Bharat Bhushan Pathak

Drama

2.5  

Bharat Bhushan Pathak

Drama

विराम-गति

विराम-गति

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710


योगेश बचपन से ही अन्य बच्चों से अलग रहा था। अजीब शौक थे उसके बचपन में जब बच्चों को खेल-खिलौने का शौक होता है,उसे किताबें पढ़ने का शौक था।

स्कूल जाते समय कभी-कभी जब पिता से उसे कुछ खाने-पीने का पैसा मिलता तो वह उसे खाने-पीने की चीजों में व्यर्थ न करने के बजाय संभाल कर रख लिया करता था।हाँ कुछ बालोचित्त गुण भी था उसमें यथा पड़ोसियों के घर जाकर टीवी देखना ,मुहल्ले के बच्चों के साथ कभी- कभार खेला करता था वह।पता नहीं उसे खेल खेलने में क्यों आनन्द नहीं आता था।

विद्यालय में भी बच्चों की तरह खेलकूद इत्यादि में उसकी रूचि नहीं थी,उसकी रूचि तो केवल किताबों में ही थी।

अल्प बुद्धि के होने के कारण उसके शिक्षक भी उसे पसन्द नहीं करते थे।वह पढ़ना नहीं चाहता था या उसकी

अभिलाषा ही नहीं थी,ऐसी बात भी नहीं थी।

संभवतः उसके मस्तिष्क और उसे कोई समझने वाला ही नहीं था अभीतक। इस कारण वह कक्षा में बेंच पर कम ,किन्तु बेंच के ऊपर अधिक दिखाई देता था।

परीक्षाओं में भी कोई विशेष अंक प्राप्त नहीं हुआ था उसे। उसके सहपाठी उस पर हमेशा हँसा करते थे ।

शायद लोग आज के इस प्रतियोगी युग में अपने से कम योग्यता वाले को देखना भी नहीं चाहते।

योगेश कभी -कभी जब अकेले बैठा होता तो सोचता

कि क्या मैं इस भाँति ही रह जाऊँगा या कुछ परिवर्तन होगा मेरे जीवन में भी.....

क्या इस जीवन में मैं अज्ञान तिमिर से ही आच्छादित

रहूँगा या मेरे जीवन को भी ज्ञान प्रकाश की एक छोटी ही सही, किन्तु रश्मि स्पर्श तो करेगी। इस भाँति ही वह

निशदिन सोचता रहता था।पर कभी-कभी एक न एक चमत्कार तो अवश्य ही हो जाया करता है जीवन में,उसके

जीवन में भी एक चमत्कार हो ही गया। एक दिन जब वो

अपनी कक्षा में पहूँचा तो उसकी नयी शिक्षिका "भारती "

मेम ने उनलोगों से पूछा कि क्या आप सभी मेंं से कोई

भी ऐसा है जो मेरे इन प्रश्नों का उत्तर दे सके।

सभी विद्यार्थी ने अपने सोचने की क्षमता के आधार पर

उनके प्रश्नों का उत्तर दे दिया,परन्तु जब उन्होंने उसी प्रश्न को जब उससे दुहराया तो वो असहज हो गया और असहज होकर बस अपने दोनों हाथों को उनके सामने

आगे बढ़ा दिया कि मानो वो इसके दण्ड को पाने के लिए

उदात्त हो। जब भारती मेम ने उससे यह पूछा कि वो दण्ड

क्यों लेना चाहता है तो वो बस इतना ही बोल पाया कि ,

"मेम मैं पढ़ना चाहता हूँ,परन्तु मैं कुछ समझ नहीं पाता हूँ" ! जब उन्होंने इसका कारण उससे पूछा तो बस वो यही बतला पाया था उनसे कि न जाने उसे कुछ क्यों समझ नहीं आता! भारती मेम बड़ी ही अनुभवी थी,उन्होंने

बस इतना ही कहा कि मैं तुम्हें कुछ तरीका बतलाऊँगी परन्तु कल आज मुझे किसी आवश्यक काम से बाहर जाना है।

मित्रों ,उस दिन तो भारती मेम योगेश के क्लाश से विदा ले वहाँ से चली आई।परन्तु वो उसके बाद योगेश के घर गयीं और उसके माता-पिता,पास-पड़ोस व दोस्तों से मिल उसके विषय में सारी जानकारी एकत्रित कर ली।

