Bharat Bhushan Pathak

Abstract Others

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Bharat Bhushan Pathak

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सीधी बात

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सिमटती हमारी प्रतिक्रियाएं:-

आधुनिक युग एक चरम पर पहुँची प्रगतिवादी युग है, मैं तो कहूँ तो स्वभाव से ही हर विषयवस्तु में आनंद ढूँढ लेने वाला प्रारंभ से ही रहा हूँ, उदाहरणार्थ मेरे दाँत के दर्द को ही ले लीजिए बेचारा कहीं बेटा ये अवश्यमेव सोच रहा होगा कि किस भले मानुष से पंगा ले लिया और वो भी कुछ लिखते रहने की कोशिश करने वाला लेखक, डरे भी क्यों नहीं, मैंने इस पर भी जो आज कहानी लिख डाली "दन्तशूल " नाम की...शायद मैं बेढब बनारसी जी का समर्थक रहा हूँगा, जिन्होंने अपने ही उदरशूल पर पेट दर्द के मजे लिख दिए थे, तो ऐसा ही कुछ प्रयत्न कर मैं भी आ गया। मेरे व्यंग्य बाण से कोई भी बचा हो तो बोलें इंद्रदेव को समर्पित ये बारिश प्रतिलिपि पर, आज के प्रतिकूल काल पर ज्ञान बघारने वालों पर पसेरी भर ज्ञान और बहुत से चीजों पर विशिष्ट व्यंग्य।

तो आज का व्यंग्यबाण सिमटती प्रतिक्रियाओं पर माता हिन्दी को ही समर्पित है:-

पहला व्यंग्य अपने आप को ही समर्पित कि जब भी इस रूप पुस्तिका यानी यही फेसबुक या अन्य कहीं स्वचालित सन्देश संप्रेषक पर कुछ लिखता हूँ तो क्या कहने,बिल्कुल गोल-गोल रोटी और सुनहरे मोती की तरह ही दिखने लगते हैं ये शब्द, वाह! भाई क्या कहने

मन तो कर उठता है कि अपनी अंगुलियाँ ही चाट जाऊँ, पर जब उत्तर पुस्तिका पर अपनी इसी प्यारी अँगुली से जब अंकनी, तूलिका, लेखनी, कलम और न जाने क्या-क्या नाम वाली इस नन्हीं जान को हाथ में लेकर जब कुछ अंकित करना चाहता हूँ तो मुझे विशेष द्वन्द *ख* का अपने साथ ऊपर लगने वाले इस डण्डे और अंडे से दिखाई देता है जो मुझसे कहती हुई प्रतीत होती है कि भारत भाई शायद आपने मुझे नहीं पहचाना जिसे आपने रूप पुस्तिका पर बखूबी मिलाया था, थोड़ा यहाँ भी मिला दो, पर इसे कौन समझाए बहना ,अरी बहना !वहाँ तुझे मैं नहीं मिलाता था मेरा कुँजीपटल था और उत्तर पुस्तिका में तुझे बोल कैसे मिलाऊँ, बेचारी उदास होकर खुद ब खुद सामंजस्य बिठा लेती है,जिसका ख़ामियाजा यह कि मेरे गुणी विद्यार्थी पूछने लगते हैं सर ये बेचारी *र*बहना है या *ख*बहना। बेचारी *श* का भी यही हाल है ये खुद असमंजस में रहती है कि हे मानव! मैं *श*हूँ या *थ *

अरे वही उत्तर पुस्तिका में, यहाँ तो मोती जैसे ही हस्तलिपि हैं, दर्जनों पुरस्कार ले रखा हूँ बंधु यहाँ लिखने के कारण, उत्तर पुस्तिका पर तो बेड़ा गरक हो जाती।

यहाँ इस रूप पुस्तिका पर आपने विभिन्न कवियों को या मुझे ही लिखते हुए बहुत बार देखा होगा कि आपकी लेखनी, आपकी अंकनी, आपकी तूलिका को नमन है, पर तूलिका कहाँ है जी! दरहसल कर्सर को नमन है अब से कहा करूँगा ताकि मेरे इस कर्सर भाई के साथ अन्याय न हो, अतएव श्रीगणेश धमाकेदार करने के लिए कर्सर भाई का हृदय तल से आभार।

