chandraprabha kumar

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chandraprabha kumar

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कुछ यादगार पल

कुछ यादगार पल

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        शैबरौल होटल की चौथी मंज़िल के एक कमरे को हमने पेरिस पहुँचकर लिया है और यहॉं ठहरे है। कमरे की खिड़की खोले नीचे सड़क पर चलते ट्रैफिक को निहारते मैं विस्मय विमुग्ध भाव से बैठी हूँ। मन में पेरिस आने की संतोष तृप्त भावना है, जो अभी नीचे से ब्रेकफास्ट करके आने के बाद और उल्लसित हो आई है।

      नाश्ता सीधा- सादा सा था। कॉफ़ी दूध के साथ, डबल रोटी जैम मक्खन। पर रात कुछ ढंग से नहीं खाया था इसलिए ये अच्छा था।ये पुनः टॉयलेट चले गये हैं। इनके आने का इंतज़ार करती मैं सोच रही हूँ कि जो कल तक स्वप्न था आज साकार है। पर जो अभी बीत रहा है , वह ऐसा नहीं जानपड़ता कि अनोखा है। सब कुछ रोज़ की तरह ही साधारण लग रहा है।वही बादल,वही सूरज ,वही हवा ,वही बूँदाबाँदी। वही प्रकाश किरणों का कमरे में आना ,ताज़ी हवा के झोंकों का आना और मन को आह्लादित बना जाना। केवल सामने की बिल्डिंग कुछ बदली बदली है लेकिन इतनी नहीं कि कुछ अजनबी सी लगे।

    नीचे सड़कों पर वही ट्रैफ़िक का शोर ,लोगों का आना जाना। केवल लोगों का रंग गोरा है, पुरुषों के पहनावे में अंतर नहीं, स्त्रियों के पहनावे में भारतीय साड़ी नहीं है ,पर लंदन से आने के बाद कुछ नयापन नहीं लगता।

       कल ही लंदन से पेरिस पहुँचे थे और तबसे रात के 11 बजे तक लगातार घूमते रहे थे। आर्क द ट्राइओम्फ़ मौन्युमैण्ट देखा, फिर शानसे लीज़ा( मेन मार्केट) देखा, फिर नेशनल डैस इनवैलिड्स और सीन नदी (seine river) देखी। पेरिस शहर सीन नदी के किनारे ही स्थित है। सीन नदी में जहाज़ चलते देखकर नौका विहार करने का लोभ जाग उठा। पर अभी एफ़िल टावर देखने जाना था, इसलिए बरबस मन को रोकना पड़ा। वहॉं जाने के लिए बस नहीं ली।     

       सड़कों गलियों के चक्कर काटते हुए पैदल ही होटल द एफ़िल में पहुँचे थे। वहॉं इन्होंने व्हाइट वाइन ली और मैंने सादा पानी और मूँगफली ली। एक फ़्रैंक और आधा फ़्रैंक डालकर ऑटोमैटिक मशीन से ली। उसके बाद धीमे धीमे अलसाते कदमों को गति देते हुए हम पेरिस की प्रसिद्ध एफिल टावर पहुँचे। वहॉं की भव्य ऊँचाई देखकर थकावट दूर हो गई। नौ बजे तक वहॉं पहुँचे थे और रात साढ़े दस बजे तक घूमते रहे थे। 

       एफ़िल टावर की दूसरी मंज़िल के ऊपर तक गये। वहॉं से सारा पेरिस हमारी आँखों के सामने पड़ा था। देख देखकर मुग्ध होते रहे। दृश्य अनोखा था।सीन नदी पेरिस को दो भागों में काटती बलखाती नखरेवाला मोड़ लेती दाएँ हाथ पूरा घूम गई थी, जैसे पेरिस के मध्य भाग का शृंगार सा कर रही थी। उसमें जाते स्टीमर सुन्दर पिक्चर सा दृश्य दे रहे थे ।जरा सी देर के बाद धीरे धीरे बत्तियॉं जलने लगीं। रात दस बजे तक भी सूरज की रोशनी पूरी मन्द नहीं पड़ी थी। स्टीमर के चारों तरफ़ जलते प्रकाश पुंज दीपमालिका से लग रहे थे। सोचा था कि कल हम भी सीन नदी में विहार करने का आनन्द लेंगे। ऊँची ऊँची भव्य इमारतें बीच बीच में ऊपर सिर निकाले वातावरण में अनोखा रंग भर रहीं थीं। हम पेरिस का नक़्शा खोले मिलाते रहे कि कहॉं कौन बिल्डिंग है। लगा की एफ़िल टावर पर आकर सारा पेरिस देख लिया।

   यह एफ़िल टावर एक लौह टावर है। इसका निर्माण 1887-1889 में शैम्प -दे -मार्स में सीन नदी के तट पर पेरिस में हुआ था। फ़्रांसीसी इंजीनियर गुस्ताव एफ़िल ने इसे बनाया था। 1889 के विश्व मेले में मुख्य आकर्षण में से एक बनाने के लिए एफिल टावर बनाया गया था। यह टावर विश्व के उल्लेखनीय निर्माणों में से एक है और फ्रांसीसी संस्कृति का प्रतीक है।यह ऊँचाई का विलक्षण नमूना है । यह पेरिस की सबसे ऊँची संरचना है और तीन मंज़िलों से मिलकर बनी है। यहॉंएक हज़ार फ़ीट की ऊँचाई तक पहुँचने वाली यह पहली टावर थी। सुनते हैं कि 1918 में फिर इसकी मरम्मत की गई थी। यहॉं पेरिस का ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन है। यह वाच टावर है, दुनिया का समय ठीक रखने का। यहॉं से हमने एक एफ़िल टावर का मॉडल सूवनियर की तरह और चार पिक्चर पोस्टकार्ड बच्चों के लिए मोमैण्टो की तरह ख़रीदे। 

  मैं इन्हीं विचारों में खोयी बैठी थी कि ये तैयार होकर आ गये और चलने के लिए हड़बड़ी मचाने लगे।पेरिस घूमने का आकर्षण बहुत है। इस लिए अब बस। अब साढ़े नौ बज रहे हैं ,डेढ़ घंटा पहिले ही लेट हो गये है। आठ बजे निकलने की सोच रहे थे। पर साढ़े सात बजे सोकर उठते, तैयार होते इतना समय हो ही गया। अब तुरन्त फिर पेरिस परिक्रमा के लिए निकल रहे हैं। दस दस के पैक के टिकट ले लिए थे, इसलिये कल मैट्रो और बस में घूमते रहे। पेरिस का नक़्शा साथ ले लिया था। साथ ही मैंने इंगलिश टू फ़्रेंच की अपनी छोटी पुस्तिका भी रख ली है। हमें फ्रेंच भाषा बिलकुल नहीं आती और यहॉं के लोग अंग्रेज़ी नहीं बोलते। यदि जानते भी हैं तो कह देते हैं कि हम नहीं समझते। 

    हमने अपनी पुस्तिका से पढ़ पढ़कर दो चार अक्षर फ्रेंच के बोलकर किसी तरह अपना काम चलाया। फ्रेंच सुनकर वे लोग जल्दी ही मदद के लिए तैयार हो जाते थे। इसीलिये आज भी यह पुस्तिका साथ रख ली है। यहॉं आकर घूमना एक सपना पूरा होना जैसा है। 

   


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