jitendra shivhare

Horror

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jitendra shivhare

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श्राप

श्राप

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गांव का नाम शैतानपुर। नाम से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांव किसी शैतान की छाया से आच्छादित रहा हो या शायद अभी भी है। गांव वासियों ने कभी न कभी किसी बुरी आत्मा का साक्षात्कार अवश्य किया था। किसी ने पेड़ पर, किसी ने तालाब में तो किसी ने खेत-खलियान में एक भयानक आत्मा को देखा था। बुरी आत्मा के कोप का सर्वाधिकार भुक्त भोगी रामदिन का परिवार था। रामदिन के चार बेटे थे। चारों विवाहित। किन्तु चारों के घर, विवाह के बहुत वर्षों के बाद भी किलकारियां नहीं गूंजी। इसका अर्थ ये नहीं की चारों भाइयों की पत्नियां कभी मां नहीं बनी। वे चारों महिलाएं क्रमशः मां बनी। किन्तु जब बड़ी बहु सरीता पहली बार मां बनी तब उसके पैदा हुये बच्चें को देखकर सभी के होश उड़ गये। ये न नर था और न हीं सम्पूर्ण तरह से मादा। ये एक किन्नर था। परिवार में सभी इस अनोखे बच्चें को अपने कुटुम्ब में पचा नहीं पा रहे। बड़ी बहु का रो-रोकर बुरा हाल था। सभी बैचेन थे। गांव वालों को क्या मुंह दिखायेंगे? किसे बताये? कैसे कहे? बच्चें को जन्म दिलवाने में सहायक दाई मां की जान पर बन आई थी। घर से बाहर की एक वही थी जो इस राज़ को जानती थी। शिशु के पिता अंतरसिंह किसी भी स्थिति में बच्चे को पालने के पक्ष में नहीं थे।

"लो इसे ठिगाने लगा दो।" अंतरसिंह ने शिशु दाई मां को देते हुये कहा।

दाई मां पसीने से नहा रही थी। उसने अब तक कितने ही बच्चों का जन्म करवाया किन्तु यह नौबत अभी तक नहीं आई। नन्हें बच्चें को मृत्यु तक उसे ही पहूंचाना था। अन्यथा की स्थिति में उसे अपनी जान गंवाने की चुनौति थी। गाँव से कुछ दुरी पर रामदिन के खेत थे। वहां शिशु को सरलता से ठिकाने लगाया जा सकता था। खेत बंजर थे और वहां लोग कम ही आते-जाते थे। कहा जाता है कि इस खेत पर वर्षों पुर्व एक शव को दफनाया गया था। वह शव एक किन्नर का था। जिसे रामदिन के भाई भावसिंह ने दर्दनाक तरीके से मौत के घाट उतार दिया था। भावसिंह का दस वर्षीय बेटा रोहित पास ही मजरा टोले में रहने वाले किन्नर लोगों से अत्यधिक प्रभावित था। वह छिपते-छिपाते उनसे मिलने जा पहूंचता। मानव और रोहित की बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी थी। हांलाकि मानव ने रोहित को समझाया कि था वह उनसे मिलने न आया करे क्योकिं भावसिंह को रोहित का वहां आना अच्छा नहीं लगता था। किन्तु बालमन को समझाना मानव के वश में नहीं था। मानव गांव में जहां भी नाच-गाने जाता, रोहित उसे देखने अवशय पहूंच जाता। भावसिंह ने रोहित को डराया और धमकाया था कि वह किन्नरों से दूर रहे किन्तु वह नहीं माना। भावसिंह ने मानव को भी चेतावनी दी की वह रोहित को अपने पास पास न आने दे। मानव ने अपने स्तर पर प्रयास किये किन्तु जब रोहित नहीं माना और भावसिंह उसे धमकी देने लगा तब किन्नर मानव भी तेस में आ गया। उस दिन भावसिंह और मानव की तु-तु मैं-मैं पुरे गांव ने देखी। दोनों में जमकर हाथा-पाई हुई। वह दिन रोहित किन्नर मानव जैसी साड़ी पहनकर और मेकअप कर घर में नाचने का अभ्यास रहा था। यह देखकर क्रोधित भावसिंह ने मानव को जान से मारने की धमकी दे डाली। किन्नर मानव भी कम न था। उसने ईंट का जवाब पत्थर से दिया। भावसिंह आगबबुला हो गया। उसने उस रात ही किन्नर मानव को ठिकाने लगाने का प्लान बनाया। रामदिन ये नही चाहता था किन्तु भैया भावसिंह के आगे उसकी एक न चली। भावसिंह ने अर्ध रात्रि में किन्नर मानव को उसकी टोली में उठवा लिया। घने वन में ले जाकर मानव पर लाठियों से हमला कर दिया। मानव कराह रहा था। उसकी चीख जंगल में गुंज रही थी। जब उसकी चीख पुरी तरह बंद हो गयी तब शव को उठाकर वे गांव ले आये।

