सौतभाग ८
सौतभाग ८
छुट्टियां मिली तो लक्ष्य घर आया उसके आने की प्रसन्नता मीनल के चेहरे पर स्पष्ट पढ़ी जा सकती है। अपने कमरे में मंद -मंद मुस्कुराते मीनल लक्ष्य की ओर पीठ फेर कर खड़ी हो जाती है ।कनखियों से लक्ष्य को देखती हैं ।लक्ष्य मीनल की शरारत समझ जाता है। वह मीनल के पास जाकर उसे पीछे से छेड़ने लगता है मीनल दूर जाने की कोशिश करती है लेकिन लक्ष्य उसे अपनी बाहों में भर लेता है। दोनों एक दूसरें में खो जाते है। कुछ दिन रुक लक्ष्य वापस हाॅस्टल चला जाता है। जब तक लक्ष्य था मीनल की खुशियाँ चार गुनी थी पर लक्ष्य के जाने के बाद वह उदास हो गई।
दिन में इधर-उधर के कामों में व्यस्त रहती पर रात होते ही एकांत उसे काटने लगता, ऐसा लगता जैसे उससे कुछ छिन गया हो। वह बेचैन इधर-उधर घर के चक्कर लगाती नींद आँखों से कोसों दूर थी। उसकी जिंदगी ऐसी लगती जैसे बिन माली के बगीचा। समय पंख लगा कर उड़ाता चला गया ।मिलते बिछड़ते मीनल के 4 साल गुजर गए। इन दिनों में मिनल ने अपने हस्तशिल्प से बहुत नाम कमाया और उधर लक्ष्य की अच्छे हाॅस्पिटल में जाॅब लग जाती है। मीनल लक्ष्य के साथ जाना चाहती है ,उसकी सांसू माँ भी कहती है पर लक्ष्य बात डाल देता है। वह जब भी घर आता उदास और खोया रहता मीनल को उसका यह व्यवहार कचोटा। उसे न जाने क्यों लगता कि लक्ष्य उससे दूर होता जा रहा है।वह पहले की भांति हंसी ठिटौली नहीं करता और ना ही उसके चेहरे पर पहले वाली प्रसन्नता है। मीनल ने कई बार उससे इसका कारण पूछना चाहा पर हर बार रहने दिया।एक बार जब लक्ष्य घर आया तो उसका फोन उसकी दो वर्षीय बेटी ने उठाया -" तोतली आवाज में उसने पूछा-"तौन है?"
तो उधर से एक महिला लक्ष्य को जल्दी घर आने को बोल रही थी। मीनल उस समय लक्ष्य के लिए खाना लाई थी,पूछने पर लक्ष्य टालने लगता है।
"पापा आपता फोन था ,कोई गंदी आंटी बोल रही थी,दल्दी आओ वरना ठीत नहीं होगा" गंदी आंटी"यह कहकर बच्ची वहाँ से चली जाती है, रहता है केवल सन्नाटा।
मीनल-"कौन है यह?
लक्ष्य-"स्टाफ नर्स है ,शायद कोई गंभीर मरीज आया होगा।"
मीनल-"तो ऐसे बात करेगी।"