chandraprabha kumar

Others

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chandraprabha kumar

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अवसर मिला कुवैत देखने का

अवसर मिला कुवैत देखने का

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       (कुवैत देखने का मौक़ा बहुत बरसों पहिले अचानक लग गया था। आज के कुवैत में परिवर्तन आये होंगे, पर बरसों पहिले जब जून के पहले हफ़्ते में हमें भाग्यवशात् अनायास कुवैत देखने व रुकने का अवसर मिला, तब की यह कथा है।)

     आज रात नहा धोकर मन प्रफुल्ल हो गया। सिर धोकर स्नान किया। होटल के कमरे में साथ ही बाथ रूम है। वहीं होटल का नाम लिखा हुआ साबुन रखा था और शैम्पू भी लेमन का रखा था। कपड़े धोकर नहा धोकर मन हल्का हो गया। लाईफ़ में किसे पता था कि आज का दिन कुवैत के नाम लिखा था। रात्रि में यहीं खाना था और सोना था। हम कुवैत आने की सपने में भी नहीं सोच सकते थे। परसों तक हमें पता नहीं था कि हमारा प्लेन कुवैत और दुबई होते हुए नई दिल्ली पहुँचेगा। कल सुबह लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर चैक अप के बाद पता चला कि प्लेन कुवैत होते हुए जा रहा है। केवल एक घंटे का स्टे है, पर प्लेन से उतरने नहीं दिया जायेगा। 

    हीथ्रो एयरपोर्ट पर इन्होंने वाईन और सिगरेट ख़रीदी। मैंने बच्चों के लिए चॉकलेट व पर्स ख़रीदा डब्लू.एच. स्मिथ की दुकान से। १०ः२० पर प्लेन को चलना था पर लंदन में ही एक घंटा विलम्ब हो गया। ११ः२० के क़रीब प्लेन चला। ऊपर बादलों में उड़ानें भरता। रुई के गाले से बादल कभी दूर कभी पास ऑंखमिचौली सी खेलते दूर क्षितिज के पास सतरंगी आभा में बिखर गये थे। लगता था कि नीचे नीला सागर लहरा रहा है जिसमें जगह जगह हिमखंड भरे हैं जो पिघल रहे हैं, उड़ रहे हैं, फैल रहे हैं। आसपास अपार नीलिमा का विस्तार। अनोखा अनुभव था। हम नील गगन के बीच से उड़े जा रहे थे। बादलों के भी पार। बादल नीचे रह गये थे। कहीं धरती का पता नहीं था। 

   जहां बादल नहीं थे वहाँ ऊपर, क्षितिज पर, नीचे सब जगह नीलांबर फैला हुआ था। मुग्ध भाव से देखते -देखते सिर में चक्कर सा महसूस हुआ। आंखें बंद कर लीं । कुछ आराम मिला। दृश्य अद्भुत था। पर अधिक देर देखने से सिर घूमता सा जान पड़ता था। मन बहलाने को स्टोरी बुक खोल ली। स्ट्रैटफोर्ड अपऔन एवन से शेक्सपीयर की स्टोरीज़ लायी थी। अच्छी लिखी किताब थी। किंग लियर और उसकी तीन बेटियों की कहानी में परसों से ही उलझी हुई थी, कुछ रह गई थी,अन्त क्या था यह जानने की उत्सुकता थी। अतः उसी को पढ़ने लगी। फिर कॉमेडी ऑफ़ ऐरर में दो जुड़वां भाईयों की एक सी शक्ल से उत्पन्न ग़लतफ़हमी विभ्रम और उससे फूटती हँसी में खो गई। समय धीरे धीरे से खिसकता गया। किताब में खोया मेरा मन हल्का होता गया। तभी घोषणा हुई कि कुवैत के पास पहुँच रहे हैं और प्लेन लैंड करने वाला है। मन अद्भुत प्रसन्नता से भर उठा। बाहर का दृश्य पुनः देखने लगी। 