पुलिस को पता न चले इस लिए भावसिंह ने अपने भाई राममिन के सहयोग से अर्धरात्रि में किन्नर मानव का शव अपने ही खेत में गाड़ दिया था। किन्नर के श्राप के कारण वो खेत और उससे जुड़ी जमींन बंजर हो गयी। वहां शव दफनाने के बाद कभी कोई अनाज उत्पन्न नहीं हुआ। जबकी पानी की वहां कोई कमी नही थी। यह भी कहा जाता था कि खेत से लगे कुयें पर किन्नर मानव पानी पीने आता है। वहां से गुजरने वाले बहुत से ग्रामीणों ने मानव को खेत पर तड़पते हुये देखा था। उनमें से कुछ तो जीवित नहीं रह सके। लोगों का अनुमान था कि मानव ही वहां से गुजरने वाले लोगों की हत्या कर रहा था। दिलचस्प बात यह थी कि मरने वाले वाले व्यक्ति का शव कभी बराबद नहीं हुआ। संबंधित व्यक्ति के मरणोपरांत कुछ चिन्ह अवश्य वहां से मिले। पुलिस ने जांच की लेकिन वह कुछ खास पता नहीं लगा सकी। शैतानपुर में जब एक के बाद एक लोग गायब होने लगे तब पुलिस ने उस खेत की खुदाई आरंभ करवाई। खेत में मिली हड्डीयों की शिनाख़्त गाँव से गायब हुये लोगों के रूप में हुयी। सीधा श़क रामदिन पर गया। रामदिन के बड़े भाई को पुर्व में ही मौत के घाट उतारा जा चूका था। ग्रामीणों का संदेह था कि प्रतिशोध लेने के उद्देश्य से किन्नर मानव ने ही भावसिंह का कत्ल किया है। सड़क मार्ग से गुजरते समय अर्ध रात्रि में भावसिंह की जीप क्षतिग्रस्त हो गयी थी। जीप में भावसिंह लहुलुहान मृत पाये गये थे। अफवाहें सुनने को मिली थी की भावसिंह का सामना किन्नर मानव की आत्मा से हो गया था। किन्नर मानव ने भावसिंह को दर्दनाक मौत दी थी। जीप की पिछली सीट पर किन्नर मानव की आत्मा आकर बैठ गयी। भावसिंह ने जीप शैतानपुर की ओर दौड़ा दी। वह जल्दी से घर पहूंचना चाहता था। मानव जीप में भावसिंह के बगल वाली सीट पर आकर बैठ गया था। मानव को अपने साथ वाली सीट फर बैठा हुआ देखकर भावसिंह भयान्तकित हो गया। वह जीप रोकना चाहता था। किन्तु ब्रेक फेल जाने से जीप रोकना असंभव हो गया। मानव का चेहरा भयानक था। वह भावसिंह की तरफ बढ़ा। भावसिंह चलती जीप से कुदना चाहता था। मगर कार के दरवाजे स्वतः लाॅक हो गये थे। रात गहराती जा रही थी। जीप तीव्र गति से वन मार्ग से गुजरने लगी। देखते ही देखते जीप सड़क किनारे एक पेड़ से जा टकाराई। जीप का कांच तोड़कर भावसिंह बाहर सड़क पर जा गिरा। वहीं उहने दम तोड़ दिया था। पुलिस रामदिन को गिरफ्तार करना चाहती थी। लेकिन वह भी घर में फांसी के फंदे पर झूलता मिला। दोनों अभियुक्त की मौत के बाद केस बंद कर दिया गया। रामदिन और भावसिंह की मृत्यु के बाद गांव में शांती थी। लेकिन जूं ही रामदीन के चारों बेटे विवाहित हुये, उनके घर पर किन्नर मानव की बुरी आत्मा पुनः कहर बनकर टुट पड़ी। सुहाग सेज पर सरीता का सर्वप्रथम भोग किन्नर मानव ने किया। अपनी शैतानी शक्तियों बल पर उसने सरीता के गर्भ में अपना अंश पहूंचा दिया। इसी कारण सरीता के गर्भ से किन्नर शिशु ने जन्म लिया। सरीता के बाद उससे छोटी बहू लक्ष्मी का भी प्रथम भोग किन्नर मानव की आत्मा ने ही किया। वह भी गर्भ से थी।

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दाई के पैर आगे बढ़ने से इंकार कर रहे थे। रात अपने चरम पर थी। डरते घबराते हुये वह रामदिन के खेत में पहूंच गयी थी। शिशु को नीचे रखकर खेत में गड्ढा खोदने का प्रयास करने लगी। बच्चे की रूदन आवाज वातावरण में गुंज रही थी। पसीने से तरबतर दाई मां ने कुछ फीट गहर गढ्ढा खोदा। किन्तु जैसे ही वह सफेद वस्त्रों में लिपटे शिशु को उठाकर उस गड्ढे की ओर मुड़ी वहां का दृश्य देखकर वह चौंक पड़ी। वह एक दम सपाट जगह थी। उसने पुनः खुदाई आरंभ की। और जैसे ही शिशु को दफनाने के लिये उठाया, गढ्ढा स्वतः ही मिट्टी से भरा हुआ दिखाई दिया। अब वह अत्यधिक घबरा गई। उसने शिशु को वहीं रखकर भागने में अपनी भलाई समझी। लेकिन इससे पहले की वह भाग पाती, शिशु आकाश में उड़ने लगा। दरअसल यह शिशु किन्नर मानव की आत्मा ने अपने हाथों में उठा रखा था। किन्नर मानव अदृश्य था। लेकिन दाई मां जानती थी कि अब वह जीवित नहीं बचेगी। क्योंकि उसने किन्नर मानव को क्रोधित कर दिया था। दाई मां अपनी संपूर्ण शक्ति लगाकर भाखना चाहती थी। लेकिन वह उसी स्थान पर जड़ हो चूकी थी। वह चिखना-चिल्लाना चाहती थी। किन्तु उसके गले से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी। खेत की जमीन से दो सफेद-लाल रंग के हाथ बाहर निकले। जिन्होंने दाई मां के दोनों पैर पकड़ लिये। वह छटपटा रही थी किन्तु उन दोनों हाथों की पकड़ इतनी शक्तिशाली थी कि वह हिल भी नहीं पा रही थी। वे हाथ दाई मां को अपनी ओर खींच रहे थे। दाई मां जीवित ही खेत की जमीन में धंसती जा रही थी। धीर-धीरे वह पुरे शरीर के साथ जीवित ही जमीन में समा गई थी। वह शिशू भी अदृश्य हो गया।

