सौत भाग १४
सौत भाग १४
सौत भाग 14
सोना उसके यहां भाव देखकर समझ जाती है उसकी नजर में उसके लिए घृणा है ।
मीनल उसे अपने पास बुलाकर कहती है कि "देखो बेटा एक डाॅक्टर का कर्तव्य है कि अपने हर मरीज का इलाज प्रेम पूर्वक करें।इस समय यह तुम्हारी मरीज है , पीछे क्या हुआ ?इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए क्योंकि वह बीता हुआ कल था।
वर्तमान में इन्हें तुम्हारे प्रेम की आवश्यकता है और अपने किये पर शर्मिंदा है।वह अपनी माँ की बात मान तो लेती है पर अभी भी बहुत कुछ ह जो टूट रहा है। "बेटा अपने भैया को फोन करके बुला लो, पर उससे कुछ कहना नहीं।"
"और अपने पापा को भी फोन कर देना कठोर लहज़े में मीनल ने कहा।"
लक्ष्य और उसके माता--पिता तुरंत अस्पताल आ गये"।
अस्पताल के एक बेड की ओर वह उन तीनों को ले गई जैसे ही उन लोगों ने उसे देखा तो अनायास ही मुंह से निकल गया। "तुम यहाँ कैसे।"
सभी को सोहना से सहानुभूति थी पर वे उसके कृत्यों को भूला नहीं पा रहे थे।
सिर्फ मीनल के कहने पर परिवार से हर रोज एक व्यक्ति मीनल के पास आता ।
स्वयं मीनल अपने हाथ से सोहना के हाथ मुँह धोती कपड़े बदलती हर संभव कार्य करती ।
मीनल के इस रूप को देखकर सोहना के आँखों में आँसू आ जाते और मीनल मुस्कुराकर उसे शांत कर देती।
दो दिन बाद बेटा भी आ पहुँचा यूँ अचानक बुलाने पर हड़बड़ाता सीधा मीनल के पास पहुँचा।
"माँ, माँ ----क्या हुआ आपको , आप ठीक तो हैं न, इतनी जल्दी में क्यों बुलायाष" "हाँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ मेरे लाल, तू बता तू तो ठीक है।"
"हाँ माँ, और अपनी माँ को अपनी बाँहों में कस लेता है।"
"इतना बड़ा हो गया , बदमाशियाँ नहीं गईं, चल पहले हाथ -मुँह धो ले, खाना खा ले , आराम कर थक गया होगा , प्यार से सिर पर हाथ फेरते उसने कहा।
आगे क्रमश:--