उसके बाद दूसरे दिन योगेश की कक्षा में जब वो आईं,तो उन्होंने योगेश से कहा कि बेटा योगेश !आप मुझसे स्कूल की छुट्टी होने के बाद हाॅस्टल में मिलने आना,मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।

योगेश ने जी कहते हुए सिर हिलाया। भारती मैम अपनी पालि पूर्ण होने के बाद अन्य कक्षाओं में अँग्रेजी पढ़ाने चली गयी।उसके बाद स्कूल की छुट्टी जब हुई तो वो स्कूल के हाॅस्टल वाले अपने कमरे में चली गयी।

योगेश भी कुछ देर के बाद उनके हाॅस्टल वाले कमरे के बाहर पहुँच गया था। वहाँ पहुँचकर वो उनसे अन्दर आने की अनुमति माँगा और अनुमति प्राप्त कर उनके कमरे के

अन्दर चला गया। उसके अन्दर पहुँचते ही "भारती मैम" ने उसे बड़े ही प्यार से बैठने को बोली और बिस्कुट देते हुए उससे बोली कि बेटा पहले अब मैं तुमसे जो भी पूछुँगी उसका जवाब देते वक्त एक बार भी "मैम " नहीं बोलोगे,हाँ तुम दीदी कह सकते हो।

सज्जनों योगेश से" भारती मैम"का अपने आप को दीदी कहलाने के पीछे यह उद्देश्य था कि वो उसे अच्छी तरह से समझना चाहती थी"।बाल मनोविज्ञान भी इस बात की

पुष्टि करता है कि यदि हमें किसी बच्चे के मनोभाव को

समझना है तो हमें उससे पूर्ण स्वच्छंदता के साथ वार्तालाप करनी चाहिए,जिससे वो अपनी बातों को अच्छे

से आपके समक्ष रख सके और आप भी उनकी परेशानी का यथोचित हल निकाल सकें।

संभवतः भारती मैम इसी विधा का अनुपालन कर रही थी।

उन्होंने योगेश के साथ अपनी वार्ता का प्रारम्भ कुछ सामान्य प्रश्नोत्तरों से किया,यथा :-उसकी पसन्द,नापसन्द,खेल ,खिलौने इत्यादि।

उनकी इस वार्ता को उन्होंने प्रारम्भ करते वक्त पहले ही

एक प्रश्न को पूछकर योगेश के मन में छूपे सारी बातों का मर्म निकाल लिया। उन्होंने योगेश से मात्र ये पूछा कि बेटा

कि क्या तुम्हें कहानियाँ या कविताएं लिखना पसन्द है,शायद उन्होंने योगेश के इस विशेष शौक के बारे में

जानकारी प्राप्त कर रखी थी,इसलिए अनुमानित तीर

सीधे लक्ष्य को साध गया। उनके यह पूछते ही योगेश चहक उठा :-जी दीदी बहुत,बहुत ही अधिक पसन्द है मुझे कहानियाँ या कविताएं लिखना या सुनना। मैंने बहुत सारी कहानियों की किताब भी पढ़ी है और कुछएक लिखी भी है,आप कहेंगी तो आपको पढ़ने को भी दूँगा,क्योंकि अब आप मेरी दोस्त हो न!

उसके इस प्रकार कहने के बाद "भारती मैम" ने भी बच्चे की तरह बिल्कुल चहकते हुए योगेश से कहा। जरूर बेटे हम दोनों मिलकर उन सबको पढ़ेंगे और लिखेंगे भी पर......

उनके इस प्रकार कहते हुए रूक जाने पर योगेश ने कहा,पर क्या दीदी,क्या हुआ आप नहीं पढ़ेंगी !