      इस बार धरती दिखाई दे रही थी ।हरियाली का कहीं नाम नहीं था । मटमैला ,भूरा ,सलेटी रंग सब जगह फैला लगता था।जैसे कि अकस्मात् रंगमंच का दृश्य, पर्दा, चित्र सब कुछ बदल गए। चौड़ी चौड़ी माँग सी सड़कें, बीच में कुछ कुछ मकानों की धूमिल आभा उभर रही थी। पर हरे भरे मैदान या हरे भरे वृक्ष कहीं नहीं थे। लगा कि यहॉं बालू ही बालू है। तेल के कुओं के लिए कुवैत प्रसिद्ध है और सुना है कि अमेरिका के बाद दुनिया का सबसे धनी देश यही है। प्लेन क़रीब एक घंटे रुका रहा।

   हम बैठे बैठे प्लेन चलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। प्लेन चला और रनवे पर आया। लगा की उड़ान भरेगा। इतने में घोषणा हुई के इलेक्ट्रोमीटर सही सूचना नहीं दे रहा है ।उसे चैक अप करना है ,अतः दस मिनट प्रतीक्षा करें। फिर कुछ देर बाद घोषणा हुई कि प्लेन के एक इंजन में कुछ ख़राबी आ गई है इसलिए अभी एक घंटा रुकना पड़ेगा। पर समय बढ़ता गया और पता चला की रात कुवैत में ही रुकना पड़ेगा। प्लेन से उतरकर हम लोग एरोड्रोम आए। यहाँ पहले हमारे पासपोर्ट लिए गए, फिर पासपोर्ट कुछ के दिए गए ,फिर ले लिए गए। बड़ा कन्फ्यूजन सा हुआ। कुछ लाइन नहीं थी ।कोई तरीक़ा नहीं था। नाम पुकार पुकारकर पासपोर्ट बाँट रहे थे ।भीड़ में जो हाथ बढ़ाएं , ले लें। बाद में फिर पासपोर्ट ले लिए गए। एरोड्रोम पर बैठने के लिए बैंच भी नहीं थी। लोग- बाग फ़र्श पर ही पसर कर बैठ गए थे। फिर बताया गया कि -'बाहर जायें, बाहर बस मिलेगी।'

    हम सब बाहर आ गये । बाहर दो एक बसें खड़ी थीं, बाक़ी टैक्सी थीं। कहाँ जाना था ,कुछ पता नहीं था। बाद में पता चला है कि होटल 'मसीलीहा बीच' में जाना है।क़रीब साढ़े तीन सौ यात्री ७४७ विमान से उतरे थे। तीन- चार बस भर कर चली गईं। फिर बस नहीं रही। हम लोग भीड़ के पीछे थे। बाहर ही एक- दो घंटा खड़े रहे । ब्रिटिश एयरलाइन के एक दो कर्मचारी बाहर थे, उन्होंने टैक्सी ठीक करनी चाही, पर टैक्सी वाले पहले पैसा माँगते थे। अतः टैक्सी नहीं ली गई। बस की प्रतीक्षा खिंचती गई। फिर एक टैक्सी आयी , हम रोड के किनारे खड़े थे। ड्राइवर बड़ी लापरवाही से टैक्सी ले आया। हम सामान भी नहीं उठा पाए थे ,टक्कर होते होते बची। एक यूनिफॉर्म में खड़े आदमी ने कुछ कहना चाहा कि टैक्सी ड्राइवर चिल्लाया-' यू गो अवे।' और बड़ी लापरवाही से उसने टैक्सी बैक करके फिर खड़ी कर दी। पॉंच- छह आदमी उस टैक्सी में बैठकर गये। पर उसके पन्द्रह मिनट या आधे घंटे बाद मिनी बस आई। उसमें बैठकर हम पंद्रह- सोलह आदमी जो बच रहे थे , होटल आए।