अब आता हूँ अपनी मूल विषय सिमटती प्रतिक्रियाओं पर, पहले लोग जब चिट्ठी लिखते थे और उनसे केवल ये पूछा जाता था कि आप कैसे हैं तो उसका जवाब ढाई पेज होता था और आज उसी का जवाब ढाई केबी० का बेचारा नन्हा-सा ईमोजी होता है, खुश हैं तो हाहाहा, चमचमाता हुआ, झूलता हुआ आङ्गल भाषा में हेप्पी ।खुश नहीं हैं तो उसके लिए रोते हुए बच्चे वाला ईमोजी,विशेष रोते बच्चे का जीआईएफ० और नहीं तो आङ्गल भाषा का दो नन्हा संक्षिप्त अक्षर* एन और एफ*, अन्यथा हुँकारी तो प्रसिद्ध ही है ,अजी वही हम्म और क्या!

अब कुछ वर्षों पहले या कुछ दिनों पहले की बात करता हूँ एक कवि महोदय की कविता जो मुझे बहुत अच्छी लगी मैंने करीब ३०पंक्ति का वृहत से वृहत्तम टिप्पणी लगभग १००-१५० शब्द समाहित करके किया, तत्पश्चात यह आशा थी कि उधर से भी लगभग कुछ कम ही सही परन्तु कुछ तो वृहत पुनर्प्रतिक्रिया आएगी ही, पर ये क्या वही नन्हा -सा फुदकता हुआ, कुछ गिरता, कुछ बजड़ता हुआ आङ्गल भाषा में थैंकयू! महोदय ने लिखा किस विषय पर था हिन्दी पखवाड़ा विशेष जिसमें टोकरी भर-भर के माता हिन्दी की सेवा की गयी थी मोक्षदायिनी, सुखदा, ज्ञानसलिला, पतितपावना, सुगम्य, सरल जैसे भारी भरकम अलङ्कार से सुशोभित किया था, परन्तु मेरी इतनी प्यारी व एक-एक शब्द सोचकर,नाप-तौल कर लिखी मेरी प्रतिक्रिया पर नन्हा-सा फुदकता हुआ थैंक्यू!ओरी बाबा ऐई किरंग के चलिबे दादा! मुझे कहा कृपया मेरी कविता को ध्यान देकर पढ़ें और बदले में क्या नन्हा सा फुदकता हुआ वो भी आङ्गल भाषा का थैंक यू।

 इसीलिए यही योजना हमऊ निर्धारित किए हैं, वहीं किन्हीं पाँच प्रश्नों के ही उत्तर दें तो हम भी पाँचे देंगे, छठा पैरो पकड़े पर नाहीं देंगे। कोई जब हमसे कहियें मेरी सुनिए,तो हमऊ यही कहिंगे यार कि पहले तुमऊ हमरौ पढ़ऊ,तब आयी तोह के पढ़े।

इसलिए हमरी महाकल्याणी पुनीत प्रतिक्रिया चाही तोहके तो हमऊ पढ़इयो समझऊ कि नाहीं।*

और तो और पढ़ने वाले भी कमाल होत हैं कृपया अपनी छवि(फोटो)न लगावें का इनको मतलब समझ आता है अपनी सुन्दर सी तस्वीर लगाएं,कृपया कोई लिंक साझा न करें का इहके मतलब समझ में आवतौ है के कोईयो लिंक हो बस दे मारो।

और तो और आङ्गल भाषा में न लिखें के लिए भी अचूक उपाय इनके पास है हिन्दी में हिंग्लिश फेंटना,अधिकांश रचना में मंचों पर यही तो होता है,नीचे मोटे-मोटे,सुनहरे-सुनहरे अक्षरों में लिखा होता है आङ्गल भाषा का प्रयोग वर्जित है तो अब कैसे आङ्गल भाषा का प्रयोग हो तो लगे हिंग्लिश फेंटने और तो और पूछने पर कहेंगे कि रचना की माँग यही थी।

तो भैया जब आपकी रचना इंग्लिश का छोटका भैया हिंग्लिश यानि विशेषाङ्गल भाषा के प्रयोग के बिना लिखा ही नहीं जा सकत है, तो आपऊ माता हिन्दी को कैसे इसका उचित स्थान दिला पावोगे सादर।

 क्षमा के साथ परन्तु ये बातें गौर करने लायक है।



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