jitendra shivhare

Drama

4  

jitendra shivhare

Drama

वी केन

वी केन

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     दुकान मालिक की प्रतीक्षा करते-करते अन्य कर्मचारी घर चले गये थे। बबलू और सुनिल अब भी दुकान पर रूके थे। बबलू को डर था की सेठजी पिछले माह का की तरह कोई बहाना न बना दे? कैलाशनाथ कर्मचारियों की तनख़्वाह देने में अक्सर लेट लतीफी करते थे। प्लाईवुड का अच्छा-ख़ासा व्यवसाय होने के बावजूद मात्र पांच कर्मचारियों का वेतन कभी समय पर नहीं दिया। सुबह नौ बजे कर्मचारियों को दुकान पहुंचना अनिवार्य था। छुट्टी का समय छः बजे निर्धारित था, मगर कर्मचारी अंतिम बार शाम छः बजे घर कब गये थे उन्हें याद नहीं। काम का आर्डर हो तो देर रात तक काम करना सभी की विवशता थी। कोई ओवरटाइम नहीं दिया जाता था। घण्टों प्रतीक्षा के बाद दुकान मालिक का फोन बबलू के पास आया। उन्होंने कहा कि सुबह सभी को तनख़्वाह मिल जायेगी। निराश बबलू और सुनिल रात दस बजे दुकान बंद कर घर के लिए निकले।

बबलू जानता था कि अब सुबह क्या होगा? सुबह कैलाशनाथ उन्हें आधे माह की तनख़्वाह दे देंगे और कहेंगे की पन्द्रह दिन बाद आधी तनख़्वाह उन्हें दे दी जायेगी। उसे इतना अनुभव हो चूका था कि वह आगामी प्रत्येक पल की भविष्यवाणी कर सकता था। इस बार भी यही हुआ। कैलाशनाथ ने पांचों कर्मचारियों को आधा वेतन देकर शेष वेतन जल्द देने की घोषणा कर अगला वर्क ऑर्डर दे दिया। कैलाशनाथ के यहां बबलु ही पुराना कर्मचारी था। कैलाशनाथ के व्यवहार से परेशान होकर कोई भी कर्मचारी अधिक दिनों तक वहां काम नहीं करता था। बबलू का मन भी करता कि वह भी कैलाशनाथ के यहां से काम छोड़ दे। वह एक बहुत अच्छा कारपेन्टर था। उसके हुनर को जिसने भी आजमाया, वह प्रशंसा किये बिना नहीं रह सका। कैलाशनाथ ने बबलू को पचास हजार रूपये एडवांस दिये थे। यह रूपये बबलू ने अपने पिताजी के उपचार हेतु व्यय किये थे। यही कारण था कि बबलु कैलाशनाथ का उपकार मानकर उनका शोषण सह रहा था। बबलु ने हार नहीं मानी। उसने इस संकटकालीन समस्या का हल खोज निकाला। खाली समय में वह छोटे-मोटे काम कर घर खर्च निकाल लिया करता था। बबलु की पत्नी लक्ष्मी, लाख मिन्नतों के बाद भी अपने मायके जाने को तैयार नहीं थी। लक्ष्मी के माता-पिता का आग्रह था कि जब तक बबलू के परिवार की आर्थिक तंगी समाप्त नहीं हो जाती, वह मायके आकर रहे किन्तु उसे अपने पति का हर परिस्थिति में साथ देना था। लक्ष्मी और बबलू ने आपसी सहमती से परिवार नियोजन का मार्ग अपनाया।

   बबलू को चिंता अपने छोटे भाई मयूर की थी। वह पढ़ाई में बिल्कुल ध्यान नहीं देता था। बूढ़े माता-पिता उसे समझा-समझा कर थक चूके थे। मयूर आगे पढ़ाई करना नहीं चाहता था। उसका तर्क था कि जब आगे चलकर बढ़ई का काम ही करना है तब पढ़ाई की क्या आवश्यकता? मयूर अपने बबलू भैया का उदाहरण देता। वह कहता की बबलु भैया ने भी अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर प्रारंभिक जवानी के दिनों में भरपूर आनंद लिया। तब उन पर पढ़ाई के प्रति दबाव क्यों नहीं बनाया गया? जब उन्हें स्वतंत्रता दी गई, तब उसे क्यों रोका जा रहा है।

