jitendra shivhare

Romance

4.5  

jitendra shivhare

Romance

साजन

साजन

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347


आलोक के प्रति ज्योति की दीवानगी देखकर आलोक के परिवार वाले आश्चर्यचकित थे। क्योंकी उनके गांव की रहने वाली गौरी भी मन ही मन आलोक को अपना सब कुछ मान चुकी थी। आलोक को ज्योति पसंद थी और वह उसी से शादी करना चाहता था। मगर उसके माता-पिता गौरी को अपने घर की बहु बनाना चाहते थे। आलोक विद्रोह के मुड में कतई नहीं था। ज्योति उसकी बचपन की दोस्त थी। दोनों माध्यमिक कक्षा तक गांव में साथ-साथ पढ़े थे। उसके बाद आलोक शहर आ गया और गौरी वहीं गांव में रहकर अपनी पढ़ाई करने लगी। गौरी, आलोक को कभी नहीं भूली। वह समय-समय पर उससे फोन पर बातें किया करती। आलोक के मन के किसी कोने में गौरी के लिए भी जगह थी। वह इतना तो जानता था कि यदि गौरी उसके घर बहू बनकर आई तो उसके माता-पिता का बुढ़ापा ठीक से कट जायेगा। गौरी की सेवा भावना सभी ने देखी थी। शहर में पली-बढ़ी ज्योति भी काफी समझदार थी। आलोक को ज्योति का व्यवहार देखकर कभी नहीं लगा कि शादी के बाद उसे आलोक के मां-बाप के साथ रहने में कोई परेशानी होगी। ज्योति कि विनम्रता और शिष्ट व्यवहार से स्वयं आलोक के माता-पिता भी प्रभावित थे। एक दिन दोपहर के समय ज्योति के साथ पार्क में समय बिता रहा आलोक अचानक सामने आ पहूंची गौरी को देखकर चौंक गया। गौरी को गांव में पता चला कि आलोक उससे शादी करने में इच्छुक नहीं है। इसलिए वह आलोक से मिलने शहर आ पहूंची। वह आलोक से मिलकर यथास्थिति पता करना चाहती थी।

"मुझसे अधिक प्रेम तुम्हें कोई नहीं कर सकता आलोक! मैंने बचपन से तुम्हें अपना सबकुछ माना है।" गौरी बोली। वह आलोक को खोना नहीं चाहती थी। ज्योति समझ चूकी थी कि यही लड़की गौरी है जो आलोक को उससे छीनने गांव से शहर आई है।

"आलोक! हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते है और चाहे कुछ भी हो, तुम्हें मुझ से ही शादी करनी होगी।" ज्योति बोली। वह उत्साह में थी। उसे गौरी के प्रभावी कथनों का प्रभाव आलोक के मन से कम करना था। आलोक पहली बार धर्म संकट में था। उसे नहीं पता था कि गौरी उसके इंकार को पचा नहीं सकेगी और यूं अचानक शहर आ जायेगी। वह विचारमग्न था। उसके जवाब पर गौरी और ज्योति का भविष्य तय होना था। दोनों बेसब्री से आलोक के प्रतिउत्तर की प्रतिक्षा में खड़ी थीं।

"मैं तुम दोनों से शादी करना चाहता हूं। और यह मेरा अंतिम निर्णय है।" आलोक ने दो टूक कह दिया।

आश्चर्य में डूबी ज्योति और गौरी समझ नहीं सकी कि ये कैसे हो सकता है? आलोक के साथ शादी कर दोनों एक-दूसरे की सौतन बनकर क्या पूरा जीवन काट सकेंगी? यह लगभग असंभव था। गौरी पिछे हट गयी। उसने आलोक से शादी करने के लिए मना कर दिया। एक पति की दूसरी बीवी बनना उसे स्वीकार नहीं था। जबकी ज्योति अब भी आलोक के साथ खड़ी थी। उसे किसी भी मूल्य पर आलोक से विवाह करना था और इसके लिए एक ही घर में अपनी सौतन के साथ रहने में उसे कोई ऐतराज न था। ज्योति की दीवानगी गौरी से कहीं अधिक थी, यह आलोक समझ गया। मगर उसे अब भी यकिन नहीं था की उसे बचपन से प्रेम करने वाली गौरी ने उससे विवाह करने से इंकार कर दिया। गौरी मुड़कर जाने लगी। यकायक आलोक ने उसका हाथ पकड़ लिया।

"गौरी! सच बताकर जाओ। तुमने ऐसा क्यों किया? मैं जानना चाहता हूं।" आलोक बोला।

ज्योति को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह कभी गौरी तो कभी आलोक को आश्चर्य से देख रही थी।

"आलोक! मुझे यहाँ आकर पता चला कि तुम ज्योति से कितना प्यार करते हो? और इसीलिए तुमने हम दोनों से एक साथ शादी करने का स्वांग रचा। तुम्हें विश्वास हो चला था कि ज्योति हर किमत पर तुमसे शादी करेगी और गौरी पीछे हट जायेगी। तुम्हारा भरोसा मैं कैसे तोड़ देती। इसलिए मैंने तुम्हें ज्योति को समर्पित कर दिया।" गौरी ने बताया।

गौरी के मुख से सच्चाई सुनकर ज्योति के साथ आलोक भी हैरत में था। उसके मन की बात ज्योति नहीं जान सकी। लेकिन गौरी ने आलोक की मन:स्थिति भांप ली। आलोक की इच्छा का सम्मान करते हुये उसने आलोक से शादी करने का इरादा त्याग दिया। यह बहूत बड़ी बात थी। गौरी पुनः मुड़कर जाने लगी। अब ज्योति ने गौरी को रोकने के लिए हाथ बढ़ाया।

"गौरी! यह सच है कि मैंने आलोक से हद से ज्यादा प्यार किया है और करती रहूंगी लेकिन तुमने तो आलोक की पूजा भगवान समझकर की है। आलोक पर मुझसे ज्यादा हक तुम्हारा है। तुम्हारी शादी आलोक के साथ ही होगी।" ज्योति बोली।

आलोक की ना-नुकर ज्योति के आगे नहीं चली। आलोक जितना प्रसन्न गौरी पर था उससे कहीं अधिक ज्योति पर था। दोनों प्रेमिकाओं ने उसके लिए अपने प्रेम का बलिदान दिया था। अब आलोक की बारी थी। उसने गौरी को स्वीकार कर सभी को प्रसन्न कर दिया। गौरी और आलोक की शादी निर्विघ्न सम्पन्न हुई।


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