Bharat Bhushan Pathak

Abstract

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Bharat Bhushan Pathak

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ज़ख्म

ज़ख्म

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त्रिमात्रिक यह शब्द उर्दू में ज़ख्म ,हिन्दी में घाव नाम से जाना जाता है।विशेष बात इसमें जो है वह क्या है वह तो मैं नहीं जानता,पर इसके भी अपने ही मजे हैं।वर्तमान परिस्थिति में मुझसे अधिक इसका स्वाद कौन जान सकता है,कम्बख़्त ने जो प्रथम दर्जे का तो नहीं,मगर किसी न किसी दर्जे का शायर तो बना ही दिया है।जिसकी एक पेशकश इस प्रकार है:-


बड़ा ही दर्द होता है एक टीस होती है।

कुरेदो ज़ख्म जब यारों एक खीस होती है।।

मन सोचता बस यह ज़रा तो चैन मिल जाए,

पर चैन ना मिलता मन बैचेन होता है।

सब रात को सोते हम जाग जाते हैं,

जहाँ आराम में होता मगर न हमको आराम होता है।

ज़ख्म जब छिलता है एक बात कहता है,

तू पूछता न था,इसी कारण आया हूँ।

कदर मेरी जरा करते ,

वो न सहता तू जो आज सहता है।।


तो भैया ज़ख्म ने तो अपनी बात कह दी,अब मेरी सुनो:-


हुआ यूँ कि भैया हम ट्यूशन से आवे रहे,

इतने में एक मुआ बछड़ा दौड़ा दिहीस,

ऊहौ सार ऐसन दौड़ा जैसन जापान में ऊहै सब मैडल पचावेगा।

तो भैया दुःखभरी गाथा ई होई गवा कि उ मुआ के कारण हमार मोटरसाइकिल तनिक गोसाइये गवीं हमसे बुझऊ कि ना और ऊहै गुस्सा में ऐसने भागी कि हमरा और अपना मरम्मत करिए के छोड़ी।

हमरा अंगूठा,केहुँनी,घुटना आर ऊई का इण्डीकेटर,किक सबै हड़बड़ाय गवा।

खैर जो होय के था उ होय गवा।

कहल भी गया है 

होईं वोही जो विधि राखा:-अब बताइये ई फूल जैसी विधि कहाँ से दोषी हो गवी,दोषी तो हमार मोटरसाइकिल

आरो बछड़ा के हवा ना तो भैया काहे फोकट में विधि जेकरा का संबोधन करें आप ही लोग बताइये:- कि माता कहें,पिता कहें,बहन,भाई या सखा!

कसम से ईहै लाईन में तो चाँद कहुँ,फूल कहुँ,सुबह कहुँ या शाम क्या रखूँ तेरा नाम जिसे दुनिया करे सलाम वाली फीलिंग आ रही है ऐसा आपको लगता होगा,हमको तो ई कोन्हो पाँच,साईत या दुई या तेसर सितारा वाला हॉटल के मेनु कार्ड लगत है जैसे मानो ई गनवा में बोल रहा हो कि दाल मखनी,इडली सांबर डोसा,चाउमिन,टिपककचौरी क्या-क्या दें जिसका आप भोग लगाएं भगवान वाली फीलिंग आ रही है।

भला हो ई गनवा वाले का कसम से वैराईटी भरा है जो खाकर मजा आ जाए।

अरे हम विषयांतर होय गवे का,ई में आपका कोन्हो दोष नाहीं ई हमरा एक ठो खूबिये है,

चलिए ज़ख्म को कसकर पकड़ें अब नहीं भागने देंगे ऊपर लिखल तो हुआ शारीरिक ज़ख्म,अब आते हैं मानसिक ज़ख्म की ओर जो देने का काम की है ई फेसबुक माता,काहे माता इतना रुष्ट हो,लगता है हमरो रुष्ट होवे पड़िगा क्या??

आप सोच रहे होंगे ऐसा क्यों,तो स्पष्ट करै देता हूँ,आजकल हमरा बहुते दोस्त लोगन अपडैट कर रहा है मेरा एकाउन्ट हैक हो गया उड़ा लिया गवा,तो सबसे पहले ई पुरुषार्थ हीन हैकरवन से पूछते हैं कि ई प्रतिकूल काल में जहाँ अपने पास ज़हरों खाने का पैसा नाहीं है तो भी दिमाग सटका नहीं है,पर तुमलोगन तो बहुतै मलाई चाप रखे होगे,तो आरो का अपने साथ ऊपर ले जावोगे का???

अब हमलोग सब मिलकर भीष्म ज़ख्म का अविष्कार करते हैं वैसने जैसन भीष्म प्रतिज्ञा रहलै था,तो भैया ई हमरा पोस्टवा कोई पढ़रहा है तो भीष्म ज़ख्म के तत्वाधान में ई शपथ लो ,चाहे वह साहित्यकार हो,साहित्यिक समूह हो,कवि हो,गायक हो,नायक,नायिका हो,नेता हो,नेत्री हो,चिकित्सक हो या मास्टर हो या राजनीतिविद् हो या और भी कोई अन्य पेशेवर हो भीष्म ज़ख्म की सुविधा के अनुसार ई फेसबुकी माते को अपनी याचना पेश करते हुए यह कहे कि हे माते!आप यदि हम सभी अपने शरणागतों को सुरक्षा नहीं दे सकतीं तो आपके घर में रहने का क्या लाभ !

हालांकि ई आपको दिल पर अपने पत्थर,ईंटा,लाठी,मुंगरी,छैनी,हथौड़ी रखकर कहना पड़िगा पर कहयै ज़ख्म-ऐ-जुदाई सह लीजिए पर अपनी सुरक्षा से समझौता नाहीं करियै,कतऊ नाहीं बुझऊ कि नाहीं ।

हालांकि एकरा पढ़ै के बाद एक और ज़ख्म का अविष्कार होगा स्थानिक ज़ख्म जो आपकी क्रिया के फलस्वरूप हुई प्रतिक्रिया के रूप में होगी।

अतःउपरोक्त को मद्देऩजर स्थानिक ज़ख्म की परिभाषा है वैसा ज़ख्म जो जमाना दे।



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