लक्ष्मी की प्रसव पीड़ा बढ चूकी थी। सभी के मन में डर था कि कहीं लक्ष्मी भी किन्नर को जन्म न दे। दाई मां का कहीं कुछ पता नहीं था। सो दूसरे गांव से अन्य दाई को बुलवाने के लक्ष्मी का पति बिलेरसिंग गया। वह दाई मां को ले आया। दाई मां लक्ष्मी को प्रसव करवाने में सहयोग करने लगी। जिसका डर था वही हूआ। लक्ष्मी के गर्भ से भी किन्नर बच्चे ने जन्म लिया। इस शिशु को बिलेरसिंग ने अपननाने से इंकरा कर दिया। वह चाहता था कि इसे भी बड़े भैया के बच्चे की तरह खेत में दफन कर दिया जाये। किन्तु यह खतरनाक था। गांव की दाई मां ने यह कार्य उनके कहने पर किया था। तब से ही वह गायब थी। ग्रामीणों को भरोसा था कि किन्नर मानव की आत्मा ने दाई मां का काम तमाम कर दिया है।

"मैं जाऊंगा खेत पर।" बिलेरसिंग बोला।

"नहीं ये खतरनाक है।" अंतरसिंह बोला।

"हमे किसी बाहरी व्यक्ति से यह काम करवाना चाहिए।" बड़ी बहू सरीता बोली।

"मगर यह काम करेगा कौन?"

"पैसों के लिए कोई न कोई यह काम अवश्य करेगा।" अंतरसिंह बोला। "मैं गांव में देखता हूं। कोई न कोई तैयार हो ही जायेगा। तुम लोग दाई मां को तब तक यही रोकना। और हां! बाहर किसी को कानो कान यह खबर नहीं होना चाहिए।" कहते हुये अंतरसिंह घर से बाहर निकल गये।

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मकान के पास पड़ोसी जमा थे। कुछ ही देर में वहां पुलिस भी वहां आ गयी। नरेन्द्र ने पंखे से लटकर फांसी लगा ली थी। किसी को कुछ भी पता नहीं चला। अमावस्या का दिन था। नरेन्द्र मिस्री का कामकाज करता था। आज काम से उसकी छुट्टी थी। सुबह ही उसे महिने भर की मजदूरी मिली थी। वह दोपहर को शराब पीकर लौटा था। उसे घर लौटते हुये किसी ने नहीं देखा। सांध्या के समय जब उसकी माँ ममता घर लौट कर आई तब घर का दरवाजा बंद था। द्वार अंदर से बंद था। उसने दरवाजा खटखटाया। लेकिन अंदर से कोई सुनने को तैयार नहीं था। नरेन्द्र की पत्नी कल से बच्चों को लेकर मायके गयी हुई थी। पति-पत्नी में लड़ाई चल रही थी। सो पवित्रा पति से रूठकर मायके चली गयी थी। नरेन्द्र उसे मनाने अपने ससुराल गया भी। लेकिन वहां उसके सास-ससुर ने नरेन्द्र की ही गलती निकालकर उसे घर से बाहर निकाल दिया।