     हर जगह यहाँ हिन्दी बोलने वाले थे। होटल में भी हिंदी जानने वाले बहुत से भारतीय काम पर थे ,अधिकतर बम्बई से आए हुए। होटल के रिसेप्शन में पहुँचकर चाबी ली। कमरे में अपने हाथ का सामान रखा। फिर खाने की जगह में गए। खाना क़रीब क़रीब ख़त्म हो चुका था। कुछ थोड़े से लोग बच रहे थे। हमने अपनी प्लेटें लीं और खाना शुरू किया। खाने में शाकाहारी और आमिष दोनों तरह का था। मैंने शाकाहारी लिया। लेकिन कुछ पसन्द नहीं आया। सब का फ़्लेवर व टेस्ट दूसरी तरह का था। मैं केवल टमाटर का सलाद, चीज़ की डबलरोटी जैसी गुझिया और चावल ले पाई। बाद में सेब व मौसमी ली। लेमिनेड था। 

      साढ़े बारह- एक बजे के क़रीब हम वापिस होटल के कमरे में आये। नहा- धोकर डेढ़- दो बजा। अब सोना ही था। कमरा बड़ा था, आरामदायक था ,दो बैड थे। लैम्प रखा था साइड में। अब शायद सुबह का १०ः२० पर प्लेन था, जिसका रिपोर्टिंग टाईम ८ः२० था। पर सही बात सुबह ही पता चलनी थी। रिसेप्शन पर जाकर पता लगाया तो उन्होंने कहा-" सुबह फ़ोन कर देंगे। " लैम्प बुझाकर हम सो गये। 

     सुबह पता चला कि प्लेन शाम छह बजे जायेगा। चार बजे के क़रीब डिपार्चर टाईम दिया गया। हम यहाँ से टैक्सी में बाज़ार घूमने चले गये और बस से लौट आये। वहॉं हमने कुवैत टावर देखी । मार्केट देखा। अल मोबारिकया में हमने लंच लिया। 

   मरीना कॉफी हाउस में नाश्ता लिया था। यहाँ से स्विंमिंग पूल पास ही था।वहीं अंग्रेज नर - नारी, बच्चे बिकनी स्विम- सूट पहने धूप सेक रहे थे या पूल में तैर रहे थे। निकट ही सी- बीच है। हम तपती धूप में भी समुद्र किनारे चले गये। ये ऊपर ही रहे। मैं नीचे उतरकर किनारे पर छपछप करती रही। फिर पानी में पैर डुबोकर कैसा तो अनुभव हो रहा था। मेरे पैरों के पास ही गल्फ़ के समुद्र की लहरें हिलोरें मार रहीं थीं और किनारों से टकराकर लौट रहीं थीं। समुद्र का पानी स्वच्छ हरा था। चिलचिलाती धूप में वहाँ की ठंडक सुखद मालूम हो रही थी। चप्पल सैंडिल उतारकर मैं समुद्र की रेत पर चलती रही, और वहाँ पड़े नन्हें सुन्दर पत्थरों को उठाकर अपने बच्चों को याद करती रही, जिन्हें भारत छोड़ आये थे। आज भी समुद्र के किनारे से छोटे- छोटे पत्थरों को उठाकर हम ख़ुश होते हैं तो हमारे बच्चे क्यों न खुश होते। निसर्ग से प्राप्त सुख के साधन कितने सुलभ हैं सबके लिये। 

     क्या कभी हम कल्पना कर सकते थे कि एक दिन हमारा वायुयान अपने पंखों की उड़ान रोक देगा कि हम कुवैत के एक भव्य पाँच सितारा होटल में ठहरेंगे और वहाँ का आलीशान कमरा इस्तेमाल करेंगे,कुवैत का बाज़ार घूमेंगे और समुद्र को स्पर्श करेंगे। इस अप्रत्याशित कुवैत भ्रमण का अवसर देने के लिए लिये ईश्वर को धन्यवाद दिया। 

    


   



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