उसके इस प्रकार मासूमियत से कहने पर "भारती मैम " ने पुनः उससे कहा ,ऐसी बात नहीं है बच्चे। मैं अवश्य उन सब को पढ़ूँगी ,परन्तु उससे पहले तुम्हें मेरा एक काम करना होगा।उदास होते हुए योगेश ने कहा.....ठीक है दीदी,मुझे क्या करना होगा।

उनके इस प्रकार पूछने पर योगेश ने जब उनसे कहा कि ठीक है दीदी ,बतलाइये मुझे क्या करना होगा तो "भारती मैम" ने उससे कहा कि बेटा योगेश कुछ ज्यादा तुम्हें नहीं करना मात्र तुम्हें आज कक्षा में पढ़ाए गए विषय पर मात्र कहानी लिखनी है,फिर अपने मनोनुरूप कार्य को सुनकर वह चहक उठा,ओ ये तो मैं कर लूँगा ये मेरे बाएँ हाथ का काम है और मैम से विदा लेने को हुआ,परन्तु मैम ने उसे रोकते हुए एक चाॅक्लेट देते हुए उससे पुनः कहा कि ध्यान रहे योगेश,हमारी दोस्ती वाली बात और तुम मुझको दीदी कहते हो ये बात किसी को पता न लगनी चाहिए ,इसके लिए तुम मुझे कक्षा में सभी बच्चों की तरह मैम ही कहना। तुम्हें कल मैं कक्षा में डाँटूँगी और तुमसे कहूँगी कि कल तुमने इस पाठ को पढ़ कर न सुनाया था, इसलिए तुम्हारी यही सजा है कि तुम हम सबको इसका अर्थ बतलाओगे और तुम वहाँ डरते-डरते आना औरनतब हमें इसकी कहानी सुनना,याद रखो कल इसमें बहुत मजा आएगा, उसके बाद ओके मैम मेरा मतलब यहाँ के लिए दीदी कहते हुए वहाँ से बाई बोलकर एक तितली की भाँति अपने घर को उड़ गया और भारती मैम उसे इस प्रकार खुशी-खुशी घर जाते देखने लगी।

वह जब घर पहुँचा तो माँ ने उसे खाना खाने के लिए कहा,पर उसने इतना ही कहा कि माँ मैं बाद में खा लूँगा अभी भूख नहीं है। बहुत इम्पोर्टेन्ट काम करना है मुझको

अभी और वह अपने कमरे में चला गया। उसके बाद घंटों कुछ लिखने के बाद वो अपने कमरे से बाहर आया और चहकते हुए बोला ।हाँ माँ अब खाने के लिए दे दो मुझको

मैंने भारती मैम द्वारा दिया हुआ होमवर्क को कम्पलीट कर लिया है,अब बस कल स्कूल पहुँचने की देरी है।

फिर देखना योगेश का चमत्कार.......

दूसरे दिन योगेश जब विद्यालय पहुँचा तो भारती मैम ने उसे अपने पास बुलाया और कक्षा को संबोधित करते हुए उनसे बोली कि बच्चों आज योगेश हम सबों को कल पढ़ी

हुई कहानी को हिन्दी में बतलाएगा।

सारे बच्चों को यही लग रहा था कि,बस अब योगेश आज हमारी नयी मैम से भी पीटनेवाला है और वो ये

सब सोचते हुए मैम को और योगेश को देखने लगे ,संभवतः दोनों नाटक कर रहे थे,इसलिए दोनों अपने-अपने किरदार को बखूबी निभा रहे थे योगेश डरने का और मैम डराने का।मैम ने पुनः योगेश की तरफ देखते हुए उससे बोला कि योगेश बेटा!कल तो आपने इस पाठ को पढ़ कर नहीं सुनाया था,आज आप हम सबों को इसकी हिन्दी अर्थ बतलाएंगे यही आपकी सजा है।

योगेश ने भी" भारती मैम" के बतलाए अनुसार ही डरने का नाटक करते हुए कहा ,"जी....जी... मैम मैं कोशिश करूँगा,पर मैं इसे देख कर ही बतला पाऊँगा,जो मैंने कल

लिखी थी।उन्होंने नाटकीय ढंग से ही उसकी तरफ देखते हुए कहा। हाँ हाँ क्यों नहीं,गो अहेड !

उसके बाद योगेश ने बतलाना प्रारम्भ किया...बिना वो पेज खोले ही बड़े कुशल कहानीकार की तरह उसने बतलाना शुरू किया और उसके बोलने के अन्दाज और

पूरी कहानी को समझाने के तरीके से पूरा कक्षा और मैम उसके लिए ताली बजा रहे थे...