ममता ने पास-पड़ोसी से सहायता मांगी। पड़ोस में रहने वाला आदित्य वहां आया। उसने जोरदार टक्कर से दरवाजा खोलने का प्रयास किया। क्योंकि उसने खिड़की से झांक कर अंदर का भयावह दृश्य देख लिया था। नरेन्द्र रस्सी की सहायता से लटका हुआ था। दरवाजा खुलते ही चिल्ला-पुकार मच गयी। रहवासी दौड़कर वहां आये। आनन-फानन में नजदीक डाॅक्टर को बुलाया गया। डाॅक्टर ने चेकअप कर नरेन्द्र को मृत घोषित कर दिया। किसी ने पुलिस को सुचना दे दी। पुलिस ने प्राथमिक जांच-पड़ताल करने के उपरांत शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। ममता ने नरेन्द्र की आत्महत्या का जिम्मेदार उसकी पत्नी पवित्रा को घोषित कर दिया। दोनों पति-पत्नी में अक्सर लड़ाई हुआ करती। क्रोधित नरेन्द्र पत्नी पवित्रा को मारता-पिटता भी था। पति की प्रताड़ना से तंग आकर एक बार तो पवित्रा घर छोड़कर अन्य पुरूष के साथ भाग गयी थी। पवित्रा से जब उसके आशिक बबलु का मन भर गया तब उसने पवित्रा को त्याग दिया। थक-हारकर वह नरेन्द्र के पास पुनः लौट आई। अपने दोनो छोटे बेटों के भविष्य का ध्यान रखते हुये नरेन्द्र ने पत्नि पवित्रा को पुनः स्वीकार कर लिया। किन्तु नरेन्द्र के परिवार में हलचल तब उतपन्न हुई तब एक अन्य पुरूष गुड्डू जब पवित्रा के संपर्क में आया। पवित्रा अक्सर बाजार करने के बहाने गुड्डू से मिलने चली जाती। नरेन्द्र को जब इस बात का पता चला तो पुनः पति-पत्नी में भयंकर झगड़ा हुआ। नरेन्द्र ने पत्नि पवित्रा को बहुत मारा। जब इस बार भी वह नहीं मानी और गुड्डू संग घर से भागने की धमकी देने लगी तब नरेन्द्र भावुक हो गया। उसने पवित्रा को मनाने की प्रार्थना भी की। किन्तु वह नहीं मानी। इससे पहले की पवित्रा दोबारा घर से भागकर उसे संसार के समक्ष अपमानित करती, उसने आत्महत्या कर ली। नरेन्द्र की आत्महत्या का सुनकर पवित्रा बुझे मन से ससुराल लौटी। किन्तु अगले ही दिन नरेन्द्र के दाह संस्कार के बाद वह अपने मायके लौट गयी। असहाय मां ममता अपने पुत्र की तेरहवी भी नहीं कर सकी। लोगों को डर था। नरेन्द्र की क्रियाकर्म की महत्वपूर्ण रस्म उसकी तेरहवी नहीं की गई थी। जिसके चलते उसकी आत्मा को मोक्ष मिलने की संभावना नहीं थी। जिसका डर था वही हुआ। नरेन्द्र ने जिस कमरे में फांसी लगाई उसके आसपास रहने वाले पड़ोसी चकित थे। उन्हें रात-बैरात नरेन्द्र के दर्शन अवश्य हो जाते। वह गले में रस्सी बांधे किसी न किसी को दिखाई दे जाता। मोहल्ले के लोग रात में घर से निकलने में डरने लगे थे। मोहल्ले में पुराने भवन की एक बिल्डिंग खंडहर अवस्था में थी। वहां रहवासी अक्सर ताश खेलकर मनोरंजन किया करते थे। अब वहां कोई आता-जाता न था। क्योंकि वहां नरेन्द्र की आत्मा का वास था। कल ही एक बिल्ली वहां संदिग्ध अवस्था में मृत पड़ी मिली थी। उसके टुकड़े-टुकड़े कर अलग-अलग स्थान पर फेंक दिया गया था। भवन के अंदर बहुतायत में चमगादड़ आ बसे थे। बच्चे दोपहर में वहां जाकर उन चमगादड़ों को पत्थर से मारते थे। पत्थर लगते ही चमगादड़ यहां-वहां उड़ान भरने लग जाते। दोपहर में जो-जो बच्चों उन्हें तंग करते रात्रि में वे चमगादड़ उनके स्वप्न में आते। चिन्टू का बदन बुखार से तप रहा था।

"क्या हुआ चिन्टू को।" दयाराम ने घर आते ही पुछा।

"क्या बताऊं। सुबह दोस्तों के साथ उस खंडहर में गया था। बस तब ही से बुखार में तप रहा है।" फाल्गुनी बोली।

"इसे डाॅक्टर को दिखाया या नहीं।" चिन्टू के माथे पर हाथ रखकर दयाराम बोले।

"हां दिखाया है न। डाॅक्टर की बताई दवा भी पिला दी। मगर कोई असर नहीं है। ठण्डे पानी की पट्टि रख-रख कर मेरे हाथ दर्द करने लगे है। मगर बुखार है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा।" फाल्गुनी बोली।

"कोई बात नहीं। चिंता मत करो। हम अभी इसे हाॅस्पीटल ले चलते है। तुम जरूरी सामान अपने साथ रख लो। मैं टैक्सी ले कर आता हूं।" कहते हुये दयाराम घर से बाहर निकल गये।

फाल्गुनी हाॅस्पीटल जाने की तैयारी में व्यस्त हो गयी। नरेन्द्र की आत्मा का खौफ पुरे मोहल्ले में फैल गया था। रहवासी अपने अपने स्तर पर झाड़ फूंक और तांत्रिकों की सहायता लेने लगे थे। बच्चों की विशेष देखभाल की जाने लगी थी। देवी-देवताओं के मंदिर से लाये गये ताबीज़ बच्चों के गले में बांधें जाने लगे थे। मजार और दरगाह पर लोग टूट पड़े थे। इन सबके बाद भी देर रात विलंब से लौटने वाले रहवासियों को नरेन्द्र की आत्मा आकाश में उड़ते हुये दिखाई दे जाती।

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"अंतर! हमारे गांव की बहुत बदनामी हो रही है। कुछ न कुछ तो कुछ करना ही होगा।" मुखियां वीरसिंह बोले।

ग्राम पंचायत में गांव में हो रही एक के बाद एक मौतों को लेकर चिंतन चल रहा था। अभी हाल में गांव से संपत नाम के बुजुर्ग गायब थे। उन्हें आखिरी बार अंतरसिंह के खेत की ओर जाते हुये देखा गया था। उसके बाद से उनका अता-पता नहीं थ। संपत बाबा शराब के अत्यधिक शौकिन थे। अंतरसिंह ने शराब को लोभ लेकर अपने छोटे भाई के नवजात किन्नर शिशु को उसके हवाले कर दिया था। अंतरसिंह ने संपत बाबा को कहा कि शिशु को उनके खेत में दफन कर आये। बदले में आजीवन उसकी शराब की व्यवस्था वो कर देगा। संपत लोभ में आ गया और अपनी जान से हाथ धो बैठा।

