Keyurika gangwar

Abstract Tragedy Inspirational

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Keyurika gangwar

Abstract Tragedy Inspirational

सौत भाग १२

सौत भाग १२

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मीनल बेटी से पूछती है" कितने दिनों से एडमिट है ,और कितने दिन जी सकती है।

"माँ एडमिट तो पन्द्रह दिनों से हैं,और जीने का पता नहीं। एक दिन ,दो दिन पन्द्रह दिन या एक महीना--।

"अच्छा ठीक है तेरे संग मैं भी चलूँगी उसे देखने।"बेचारी----बिल्कुल अकेली होगी।"अच्छा ईलाज कौन करवा रहा है।"

चेरिटी से माँ"

ओहो-----बेसाख्ता मुँह से निकल गया।

फिर तो  कल मैं जरूर तेरे साथ जाऊँगी "।

 "ठीक है माँ ""अगले दिन दोनों माँ बेटी 10:00 बजे तक अस्पताल पहुँ च जाती हैं।

 ""माँ वह उस तरफ है।"

""" अच्छा ठीक है ,चल। "

"" नहीं माँ, मुझे कुछ काम है अभी आप जाओ, मैं थोड़ी देर में आती हूँ।"दस मिनट बाद"।

 "मीनल लपकी -लपकी उस बेड तक बड़ी तेजी से जाती हैं।  जैसे कोई अपना हो , जो उससे जुड़ा हो। "

" लेकिन यह है क्या ?जैसे ही वह चेहरा देखती है, उसके चेहरे के हाव-भाव बदल जाते हैं। "

"" कभी क्रोध ,कभी पीड़ा,कभी सहानुभूति तो कभी संतुष्टि के भाव चेहरे पर आ जाते हैं।

मन में अंतर द्वंद्व चलता है एक मन कहता है कि बिल्कुल ठीक सजा मिली है, इसके कर्मों की।

तो चेतन मन कह उठता है जो हुआ वह भूल जाओ ,अंतिम सांस ले रही है बेचारी ,कोई भी तो नहीं है इसके पास ,देखभाल करने के लिए।

अवचेतन मन पुनः कहता है गलती इसी की है दूसरों का घर उजाड़ कर अपना घर बसाया बसाया तो चलो ठीक है ,उसे भी निभा न सकी। सबको सताया और तो और अपने बेटे तक से मिलना इसने ठीक ना समझा यह इसके खुद के कर्म है।"


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