बबलू और लक्ष्मी कर्तव्यनिष्ठा से कार्य कर रहे थे। बबलु छोटी-छोटी अनुपयोगी लकड़ियां अपनी दुकान से घर ले आया करता। इन लकड़ियों की उचित साफ-सफाई और पाॅलिश लक्ष्मी कर दिया करती। प्लाईवुड के शेष बचे टुकड़ों से बबलू घरेलू उपयोग की वस्तु बनाकर मोहल्ले में ही बेच दिया करता। कपड़े धोने की मोगरी, चकला-बेलन और बच्चों के खिलौने , वह सभी कुछ बना लेता। बबलू के पिता शंकर लकड़ी निर्मित भगवान का मंदिर बहुत ही अच्छा बनाते थे। आंखों के ऑपरेशन के बाद उन्होंने यह काम घर से ही शुरू कर दिया। उनकी पत्नी विभा भी पीछे नहीं थी। घर के ओटले पर ही वह लकड़ी निर्मित वस्तुओं को फैला कर बैठी जाती। सस्ते दामों पर घरेलू वस्तुएं और अन्य सांसो-सामान की बिक्री बढ़ने लगी। शंकर और उनकी बहु लक्ष्मी इन वस्तुओं को इस प्रकार रंगीन कर प्रस्तुत करते कि राहगीर इन चीजों को खरीदने पर विवश हो जाते। पहले की तुलना में घर खर्च अब सरलता से निकल जाता। उत्साहित बबलु अनुपयोगी लकड़ी दुकान से नियमित लाया करता। कैलाशनाथ को बबलू द्वारा अनुपयोगी प्लाईवुड लकड़ी के टुकड़े घर ले जाने की जानकारी थी। शंकर और बबलू देर रात तक लकड़ियों से घरेलू उपयोग का सामान और खिलौने बनाया करते। मयूर यह सब देखा करता। परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने, घर का हर एक सदस्य अपना योगदान दे रहा था। अब से मयूर ने भी निश्चय किया कि वह भी परिवार के सदस्यों की मदद करेगा। मयूर ने एक चार पहिया ठेला किराये पर लिया। पिता और भाई के द्वारा बनाई गई लकड़ी की वस्तुओं को शहर के मुख्य बाजार ले जाकर वह बेचने लगा। वस्तुओं की मांग बढ़ी तब बबलु ने नयी प्लाईवुड की लकड़ी कैलाशनाथ से ही क्रय करना आरंभ कर दिया। मयूर भी लकड़ी के सामान निमार्ण में सहयोग करता। दोनों भाई और पिता तीनों मिलकर लकड़ी का समान निर्माण करते। घर की दुकान विभा संभालती और बाजार की दुकान पर लक्ष्मी बैठने लगी। बबलु ने शीघ्र ही कैलाशनाथ का कर्ज़ उतार दिया। उसने वहां से काम भी छोड़ दिया। तीनों बाप-बेटे दिन-रात लकड़ी की नई-नई कलाकृति बनाते। विभिन्न राज्यों और शहर के स्थान-स्थान पर सेल आयोजित करने वाले बड़े व्यवसायी दर्शन लालवानी ने एक बहुत बड़ा घरेलू उपयोग की वस्तुओं का ठेका बबलु को दिया। इतना बड़ा आर्डर पूरा करने के लिए बबलू ने अपने यहां बढ़ई के कारीगर बढ़ा दिये। निर्धारित समय पर आर्डर पूरा करने के फलस्वरूप उसे शीघ्र ही अगला ऑर्डर मिला। बबलु के लड़की के सामान ऑनलाइन भी बिकने लगे। बबलु ने कई शहरों में अपने समान विक्रय हेतु बोक्रर नियुक्त कर दिये। बबलु ने नया मकान खरीदा और कार भी खरीद लाया। अब बड़े बाजार में कैलाशनाथ की दुकान के पास ही बबलु की प्लाईवुड निर्मित वस्तुओं की बड़ी दुकान थी। बबलु के परिवार ने मिल-जुलकर स्वयं की उन्नति के लिए जो साझा प्रयास कर सफलता हासिल की वह अन्य परिवारों के लिए किसी नैतिक शिक्षा से कम नहीं थी।



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