"मुखियां जी! ये बहुत बड़े तान्त्रिक है यदि ये चाहे तो हमारे गांव को उस किन्नर मानव की आत्मा से छुटकारा मिल सकता है।" एक ग्रामीण शरद बोला।

भरी पंचायत में अंतरसिंह को यह स्वीकार करना पड़ा की कहीं न कहीं इस बुरी आत्मा को अंतरसिंह के पुर्वजों ने ही ने कष्ट पहुंचाया था। और अब किन्नर मानव की आत्मा को शांत कर मोक्ष दिलवाने में अंतरसिंह का परिवार ही सहायक होगा।

तान्त्रिक बाबा अंतरसिंह के घर गये। उन्होंने संपूर्ण घर का परिक्षण किया। वे उनके पुश्तैनी खेत खलिहान को भी देखने गये। तदुपरांत तान्त्रिक बाबा ने अंतरसिंह के पुराने भवन को देखा। जो वर्षो से बंद था। इसी पुराने भवन में रामदिन ने फांसी लगाई थी। तब ही से यह भवन स्थाई रूप से बंद कर दिया गया था। संपूर्ण रात तान्त्रिक बाबा उस भवन के एक कक्ष में मंन्त्रोचारण करते रहे। सुबह उन्होंने परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ बुलाकर कहा--

"हमारा अनुमान सत्य निकला। यहां उस किन्नर की आत्मा का साया है। जो तुम सभी के साथ पुरे गांव को परेशान कर रहा है।"

"लेकिन बाबा। इसका कोई तो हल होगा?" बिलेरसिंग ने पुछा।

"हल है मगर बहुत मुश्किल है।" तान्त्रिक बाबा बोले।

"कितना भी मुश्किल हो। आप बतायें। किसी भी तरह हमें यह करना ही होगी।" अंतरसिंह बोला।

"सोच लो। आप में से किसी की जान भी जा सकती है।" तान्त्रिक बाबा बोले।

"वैसे भी जीवित कौन है यहां? सब डरे सहमे मरे के समान ही तो है।" लक्ष्मी बोली।

"तो सुनो। हमें किन्नर मानव की आत्मा का विवाह करवाना होगा। वो भी किसी घर की औरत से। तब ही वह शांत होकर मोक्ष प्राप्त करेगा।" तान्त्रिक बाबा ने कहा।

"बाबा पगला गये हो क्या?" छोटा भाई लालसिंह बोला।

"मैंने पुर्व में ही कहा था कि यह बहुत कठीन है। आप लोग तय कर लो। जब सभी सहमत हो जाओ। आ जाना मेरे पास।" कहते हुये तान्त्रिक बाबा जाने लगे।

कुछ कदम चलकर वे रूके।

"मैंने सुना है की छोटी बहू पेट से है।" तान्त्रिक बाबा ने कहा।

छोटी बहु संतोषी सिर पर साड़ी का पल्लु ठीक कर रही थी।

"हां बाबा। सही है।" सरीता बोली।

"तो सुन लो। यह संतान और आने वाली सभी संतान वैसी ही जन्म लेंगी जैसे अभी तक के शिशुओं ने जन्म लिया है।" बाबा जा चूके थे। संतोषी भावुक हो गयी।

"नहीं अब बहुत हुआ। आगे से ऐसा नहीं होगा।" पल्लवी बोली। अंतरसिंह की छोटी बहन पल्लवी अभी शहर से पढाई खत्म कर आई थी।

सभी उसकी और आश्चर्य से देखने लगे।

"हां मैं करूंगी उस किन्नर मानव की आत्मा से शादी।" पल्लवी आश्वत थी।

"नहीं। हम तेरा जीवन खतरे में नही डाल सकते। तुने अभी देखा ही क्या है?" अंतरसिंह बोले।

"भैया। इसके सिवा कोई चारा नहीं है। अपने परिवार को बचाने के लिये केवल एक यही उपाय है।" पल्लवी बोली।

"हम कुछ ओर रास्ता निकाल सकते है मगर ये नहीं।" बिलेरसिंग बोले।

"आप लोग समझते क्यों नहीं। मेरे अलावा हमारे परिवार में कोई कुंवारी लड़की नहीं है। मुझे ये त्याग करना ही होगा।" पल्लवी बोली।

"और विक्रम को हम क्या जवाब देंगे। अगले कुछ महीनों में तुम दोनों की शादी है।" सरीता बोली।

"भाभी! मुझे विक्रम पर पुरा भरोसा है वह मेरे इस निर्णय में मेरा साथ अवश्य देगा।" पल्लवी बोली।

"लेकिन•••" लालसिंह बोलते-बोलते रूक गया।

"भैया! मुझे कुछ नहीं होगा। शादी होते ही मैं किन्नर मानव की पत्नी हो जाऊंगी। उसके बाद वह मुझे नुकसान नहीं पहूंचा पायेगा। आप लोग मेरा विश्वास करे। मुझे कुछ नहीं होगा।" पल्लवी का विश्वास देखकर सदस्यों का भी भरोसा जाग उठा।

