर ऊँचे और ऊँचे प्लेन उड़ान भरता गया। अब ऊपर भी नीला असमान ,नीचे भी नीला आसमान। दूर क्षितिज के पास बाएँ हाथ पर बादल के कुछ टुकड़े ऐसे लग रहे हैं जैसे नभ में दीवार सी बना रहे हों। सूरज की किरणें उनको दुलार से हल्का नारंगी ,पीला गुलाबी स्पर्श दे रही थीं। 

   जहाँ जहाँ नीचे बादल आ गए हैं वहॉं लगता है कि किसी दलदली जगह आ गए हैं, जहाँ पानी की जगह नीला आसमान है और गीली ऊबड़ ख़ाबड़ सफ़ेद मिट्टी की तरह सफ़ेद बादल हैं। बादल -आसमान, बादल -सूरज की किरणें। सब कुछ अद्भुत लग रहा है। यह पहला अनुभव है ,लगता है कि हम आसमान के बीच से उड़ रहे हैं ,धरती दिखाई नहीं पड़ती। चारों तरफ़ आसमान ही आसमान या शुभ्र मेघखंडों का समूह है। 

     यह सब देखते देखते सिर चकरा रहा है। इतनी शुभ्रता ! इतना गहरा नीलापन ! देखा नहीं जाता। नयन मूँद लेने को मन कर रहा है। इतने नज़दीक से इतना अपार नीलिमा का विस्तार और साथ में शुभ्रता को देखने का भार संभल नहीं रहा। विराट् प्रकृति के इतने नज़दीक होने की कल्पना भी नहीं कर सकते। अनोखा दृश्य था जो सदा के लिए स्मरणीय हो गया। 


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