ये सब सुनते हुए किसी का ध्यान उस ओर न गया था कि प्रिन्सीपल मैम भी उसकी कहानी को सुन रही हैं।

उसकी कहानी को सुनने के बाद प्रिन्सीपल मैम भी कक्षा के अन्दर आ गयी।

कक्षा के अन्दर आते हुए उन्होंने उन सबसे कहा कि बच्चों सुना आपने योगेश की कहानी ,देखा कितने अच्छे

से इसने पाठ को समझाया। इसलिए आज से योगेश आपकी कक्षा का माॅनीटर है और मैं योगेश को अपनी तरफ से आने वाली छब्बीस जनवरी के दिन हमारे डाईरेक्टर सर के द्वारा अवार्ड दिलवाऊँगी।

आज योगेश बहुत खुश था और उस दिन के बाद योगेश में हुए बदलाव को सबने देखा।योगेश अब संभवतः कैसे पढ़ना चाहिए सीख चुका था।उसके बाद कक्षा चार की

फाईनल परीक्षा में अठारहवीं पोजीशन से सीधे आठवीं पोजीशन तक पहुँच गया।

अभिन्न जनों योगेश अपनी असफलता की जंग को संभवतः जीत कर आगे बढ़ गया।पर उसकी इस जंग का अन्त नहीं हुआ था अभी.... उसे और एक प्रबल थपेड़े का सामना करना था। योगेश जब काॅलेज में पहुँचा तो उसकी एक बीमारी ने उसका दामन थाम लिया।

योगेश को बेडवेटिंग यानि बहुमूत्रता ने अपना संगी बना लिया ,एक ऐसा साथी जो कभी आपका साथ नहीं छोड़ती है।

साथियों यहाँ पर यह कहना थोड़ा अजीब होगा कि लोग दिव्यांग यदि होते हैं तो उनका दर्द कम होता है,पर संभवतः उनका दर्द योगेश जैसे युवा के दर्द से इसलिए कम है ,क्योंकि लोगों से उन्हें सहानुभूति मिलेगी।

पर क्या योगेश को वो सहानुभूति मिल पाती ! जब वो किसी बस में या किसी ऐसे ट्रेन में रहता जिसमें वाशरूम

की सुविधा न हो और बस जिसमें कभी-कभी घंटों सफर करना पड़ता है,उस स्थिति में जब बस या ट्रेन किसी व्यक्ति विशेष के लिए बार-बार नहीं रूकती है । उस स्थिति में मानव जब इन शारीरिक या प्राकृतिक आवश्यकताओं को नियंत्रित न कर सके...क्या उस स्थिति में दिव्यांगों की भाँति सहानुभूति मिल पाएगी,नहीं न! क्योंकि एक किशोरावस्था में पहुँचे लड़के को कोई इस स्थिति में देखना क्या देखने तक की कल्पना भी नहीं कर सकता। इस स्थिति में जब आप होते हैं तो संसार आप पर तरस नहीं खाता ,आपकी हँसी उड़ाता है ।

क्या योगेश की पीड़ा,पीड़ा नहीं थी। क्या उसका दर्द एक दिव्यांग की भाँति नहीं था।

इस कहानी के लेखक होने के नाते मैं यह मानता हूँ कि दिव्यांगों का दर्द... दर्द है ,पर क्या योगेश का दर्द ...दर्द

नहीं, क्या उसे सहानुभूति की आवश्यकता नहींं थी ?

हाँ ,मैं ये भी मानता हूँ कि दिव्यांगों को ईश्वर ने कष्ट दिया है,उनके दर्द और योगेश के दर्द में मात्र ये फर्क था,अन्तर था कि वो संसार के लिए सहानुभूति के पात्र हैं।

पर योगेश का भी तो कोई दोष नहीं था न ...सज्जनों !