तान्त्रिक बाबा ने कहा कि किन्नर मानव की आत्मा और पल्लवी का विवाह तब हो सकता है जब हाल ही में कोई आकाल मौत मृत्यु को प्राप्त हुआ हो। और उसके घरवालों ने उसका पुर्ण क्रियाकर्म न किया हो। अर्थात मृत्यु पश्चात उसकी तेरहवी की रस्म पुरी न की हो। उसकी आत्मा का आह्वान कर अंतरसिंह के खेत पर पल्लवी और किन्नर मानव की शादी सम्पन्न की जा सकती है। किन्नर मानव की आत्मा बहुत शक्तिशाली है और अन्य कोई आत्मा ही उसका सामना कर सकती है। खेत की मिट्टी से किन्नर मानव का पुतला निर्मित किया जायेगा। उस मिट्टी के पुतले के साथ पल्लवी का विवाह रीति-रिवाजों के साथ सम्पन्न करना होगा। इस विवाह को किन्नर मानव की आत्मा किसी भी तरह पुरा नहीं होने देगी। अन्य आत्मा का आव्हान कर उसे मानव की आत्मा को रोकने हेतु प्रेरित करना होगा ताकि पल्लवी और उस किन्नर मानव के पुतले का विवाह निर्विघ्न पुर्ण हो सके।

तान्त्रिक बाबा ने वह मोहल्ला खोज लिया जहां एक ऐसी आत्मा आज भी भटक रही थी जिसका विधि विधान से तेरहवी का कार्य पुर्ण नहीं किया गया था। ये नरेन्द्र की आत्मा थी जो उस विरान पड़े खण्डहर में बैचेन थी। अमावस की रात्री में तान्त्रिक बाबा ने उसी खण्डहर में नरेन्द्र की आत्मा का आह्वान किया। नरेन्द्र ने बाबा पर हमला कर दिया। उन्हें आकाश में उठाकर नीचे पछाड़ दिया। बाबा को यकिन हो गया की नरेन्द्र की आत्मा किन्नर मानव की आत्मा से टक्कर लेने में समर्थ है। उन्होंने देवी शक्ति का जाप आरंभ किये। कुछ ही पल में नरेन्द्र की आत्मा शांत हो गयी। बाबा ने लाल वस्र में नरेन्द्र की आत्मा को गांठ बांध कर अपने झोले में सुरक्षित रख लिया। बाबा वहां से रात्री में ही शैतानपुर की ओर निकल पड़े।

"नहीं पल्लवी मैं ये रिस्क नहीं ले सकता। तुम वहां नहीं जाओगी।" विक्रम अपनी मंगेतर पल्लवी के लिये चिंतित था।

"मुझे लगता था कि तुम मुझे समझते हो। इसीलिए मैंने तुमसे शादी करने के लिए हां कह दी थी। मगर तुम भी बाकी मर्दों की ही तरह हो! सेल्फीस।" पल्लवी रूठ गयी।

"हो गया तुम्हारा इमोशनल अत्याचार शुरू। ठीक है। अगर तुम अपने परिवार के लिये इतना बड़ा बलिदान करना चाहती हो, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। मगर मेरी भी एक शर्त है।" विक्रम बोला।

"बोलो क्या शर्त है।" पल्लवी ने पुछा।

"मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा।" विक्रम बोला।

"अरे नहीं। तान्त्रिक बाबा ने मुझे अकेले ही बुलाया है।" पल्लवी बोली।

"देखो! मुझे तुम्हारे तान्त्रिक बाबा पर विश्वास नहीं है। मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा, देस्ट फाइनल।"

"लेकिन बाबा को पता चल गया तो?" पल्लवी बोली।

"तुम इसकी चिंता मत करो। मैं तुम दोनों को दुर से ही वाॅच करूँगा।" विक्रम ने पल्लवी को गले से लगा लिया।

पल्लवी को नहला-धुलाकर दुल्हन की तरह संजाया गया। अमावस्या की रात आरंभ हो चूकी थी। तान्त्रिक बाबा ने पल्लवी को अपने साथ खेत पर चलने को कहा। बाबा के कन्धे पर कपड़े की झोली लटक रही थी। लाल रंग की धोती को कमर में बांधकर दुसरे कंधें पर बाबा ने लटका रखा था। बाबा के संपूर्ण शरीर पर शमशान घाट की राख मली थी। पल्लवी धीरे-धीरे कदमों से बाबा के पीछे-पीछे चल रही थी। विक्रम भी साथ था।

"नजदीक आ जाओ विक्रम। छिपने की जरूरत नहीं है।" बाबा ने बीना मुड़े ही कहा। पल्लवी हैरान थी कि बाबा ने विक्रम को कैसे पहचान लिया। उसका नाम भी वे जानते थे। विक्रम बाबा के सामने आ गया।

"आपने मुझे कैसे पहचान लिया?" विक्रम ने पुछा।

"वो सब छोड़ो। तुम यहां क्यों आये?" तान्त्रिक बाबा ने पुछा।

"बाबा! मैं पल्लवी से बहुत प्यार करता हूं। और मुझे इन सब चीजों पर विश्वास भी नहीं है। फिर भी मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था।" विक्रम बोला।

"चलो ठीक है। तुम हमारे साथ रह सकते हो। मगर तुम्हें छिपकर रहना होगा। क्योंकि दो शक्तिशाली आत्माओं के बीच आज के युद्ध में कौन जीवित बचेगा कह नहीं सकते।" तान्त्रिक बाबा ने कहा।

"क्या मतलब?" विक्रम बोले।

"अर्थात मैं स्वयं भी मृत्यु को रोक नहीं सकता। अब जो होगा। उसे हमें मिलकर स्वीकारना होगा।"

विक्रम खेत की मिट्टी से पुतला बना रहा था। तान्त्रिक बाबा बीच खेत पर यज्ञ कुण्ड निर्मित कर चूके। अपनी तंत्र साधना के बल से उन्होंने यज्ञ में स्वतः अग्नि प्रज्जवलित कर दी। पल्लवी हैरान थी। मिट्टी को पानी से अच्छी तरह भिगोकर विक्रम ने किन्नर मानव का पुतला बना दिया। बाबा मंन्त्रोचारण करने लगे। कुछ ही देर में उस पुतले की शक्ल हुबहू मनुष्य समान हो गयी। उस पुतले में किन्नर मानव की आत्मा प्रवेश कर चूकी थी। इतने में तेज आंधी-तुफान चलने लगे।

"पल्लवी यज्ञ की अग्नि किसी भी सुरत में बुझनी नहीं चाहिए।" बाबा चिल्लाये। पल्लवी दोड़कर यज्ञ कुण्ड के पास आई। उसने यज्ञ कुण्ड को अपने आप से ढक लिया ताकी हवा से अग्नि बुझ न सके।

" विक्रम जाओ। जाकर अपने आपको छुपा लो।" बाबा पुनः चिल्लाये। विक्रम भागकर एक पेड़ की ओट में छिप गया। तान्त्रिक बाबा ने झोले से वह लाल वस्त्र निकाला जिसमें नरेन्द्र की आत्मा कैद थी। बाबा ने वह गांठ खोल दी। धुएं के गुबार के साथ नरेन्द्र की आत्मा ऊपर उड़ चली। किन्नर मानव की आत्मा पुतले को जीवित कर चूकी थी। उसने एक जोरजार लात के प्रहार पल्लवी को दे मारी। वह कराहते हुये दूर जा गिरी।

विक्रम उसकी ओर भागा।

"पल्लवीsss!" विक्रम चिल्लाकर उसकी ओर लपका।

"तुम जाओ विक्रम। मुझे कुछ नहीं होगा। जाओ यहां से। वर्ना बना बनाये खेल बिगड़ जायेगा। मैं ठीक हूं जाओ यहां से।" कहते हुये पल्लवी ने विक्रम को धक्का दिया। विक्रम पुनः पेड़ की ओट में जाकर छिप गया। तान्त्रिक बाबा लगातार मंन्त्रोचारण कर रहे थे। पल्लवी पुनः यज्ञ के पास आकर बैठ गयी। किन्नर मानव का पुतला अब बाबा पर कहर बनकर टूट पड़ा। नरेन्द्र की आत्मा ने किन्नर मानव को ललकारा। अब दोनों आत्माओं में आकाश में युद्ध होने लगा। पुतला पुनः निर्जीव हो गया। बाबा शादी के विधि विधान पुर्ण करने में लग गये। इतने में खेत में से एक-एक कर वे सभी आत्माएं बाहर आने लगी, जिन्हें मारकर दफन किया गया था। बाबा के शरीर पर आत्माएं अठखेलियां करने लगी। वे किसी तरह बाबा का ध्यान भटकाना चाहती थी। पल्लवी के तन पर बुढ़ी दाई मां की आत्मा टुट पड़ी। वो उसे खेत से बाहर खींचकर ले जाना चाहती थी।

"विक्रम मुझे बचाओ।" पल्लवी चिल्लाने लगी।

विक्रम उसे बचाने भागा।

"पागल मत बनो विक्रम। अपने स्थान पर खड़े रहो। ये बुरी आत्माएं तुम्हें जबरन यहां बुलाना चाहती है। अगर तुम्हें कुछ हो गया तो यह यज्ञ आदि सब बेकार हो जायेगा।" तान्त्रिक बाबा ने कहा।

"मगर बाबा वो पल्लवी?" विक्रम भावुक था।

"पल्लवी की चिंता मत करो। उसे कुछ नहीं होगा।"

"विक्रम बचाओ! मुझे ये आत्माएं मार डालेगी।" पल्लवी अभी भी चीख रही थी। किन्नर मानव की आत्मा नरेन्द्र की आत्मा पर भारी पड़ रही थी। नरेन्द्र की आत्मा धड़ाम कर खेत में जा धंसी। अब मानव बाबा की ओर लपका। उसने बाबा की छाती पे ऐसा प्रहार किया कि वे विक्रम के पास जा गिरे।

"बाबा बाबा। आप ठीक है।" विक्रम ने पूछा।

"मैंने जो समझा था यह आत्मा उससे भी अधिक शक्तिशाली निकली।" तान्त्रिक बाबा ने कहा।

"बाबा अब क्या होगा?" विक्रम ने पूछा।

"विक्रम डरो नही। मेरे शरीर में अब जान नहीं बची है। मेरे प्राण कभी भी निकल सकते है। अब शेष काम तुम्हें ही करना होगा।" तान्त्रिक बाबा ने कहा।

"लेकिन बाबा मैं क्या कर सकता हूं।" विक्रम ने पूछा।

"देखो मैंने सारा काम पुर्ण कर दिया है। अब तुम्हें किसी तरह ये मंगल सूत्र उस पुतले के हाथों पल्लवी को पहनाना होगा। इससे किन्नर मानव की आत्मा कुछ शांत होकर पुनः पुतले में प्रवेश कर जायेगी।" तान्त्रिक बाबा ने कहा।