योगेश बचपन में तो इस बहुमूत्रता से मुक्ति पा लिया था क्योंकि उस समय उसके दादाजी जो एक कुशल वैद्य थे ने अपनी जड़ी-बूटी की सहायता से उसे स्वस्थ कर दिया था...पर ये तो योगेश के लिए एक क्षणिक सुख ही था ,क्योंकि आज किशोरावस्था में इसकी पुरानी संगी न जाने कहाँ से इसका साथ निभाने आ गयी थी।

कितने चिकित्सकों से दिखाया था उसने,कितने नामी-गिरामी डाॅक्टरों से भी इस बीमारी को दिखलाया उसने। पर....सब बेकार...सब निष्क्रिय...न जाने विधाता ने किस जन्म में किए पाप की सजा उसे देने की ठान रखी थी। घर में रहने से तो ये इसके दैनिक जीवन का अंग जैसा बन गया था यह बीमारी उसका,दिन भर चलते -भागते,काॅलेज जाते समय बीत जाता था उसका क्योंकि साइकिल से काॅलेज जाता था वह ऑटो रिक्शा,बस की सुविधा के बाद भी क्योंकि उसके लिए ये घण्टों सफर करने के जैसा ही था। मित्रों योगेश के लिए बस या ऑटो

में सफर करना किसी परीक्षा से कम नहीं थी क्योंकि योगेश के लिए थोड़ा सा भी उतार- चढ़ाव बड़ा मुश्किल होता था। थोड़ा सा भी उतार-चढ़ाव योगेश के लिए बड़ा ही परेशानी का सबब बन जाता था, इसलिए योगेश बेचारा साइकिल से काॅलेज आना-जाना करता था।

खैर दिन तो मजे में ही काट लेता था योगेश पर रात उसके लिए एक यातना की ही भाँति होती थी,एक रात क्या हर रात...योगेश भींग जाता था,उसी तरह से जिस तरह एक नवजात शिशु भींग जाया करता है,उसे बिस्तर को बचाने के लिए इन्तजाम पुख्ता ही करना होता था ।

मित्रों क्या योगेश की पीड़ा को हम और आप अनुभव तक कर सकते हैं,नहीं न! बस ये समझ लीजिए कि हर दिन वो एक संघर्ष करता था जीवन से।

इस तरह की स्थिति में इन्सान की हिम्मत जवाब देती है और इन्सान अपना अन्त करने तक के बारे में सोच लेता है। योगेश का भी मन हुआ एक बार इस बीमार शरीर का

अन्त करने की,पर न जाने उसमें सहसा असीम ऊर्जा का संचार कहाँ से हुआ कि उसने इस बेकार की इच्छा का यह कह त्याग कर दिया कि मैं इतना बुश्दिल तो नहीं...

जो मैं इस बीमार ही सही पर इस शरीर का अन्त कर दूँ ,नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता और न करूँगा और लड़ता

रहा योगेश और चलता रहा इसे अपना प्रारब्ध मान लड़ता रहा । परन्तु जमाने के मजाक के डर से घूमना छोड़ दिया था उसने,क्योंकि दूर की यात्रा संभव नहीं थी उससे ।

समय ने करवट ली और योगेश का विवाह भी सम्पन्न हुआ,उसने विवाह पूर्व अपने परिवारवालों व ससुर जी को अपनी बीमारी से अवगत भी करा दिया था,वो भी पूरी निडरता से क्योंकि वो अपनी भावी अर्धांगिनी को अंधकार में नहीं रखना चाहता था और उस लड़की की हिम्मत और निष्ठा देखिए,उसने बातचीत करने के दौरान योगेश को कहा इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है और ईश्वर ने चाहा तो आप पूर्ण स्वस्थ भी हो ही जाएंगे।

परन्तु ईश्वर ऐसा चाहे तब तो,वो शायद ऐसा चाहता ही नहीं था और वो त्याग की प्रतिमूर्ति भी कुछ नहीं बोली,और इस बहुमूत्रता ने भी एक सच्चे संगी की तरह

उसका साथ नहीं छोड़ा था,पर जमाना कहाँ किसी की चिन्ता से चिन्तित होनेवाला है,उसके घरवाले ने भी उस पर दबाव बनाना प्रारम्भ कर दिया कि एक छोटा मेहमान आ जाए घर में तो अच्छा हो।

योगेश ने अपना पतिधर्म निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी,पर सन्तान.....ईश्वर ने उसके भाग्य में निर्धारित किया है कि नहीं ये कौन जानता है..

ऐसा प्रतीत होता था कि उसके गतिशील जीवन को ईश्वर ने विराम लगाना निश्चय कर रखा था कि उसके जीवन की गति को विरामगति लगा दिया था ..बस शायद एक विरामगति...उसके लिए निर्धारित किया था ईश्वर ने उसके लिए....


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