"इसके बाद क्या?" विक्रम बाबा ने पुछा। बाबा विक्रम गोद में कराह रहे थे।

"इसके बाद तुम्हें दोनों के सात फेरे करवाने होगे। जब किन्नर मानव की आत्मा पल्लवी की सिन्दुर से मांग भर देगी तब सब कुछ ठीक हो जायेगा।" कहते हुये बाबा के प्राण निकल गये। विक्रम ने धैर्य से खुद को संभाला। वह किन्नर मानव के पुतले की तरफ दौड़ा। पल्लवी अपने आप को उस दाई मां की आत्मा से बचाकर पुनः यज्ञ कुण्ड के पास आकर बैठ गयी। विक्रम ने पुतले के हाथों पल्लवी के गले में मंगलसुत्र पहनाना चाहा। तब ही मानव की आत्मा हरकत में आई और वह विक्रम की ओर लपकी। वही दूसरी ओर पृथ्वी का सीना चीरकर नरेन्द्र की आत्मा बाहर आ गयी। एक बार पुनः वह किन्नर मानव की आत्मा पर टूट पड़ी। दोनों की भयावह चिल्ला-पुकार वातावरण को ओर भी अधिक डरावना बना रही थी। इस बार भी किन्नर मानव की आत्मा ने नरेन्द्र की आत्मा को पराजित कर दिया। नरेन्द्र की आत्मा दुर जा गिरी।

विक्रम ने पल्लवी को पुतले के हाथों मंगलसुत्र तो पहना दिया। लेकिन इससे भी किन्नर मानव की आत्मा शांत नहीं हुई। उसका अगला हमला विक्रम पर था। विक्रम पर आत्मा का जबरदस्त प्रहार हुआ। वह ऊपर आकाश में उड़ते हुये पेड़ से टकराकर पुनः पृथ्वी पर पछाड़ खाकर गिर पड़ा। उसकी चेतना कम होने लगी।

"विक्रम! उठो। हिम्मत मत हारो। हम कर सकते है। हम दोनों इस आत्मा को हरा सकते है विक्रम उठो!" विक्रम डब डबी आंखों से पल्लवी को देख रहा था। वह उठना चाहता था किन्तु उसके शरीर में तनिक भी शक्ति शेष नहीं थी।

तान्त्रिक बाबा के शरीर से उनकी आत्मा बाहर निकल चूकी थी। अब वह विक्रम के शरीर में प्रवेश कर गयी। विक्रम स्वयं को पहले से अधिक शक्तिशाली अनुभव करने लगा। वह पुनः उठा और पल्लवी की तरफ बड़ा। उसने पल्लवी के साथ पुतले के सात फेरे लगाने की प्रयास आरंभ किये। मगर पुतला अपनी जगह से उठ ही नही पा रहा था। नरेन्द्र की आत्मा ने सहयोग किया और पुतला अपने स्थान से उठ खडा हुआ। पहला फेरा अग्नि के आसपास जैसे-तैसे पुर्ण हुआ। किन्नर यहां भी नहीं रूका। उसने पल्लवी की लाल साड़ी में आग प्रज्जवलित कर दी। पल्लवी चिल्लाने लगी। नरेन्द्र ने फूंक मार उसकी साड़ी में लगी आग बुझा दी। फेरे किसी तरह पुर्ण हो रहे थे। किन्नर मानव की शक्ति कुछ कम होने लगी थी। अंतिम फेरा लगना शेष था। कि तब ही पल्लवी गश्त खाकर नीचे गिर पड़ी। उसे पानी की आवश्यकता थी। विक्रम अपनी कार के पास दोड़ा। उसने कार में से पल्लवी के लिये पानी की बोतल निकाली। वह पुनः पल्लवी के पास आया। मगर जैसे ही उसने पल्लवी को पानी पिलाना चाहा, पानी की बोतल अग्नि में गिर पड़ी। आग तेजी से बुझने लगी थी। विक्रम को कुछ सुझ नहीं नहीं रहा था। अगर आग बुझ जायेगी तो सारा ताम-झाम बिखर जायेगा। उसने एक युक्ती सोची। पुतले के पैरे के नीचे अपना सिर घुसेड़ कर विक्रम खड़ा हो गया। तदुपरांत उसने पल्लवी को अपनी बाहों में उठाकर वह अंतिम अग्नि का फेरा पुर्ण किया। सात फेरे पुरे होते ही किन्नर मानव की आत्मा शांत हो गयी। विक्रम ने पुतले के हाथों पल्लवी की मांग सिन्दुर से भरवा दी। खेत से एक एक कर सभी आत्माएं ऊपर आकाश की ओर जाने लगी। किन्नर मानव की आत्मा और नरेन्द्र की आत्मा दोनों ही मोक्ष को प्राप्त कर चूकी थी। धीरे-धीरे सबकुछ पहले जैसा हो गया। विक्रम ने पल्लवी को हृदय से लगा लिया। अंतरसिंह का परिवार मौके पर आ गया। उन्होंने तान्त्रिक बाबा के शव का विधि-विधान से दाह-संस्कार किया। अंतरसिंह के परिवार ने किन्नर मानव की आत्मा से सामुहिक क्षमा याचना कर भविष्य में इस तरह की गलती दौबारा नहीं करने का वचन दिया। सभी साथ में घर लौट गये।



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